Goa: गोवा में जंगल की जमीन को नुकसान पहुंचाने का आरोप, विपक्ष ने की निष्पक्ष जांच की मांग

Goa: 2021 में राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (एनजीटी) ने एक रिपोर्ट में इस जमीन पर किसी तरह के निर्माण करने पर पर्यावरणीय प्रभावों पर चिंता जताई थी. एनजीटी ने स्पष्ट रूप से कहा था कि इस भूमि पर बड़े निर्माणों से भविष्य में भारी पर्यावरणीय नुकसान हो सकता है.

By KumarVishwat Sen | October 2, 2024 11:58 AM
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Goa: गोवा में कांग्रेस ने मुख्यमंत्री प्रमोद सामंत की सरकार पर जंगल की जमीन निजी रियल एस्टेट कंपनियों को देने का आरोप लगाया है. उसका कहना है कि राज्य सरकार ने 1.2 करोड़ वर्ग मीटर जंगल की जमीन को सस्ते दामों पर रियल एस्टेट कंपनियों को बेच दिया. जमीन की यह बिक्री 2019 में तत्कालीन वन मंत्री और इस समय गोवा के मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत के कार्यकाल में हुआ. जंगल की जमीन निजी कंपनियों के हाथों बेचने से गोवा के पर्यावरण पर गंभीर खतरा मंडरा रहा है, क्योंकि इस भूमि पर जंगलों की कटाई करके कमर्शियल इमारतें बनाई जा रही हैं. विपक्षी पार्टियों ने सरकार से इस मामले निष्पक्ष जांच की मांग की है.

गोवा कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष गिरीश चोणकर की ओर से बयान जारी कर कहा गया है कि मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत के वन मंत्री रहने के दौरान जंगल की जमीन निजी रियल एस्टेट कंपनियों को दी गई. उन्होंने कहा कि जुआरी एग्रो जैसी बड़ी कंपनियों को जंगल की जमीन कौड़ियों के भाव दी गई. उन्होंने आरोप लगाया कि एक करोड़ वर्ग मीटर जंगल की जमीन को निजी हाथों में सौंपा गया, जिसकी कुल कीमत 60,000 करोड़ रुपये से भी अधिक है. उन्होंने कहा कि जब वे पहली बार वन मंत्री बने थे, उसी दौरान सरकारी जमीन का घोटाला सामने आया था.

गोवा में प्राकृतिक आपदाओं के बढ़ने का खतरा अधिक

कांग्रेस नेता गिरीश चोणकर ने कहा कि सरकार की ओर से जंगल की जमीन निजी रियल एस्टेट कंपनियों को बेच दिए जाने के बाद उस पर तेजी इस बड़ी-बड़ी इमारतों का निर्माण हो रहा है, जिससे गोवा की हरियाली और पर्यावरण पर गंभीर संकट मंडरा रहा है. समुद्र के किनारे बसे गोवा में जंगलों की कटाई से प्राकृतिक आपदाओं का खतरा और बढ़ जाएगा. उन्होंने कहा कि जिस तरह उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, और केरल में आए दिन प्राकृतिक आपदाएं हो रही हैं, वैसे ही गोवा में भी इस तरह की स्थितियां पैदा हो सकती हैं.

एनजीटी ने भी दी थी चेतावनी

गिरीश चोणकर का दावा है कि 2021 में राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (एनजीटी) ने एक रिपोर्ट में इस जमीन पर किसी तरह के निर्माण करने पर पर्यावरणीय प्रभावों पर चिंता जताई थी. एनजीटी ने स्पष्ट रूप से कहा था कि इस भूमि पर बड़े निर्माणों से भविष्य में भारी पर्यावरणीय नुकसान हो सकता है. इसके बावजूद, सरकार ने इस रिपोर्ट की अनदेखी कर इस जमीन को रियल एस्टेट कंपनियों को दे दिया.

क्या है मामला

गिरीश चोणकर ने कहा कि इस घोटाले की शुरुआत 2019 में हुई थी, जब तत्कालीन वन मंत्री प्रमोद सावंत के कार्यकाल में 1.2 करोड़ वर्ग मीटर जंगल की जमीन को हटाकर रियल एस्टेट कंपनियों को दे दिया गया. इसमें प्रमुख भूमिका निभाने वाली कंपनी भूटानी इंफ्रा है, जिसने इस जमीन पर आवासीय और व्यावसायिक इमारतें बनाने की योजना बनाई. यह काम तेजी से और गुप्त तरीके से किया गया, जिससे आम जनता को पता नहीं चला कि उनके राज्य की प्राकृतिक धरोहर को खत्म किया जा रहा है. साल 2002 में कुछ भूमि को कृषि से आवासीय क्षेत्र में बदलने की मंजूरी दी गई थी और 2007 में उस पर विकास की अनुमति भी दी गई. इसके बाद 2019 में इस जमीन को निजी जंगल की सूची से हटा दिया गया.

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स्वतंत्र एजेंसी से निष्पक्ष जांच कराए सरकार: कांग्रेस

उन्होंने सरकार पर आरोप लगाया है कि उसने जानबूझकर पर्यावरणीय नियमों का उल्लंघन किया है और बड़े डेवलपर्स को फायदा पहुंचाने के लिए यह घोटाला किया. विपक्षी नेता गिरिश चोडणकर ने मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत पर गंभीर आरोप लगाए हैं. उन्होंने सरकार से इस घोटाले की जांच के लिए स्वतंत्र एजेंसी की मांग की है और कहा है कि अगर सरकार ने इसे नहीं रोका तो राज्यभर में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन किए जाएंगे.

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