भारतीय स्वतंत्रता की पहली लड़ाई में लक्ष्मीबाई की रानी से मर्दानी बनने की कहानी

Aazadi Ke Deewane Republic Day 2025: लक्ष्मीबाई, जिन्हें वीरांगना लक्ष्मीबाई के नाम से जाना जाता है, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की एक महत्वपूर्ण और साहसी नायिका हैं. उनकी गाथा केवल संघर्ष और बलिदान की नहीं, बल्कि देशभक्ति और साहस का भी प्रतीक है.

By Shaurya Punj | January 25, 2025 4:58 PM
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Aazadi Ke Deewane: सन् 1857 का विद्रोह भारत में स्वतंत्रता के लिए लड़ा गया पहला संघर्ष था. रानी लक्ष्मीबाई का योगदान भारत को स्वतंत्रता दिलाने में अत्यंत महत्वपूर्ण रहा है. अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई में अपने प्राणों की आहुति देने वाली वीरांगनाओं में रानी लक्ष्मीबाई का नाम सबसे पहले लिया जाता है.

रानी लक्ष्मीबाई का जन्म 19 नवंबर 1828 को हुआ. उनके पिता का नाम मोरोपंत ताम्बे और माता का नाम भागीरथी सापरे था. उनका बचपन का नाम मनु और छबीली रखा गया था. उन्होंने झांसी के राजा गंगाधर राव नेवालकर से विवाह किया.

1851 में रानी लक्ष्मीबाई और गंगाधर राव को एक रत्न की प्राप्ति हुई, लेकिन यह खुशी अधिक समय तक स्थायी नहीं रह सकी. चार महीने बाद ही लक्ष्मीबाई के पुत्र का निधन हो गया. गंगाधर राव के बिगड़ते स्वास्थ्य को लेकर सभी लोग चिंतित रहने लगे, जिसके परिणामस्वरूप दत्तक पुत्र (गोद लिया हुआ पुत्र) लेने का निर्णय लिया गया. दत्तक पुत्र का नाम दामोदर राव रखा गया. 21 नवंबर 1953 को गंगाधर राव का निधन हो गया.

अंग्रेज रचने लगे थे साजिश

राजा के निधन के बाद अंग्रेजों ने अपनी चालें चलनी शुरू कर दीं. लॉर्ड डलहौजी ने ब्रिटिश साम्राज्य के विस्तार के लिए झांसी का लाभ उठाने का प्रयास किया. अंग्रेजों ने दामोदर को झांसी के राजा के उत्तराधिकारी के रूप में मान्यता देने से मना कर दिया. रानी को 60000 रुपये की वार्षिक पेंशन स्वीकार करने और झांसी के किले को छोड़ने के लिए कहा गया.

रानी से मर्दानी तक की कहानी

झांसी की रक्षा के लिए रानी लक्ष्मीबाई ने विद्रोहियों की एक सेना बनाने का निर्णय लिया. उन्हें बेगम हजरत महल,
तात्या टोपे, नाना साहब, सम्राट बहादुर शाह, गुलाम गौस खान, दोस्त खान, खुदा बख्श, सुंदर-मुंदर, काशी बाई, लाला भऊ बख्दशी, मोती भाई, दीवान रघुनाथ सिंह और दीवान जवाहर सिंह से सहयोग प्राप्त हुआ. झांसी में रानी ने 14000 विद्रोहियों की एक सेना का गठन किया.

1857 की लड़ाई में योगदान

1857 में मेरठ से विद्रोह की शुरुआत हो चुकी थी. इस हिंसा की लहर झांसी तक भी पहुंची. सितंबर-अक्टूबर 1857 में पड़ोसी राज्य ओरछा और दतिया के राजाओं ने झांसी पर आक्रमण किया, लेकिन रानी लक्ष्मीबाई ने उनके प्रयासों को विफल कर दिया. जनवरी 1857 में अंग्रेजों की सेना ने झांसी की ओर बढ़ना शुरू किया और मार्च में पूरे झांसी शहर को घेर लिया. दो सप्ताह की लड़ाई के बाद, अंग्रेजी सेना ने शहर पर कब्जा कर लिया, लेकिन रानी लक्ष्मीबाई अपने पुत्र दामोदर राव के साथ भागने में सफल रहीं. झांसी से भागकर लक्ष्मीबाई कालपी पहुंचीं और तात्या टोपे से मिल गईं.

अंग्रेजों से लड़ते हुए वीरगति को हुई प्राप्त

रानी लक्ष्मीबाई ने तात्या टोपे के साथ मिलकर ग्वालियर पर आक्रमण किया और वहां के एक किले पर नियंत्रण स्थापित कर लिया. 17 जून 1858 को जब अंग्रेजों का सामना हुआ, रानी लक्ष्मीबाई ने अपने घोड़े को तेज़ी से दौड़ाया, लेकिन दुर्भाग्यवश रास्ते में एक नाला आ गया, जिसे पार करने में घोड़ा असमर्थ रहा. पीछे से आ रही अंग्रेजों की टुकड़ी ने रानी पर प्रहार किया, जिससे वह घायल हो गईं. फिर भी, उस साहसी महिला ने हार नहीं मानी और अंग्रेजों से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त कर लिया.

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