Chenab Bridge : कौन हैं माधवी लता? जिनकी मेहनत रंग लाई और खड़ा हुआ दुनिया का सबसे ऊंचा ब्रिज

Chenab Bridge : आईआईएससी के सिविल इंजीनियरिंग विभाग की माधवी लता ने 1,486 करोड़ रुपये की लागत से बने चिनाब ब्रिज के डिजाइन और निर्माण में अहम सलाहकार की भूमिका निभाई. नदी तल से 359 मीटर की ऊंचाई पर बना यह ब्रिज एफिल टॉवर से भी ऊंचा है. यह ब्रिज हिमालय के कठिन इलाकों में 1,315 मीटर लंबाई तक फैला हुआ है.

By Amitabh Kumar | June 8, 2025 9:42 AM
an image

Chenab Bridge : आपने चेनाब रेल ब्रिज के लुभावने वीडियो और फोटो देखे होंगे जो दुनिया का सबसे ऊंचा रेलवे ब्रिज है. लेकिन क्या आप इसके पीछे की कहानी जानते हैं? आइए इस अनकही कहानी और इसे संभव बनाने वाली महिला के बारे में बताते हैं जिनका नाम प्रो. गली माधवी लता है. माधवी जियो टेक्निकल एक्सपर्ट हैं. उन्होंने दुनिया के सबसे ऊंचे रेलवे पुल, कश्मीर में चेनाब रेल ब्रिज के निर्माण में मदद की. यह  17 साल का मिशन था. इसे इंजीनियरिंग का एक चमत्कार कहा जा रहा है.

चेनाब ब्रिज 359 मीटर ऊंचा है. यह एफिल टॉवर से भी ऊंचा है. ब्रिज कश्मीर को रेल द्वारा शेष भारत से जोड़ता है. यह लचीलेपन और आधुनिक इंजीनियरिंग का प्रतीक है. जब रेलवे परियोजना, जम्मू और कश्मीर में चिनाब ब्रिज का शुक्रवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा उद्घाटन किया गया, तो सुर्खियां सिर्फ दुनिया की सबसे ऊंची रेलवे आर्च पर ही नहीं गईं, बल्कि पर्दे के पीछे खड़ी प्रो. गली माधवी लता की भी चर्चा होने लगी. वह भारतीय विज्ञान संस्थान (आईआईएससी), बेंगलुरु की प्रोफेसर हैं.

ब्रिज के डिजाइन और निर्माण में महत्वपूर्ण सलाहकार की भूमिका निभाई प्रोफेसर लता ने

डेक्कन हेराल्ड से इस संबंध में खबर प्रकाशित की. खबर में बताया गया कि लगभग दो दशकों तक, आईआईएससी के सिविल इंजीनियरिंग विभाग की रॉक इंजीनियरिंग विशेषज्ञ प्रोफेसर लता ने 1,486 करोड़ रुपये के चिनाब ब्रिज के डिजाइन और निर्माण में महत्वपूर्ण सलाहकार की भूमिका निभाई. यह एक इंजीनियरिंग उपलब्धि है जो अब कश्मीर घाटी को देश के बाकी हिस्सों से ट्रेन द्वारा जोड़ती है.

नदी तल से 359 मीटर ऊपर बना यह ब्रिज एफिल टॉवर से भी ऊंचा है. यह हिमालय के दुर्गम भूभाग में 1,315 मीटर तक फैला हुआ है. रिपोर्ट के अनुसार, ढलानों की स्थिरता और पुल की नींव के डिजाइन को लेकर प्रोफेसर लता ने खास काम किया. यह भारत के सबसे भूवैज्ञानिक रूप से चुनौतीपूर्ण क्षेत्रों में से एक में एक महत्वपूर्ण पहलू था. लता को वर्ष 2005 में उत्तर रेलवे और परियोजना ठेकेदार एफकॉन्स द्वारा परियोजना के लिए चुना गया था.

डिजाइन-एज-यू-गो एप्रोच

पारंपरिक तरीकों के बजाय टीम ने “जैसे-जैसे काम बढ़े, वैसे-वैसे डिजाइन” वाला तरीका अपनाया. लता ने बताया, “हमें काम के दौरान लगातार बदलाव करने पड़े, क्योंकि खुदाई शुरू करने पर पता चला कि पहले मिला भूवैज्ञानिक डेटा चट्टानों की असली स्थिति से अलग था.”

संबंधित खबर
संबंधित खबर और खबरें
होम E-Paper News Snaps News reels
Exit mobile version