सुप्रीम कोर्ट ने सुरक्षित रख लिया था फैसला
गौरतलब है कि 5 अगस्त 2019 को संसद ने जम्मू कश्मीर को अनुच्छेद 370 के तहत मिला विशेष दर्जा खत्म किया था. साथ ही राज्य को 2 केंद्र शासित प्रदेशों जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में बांट दिया गया था. इसी फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी. इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने 16 दिनों की सुनवाई के बाद पांच सितंबर को मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था. बता दें, याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि राज्य का संविधान बनने के बाद 1957 में जम्मू और कश्मीर संविधान सभा के विघटन के बाद अनुच्छेद 370 के तहत एक स्थायी स्वरूप प्राप्त कर लिया था.
अदालत ने सुनी थी केंद्र की दलील
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 370 को निरस्त करने का बचाव करने वालों और केंद्र की ओर से पेश अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता, वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे, राकेश द्विवेदी, वी गिरी और अन्य लोगों की दलीलों को सुना था. सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार का पक्ष रखने वालों ने तर्क दिया था कि प्रावधान हमेशा अस्थायी था. जबकि याचिकाकर्ताओं की ओर से कपिल सिब्बल, गोपाल सुब्रमण्यम, राजीव धवन, जफर शाह, दुष्यंत दवे और अन्य वरिष्ठ अधिवक्ताओं ने बहस की थी.
क्या है मामला
सुप्रीम कोर्ट में अनुच्छेद 370 को निरस्त किए जाने और जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं को 2019 में एक संविधान पीठ को भेजा गया गया था. जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 के चलते पूर्ववर्ती राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों- जम्मू कश्मीर और लद्दाख में विभाजित कर दिया गया था. इस मामले की सुनवाई पूरी हो चुकी है अब 11 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट फैसला सुनाएगा.
भाषा इनपुट के साथ
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