Ceasefire: ओवैसी ने उठाए युद्धविराम पर सवाल, सरकार से मांगा PAK नीति पर स्पष्टीकरण

Ceasefire: भारत-पाकिस्तान युद्धविराम पर AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने सवाल उठाए. उन्होंने आतंकवाद पर सख्त कार्रवाई की मांग की और सरकार से बातचीत की पारदर्शिता, तीसरे पक्ष की भूमिका और पाकिस्तान पर दबाव बनाए रखने को लेकर चार अहम सवाल पूछे.

By Aman Kumar Pandey | May 10, 2025 11:03 PM
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Ceasefire: भारत और पाकिस्तान के बीच सीमा पर लंबे समय से जारी तनाव के बीच हाल ही में दोनों देशों ने युद्धविराम पर सहमति व्यक्त की है. इस फैसले का देश के विभिन्न राजनीतिक और सामाजिक हलकों से मिला-जुला स्वागत हो रहा है. ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने भी इस पर अपनी प्रतिक्रिया दी है. उन्होंने जहां एक ओर सीमावर्ती क्षेत्रों में शांति की संभावनाओं का स्वागत किया, वहीं दूसरी ओर पाकिस्तान की मंशा पर सवाल उठाते हुए कई गंभीर बिंदुओं की ओर ध्यान खींचा.

ओवैसी ने कहा कि जब तक पाकिस्तान अपनी जमीन का इस्तेमाल भारत के खिलाफ आतंकवादी गतिविधियों को अंजाम देने के लिए करता रहेगा, तब तक स्थायी शांति की उम्मीद करना व्यर्थ है. उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि केवल सीजफायर की घोषणा ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि उन आतंकवादियों के खिलाफ निर्णायक कार्रवाई जारी रहनी चाहिए जो पहलगाम में हुए हमले के लिए जिम्मेदार हैं.

उन्होंने भारतीय सेना और सरकार के प्रति अपना समर्थन जताते हुए कहा कि वह हमेशा देश के खिलाफ होने वाले किसी भी बाहरी आक्रमण के खिलाफ सरकार और सशस्त्र बलों के साथ खड़े रहे हैं और आगे भी खड़े रहेंगे. उन्होंने भारतीय सेना की बहादुरी और क्षमताओं की सराहना करते हुए, हाल ही में शहीद हुए सैनिक एम मुरली नाइक और एडीसीसी राज कुमार थापा को श्रद्धांजलि दी. साथ ही उन्होंने संघर्ष के दौरान मारे गए और घायल हुए नागरिकों के लिए संवेदना व्यक्त की.

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सीजफायर की घोषणा को लेकर उन्होंने यह भी उम्मीद जताई कि इससे सीमावर्ती इलाकों में रहने वाले नागरिकों को काफी राहत मिलेगी, जो लंबे समय से गोलीबारी और असुरक्षा के माहौल में जी रहे थे. हालांकि, उन्होंने सरकार से चार महत्वपूर्ण सवाल भी पूछे, जिनका उत्तर जनता को दिया जाना चाहिए.

पहला सवाल: ओवैसी ने यह जानना चाहा कि जब भारत 1972 के शिमला समझौते के बाद से तीसरे पक्ष के हस्तक्षेप का विरोध करता रहा है, तो इस बार एक विदेशी राष्ट्राध्यक्ष ने युद्धविराम की घोषणा क्यों की? क्या यह कश्मीर मुद्दे के अंतर्राष्ट्रीयकरण की शुरुआत है?

दूसरा सवाल: उन्होंने यह भी पूछा कि भारत तटस्थ क्षेत्र में बातचीत के लिए क्यों राजी हुआ और इन वार्ताओं का एजेंडा क्या है? क्या अमेरिका यह गारंटी देगा कि पाकिस्तान भविष्य में अपनी सरज़मीं का इस्तेमाल भारत के खिलाफ आतंकवाद के लिए नहीं करेगा?

तीसरा सवाल: ओवैसी ने पूछा कि क्या भारत इस संघर्षविराम के जरिए पाकिस्तान को भविष्य में आतंकवादी हमले करने से रोकने के अपने उद्देश्य में सफल हुआ है, या यह सिर्फ एक अस्थायी समाधान है?

चौथा सवाल: उन्होंने जोर देकर कहा कि पाकिस्तान को FATF की ग्रे लिस्ट में बनाए रखने के लिए भारत की अंतरराष्ट्रीय कोशिशें जारी रहनी चाहिए, क्योंकि यही दबाव उसे आतंकी संगठनों से दूरी बनाए रखने के लिए मजबूर करेगा.

ओवैसी की इन टिप्पणियों से स्पष्ट है कि वह संघर्षविराम को केवल एक अस्थायी राहत मानते हैं और भारत की सुरक्षा और रणनीतिक स्थिति को लेकर सजग बने हुए हैं. उन्होंने शांति की संभावनाओं का स्वागत तो किया, लेकिन साथ ही सरकार से पारदर्शिता और स्पष्ट नीति की मांग भी की.

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