नयी दिल्ली : लॉकडाउन के दौरान प्रवासी कामगारों को उनके घरों तक पहुंचाने के लिये सरकार द्वारा ट्रेनें चलाने की तैयारियों के बीच धर्मवीर और तबारत मंसूर की जान चली गई .
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इनमें से एक व्यक्ति की मौत दिल्ली से बिहार जाने के दौरान बेहोश होकर साइकिल से गिर जाने पर हो गई, जबकि दूसरे व्यक्ति की मौत महाराष्ट्र से उत्तर प्रदेश जाने के दौरान हुई. लंबी यात्रा की थकान के चलते दोनों लोगों की मौत हुई.
इन जैसे कई प्रवासी मजदूर काम बंद हो जाने, अपने पास पैसे खत्म हो जाने, अपने सिर पर छत नहीं होने के चलते सैकड़ों और हजारों किलोमीटर दूर स्थित अपने-अपने घरों के लिये पैदल, साइकिल या रिक्शा-ठेला से निकल पड़े.
इस मुश्किल वक्त में उनके घर-परिवार की याद सता रही थी, लेकिन वे उन तक नहीं पहुंच सकें. कुछ लोगों ने अपनी बचत के थोड़े से पैसों से साइकिल खरीदी, जबकि कुछ लोग अपनी पीठ और सिर पर सामान लेकर सुनसान पड़ी सड़कों पर निकल पड़े. शुक्रवार रात, पहली विशेष ट्रेन 1200 से अधिक फंसे हुए प्रवासियों को तेलंगाना से लेकर झारखंड के हटिया पहुंची, जहां से बसों में सवार होकर उन्हें अपने-अपने जिलों में ले जाया गया.
इसी बीच, उत्तर प्रदेश में शाहजहांपुर के एक अस्पताल में 32 वर्षीय धर्मवीर की मौत हो गई. वह 28 अप्रैल को अन्य मजदूरों के साथ दिल्ली से बिहार के खगड़िया तक करीब 1200 किमी के सफर पर साइकिल से निकला था क्षेत्राधिकारी (नगर) प्रवीण कुमार ने कहा, ‘‘शुक्रवार रात, वे लोग शाहजहांपुर में दिल्ली-लखनऊ राजमार्ग पर रूके थे.
जब धर्मवीर की तबियत ज्यादा बिगड़ गई तब अन्य मजदूर उसे मेडिकल कॉलेज ले गये, जहां उसे मृत घोषित कर दिया गया. ” इससे एक दिन पहले, 50 वर्षीय तबारत की मध्य प्रदेश के सेंधवा में मौत हो गई. वह उत्तर प्रदेश के महाराजगंज स्थित अपने घर के लिये महाराष्ट्र के भिवंडी से 390 किमी साइकिल चला कर सेंधवा तक ही पहुंच पाया.
उसके साथ यात्रा कर रहे रमेश पवार ने बताया, ‘‘बरवानी में सेंधवा के पास बृहस्पतिवार को उसकी मौत हो गई, जो संभवत: थकान और दिल का दौरा पड़ने से हुई.”पवार ने इस पलायन के बारे में बताया कि 11 लोगों का समूह 25 अप्रैल को साइकिल से महाराजगंज के लिये रवाना हुआ था. तबारत का शव उसके साथ के अन्य लोग महाराजगंज ले जाना चाहते थे लेकिन पुलिस ने लॉकडाउन के प्रतिबंधों के चलते इसकी इजाजत नहीं दी.
इसके बाद उसे सेंधवा में ही दफनाया गया और घर पहुंचने की उसकी इच्छा अधूरी रह गई. उल्लेखनीय है कि 25 मार्च से शुरू हुआ राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन अब 17 मई तक रहेगा. महानगरों और अन्य शहरों से प्रवासी कामगारों और दिहाड़ी मजदूरों का पलायन आजादी के बाद से लोगों का संभवत: सबसे बड़ा पलायन है. कुछ लोग घर पहुंच गये, कुछ रास्ते में हैं और कुछ लोगों की बीच रास्ते में ही मौत हो गई.
तेलंगाना से पैदल ही छत्तीसगढ़ के बीजापुर के लिये 150 किमी के सफर पर निकली 12 वर्षीय जामलो कदम लॉकडाउन के दौरान जान गंवाने वाले बच्चों में शामिल है. वह तेलंगाना में मिर्च के एक खेत में काम करती थी.
एक अधिकारी ने बताया कि वह 15 अप्रैल को घर के लिये चली थी और 18 अप्रैल सुबह अपने गांव से करीब 50 किमी पहले ही ही उसकी मौत हो गई. एक स्वास्थ्य अधिकारी ने बताया, ‘‘उसकी कोविड-19 जांच रिपोर्ट नेगेटिव आई.” इंसाफ अली (35) उत्तर प्रदेश के श्रावस्ती जिला स्थित अपने गांव पहुंच गया था लेकिन वह घर नहीं पहुंच सका.
अंग्रेजी समाचार पत्र इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक उसने मुंबई से 1500 किमी की दूरी तय की थी. उसके मठकांवना गांव पहुंचने पर उसे इस हफ्ते सोमवार सुबह पृथक-वास में भेज दिया गया. लेकिन दोपहर में उसकी मौत हो गई. अपने घर-परिवार के पास प्रवासी कामगारों के पहुंचने की व्याकुलता और भूखे-प्यासे पैदल ही उनके हजारों किमी की यात्रा करने की मीडिया में ऐसी कई खबरों आई.
इस तरह की पहली मौत, 39 वर्षीय रणवीर सिंह की हुई थी, जो दिल्ली में एक रेस्तरां में ‘डिलिवरी ब्वॉय’ के रूप में काम करता था. वह मध्य प्रदेश के मुरैना के लिये 200 किमी से अधिक का सफर कर आगरा तक पहुंचा था, जहां उसकी मौत हो गई. शव परीक्षण रिपोर्ट में दिल का दौरा पड़ने से उसकी मौत होने की बात कही गई.
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