Aligarh Muslim University: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार 8 नवंबर को अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के अल्पसंख्यक दर्जे पर फैसला सुनाते हुए कहा कि एएमयू (AMU) का अल्पसंख्यक दर्जा (Minority Status) बरकरार रहेगा. यह निर्णय 4-3 के बहुमत से किया गया, जिसमें 4 जजों ने सहमति जताई, जबकि 3 जजों ने असहमति व्यक्त की.
इस मामले में सीजेआई और जस्टिस पारदीवाला का फैसला एकमत था, जबकि जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा का निर्णय अलग रहा. सीजेआई ने अपने फैसले में कहा कि अल्पसंख्यक दर्जा मानने के मानदंड क्या होने चाहिए— यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि अल्पसंख्यक चरित्र का उल्लंघन न हो. साथ ही, शैक्षणिक संस्थान को रेगुलेट किया जा सकता है और धार्मिक समुदायों को संस्थाएं स्थापित करने का अधिकार है.
Chief Justice of India DY Chandrachud heading the 7-judge bench says there are four judgements in the case. Four judges give majority verdict, while three judges pass dissent judgement. https://t.co/eK1hDoghik
— ANI (@ANI) November 8, 2024
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी का इतिहास और क्या है विवाद?
सर सैयद अहमद खान ने 1875 में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की स्थापना (अलीगढ़ मुस्लिम कॉलेज) के रूप में की थी. इस कॉलेज का उद्देश्य मुसलमानों के शैक्षिक उत्थान के लिए एक केंद्र स्थापित करना था. साल 1920 में इसे विश्वविद्यालय का दर्जा मिला, जिसके बाद इसका नाम अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय पड़ा.
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी अधिनियम 1920 (AMU Act 1920) में 1951 और 1965 में हुए संशोधनों को मिलीं कानूनी चुनौतियों ने इस पूरे विवाद को जन्म दिया. साल 1967 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि AMU एक सेंट्रल यूनिवर्सिटी है. इसलिए इसे अल्पसंख्यक संस्थान नहीं माना जा सकता. सुप्रीम कोर्ट के फैसले का मुख्य बिंदू यह था कि AMU की स्थापना एक केंद्रीय अधिनियम के तहत हुई है, ऐसा इसलिए AMU के डिग्री की सरकारी मान्यता सुनिश्चित की जा सके. तब सुप्रीम कोर्ट कहा कि अधिनियम मुस्लिम अल्पसंख्यकों के प्रयासों का परिमाण तो हो सकता है लेकिन इसका मतलब यह कतई नहीं है कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की स्थापना मुस्लिम अल्पसंख्यकों ने की थी.
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AMU संशोधन को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 2005 में किया था खारिज
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के अल्पसंख्यक चरित्र की धारणा पर सवाल उठाया. इसके बाद देशभर में मुस्लिम समुदाय ने विरोध प्रदर्शन किए. इसी के चलते साल 1981 में AMU को अल्पसंख्यक का दर्जा देने MS के लिए संशोधन हुआ. इलाहाबाद हाई कोर्ट ने साल 2005 में 1981 के AMU संशोधन अधिनियम को असंवैधानिक करार देते हुए रद्द कर दिया. केंद्र सरकार ने फिर 2006 में इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी. 2016 में केंद्र की बीजेपी सरकार ने अपनी अपील में कहा कि अल्पसंख्यक संस्थान की स्थापना एक धर्मनिरपेक्ष राज्य (secular state) के सिद्धांतों के विपरीत है. साल 2019 में सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली 3 जजों की बेंच ने इस मामले को 7 जजों की संविधान पीठ के पास भेज दिया था. आज इसी पर फैसला आया है.
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