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न्यायमूर्ति प्रतिभा एम. सिंह ने इस महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि मौजूदा भारतीय कानून के तहत, अगर मृत व्यक्ति की सहमति का प्रमाण दिया जाता है, तो मृत्यु के बाद प्रजनन करने में कोई कानूनी बाधा नहीं है. अदालत ने यह भी कहा कि केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय इस मामले पर विचार करेगा कि क्या मृत्यु के बाद प्रजनन से संबंधित मुद्दों को हल करने के लिए किसी कानून, अधिनियम या दिशा-निर्देश की आवश्यकता है.
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इस मामले में, याचिकाकर्ता के बेटे, जो कैंसर से पीड़ित था, ने 2020 में कीमोथेरेपी शुरू होने से पहले अपने वीर्य को फ्रीज करवा दिया था. डॉक्टरों ने बताया था कि कैंसर के इलाज के कारण वह भविष्य में संतान उत्पन्न करने में सक्षम नहीं होगा, इसलिए उसने आईवीएफ लैब (IVF Lab) में अपने स्पर्म को संरक्षित (preserve sperm) करने का निर्णय लिया. बेटे की मृत्यु के बाद, उसके माता-पिता ने अस्पताल से उसके वीर्य का नमूना प्राप्त करने की मांग की, लेकिन अस्पताल ने उचित अदालत के आदेश के बिना इसे सौंपने से इनकार कर दिया.
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अदालत ने 84 पन्नों के अपने फैसले में कहा कि इस याचिका ने संतान उत्पन्न करने के कानूनी और नैतिक पहलुओं सहित कई महत्वपूर्ण मुद्दों को उठाया है. अदालत ने कहा कि माता-पिता को अपने मृत बेटे की अनुपस्थिति में पोते या पोती को जन्म देने का अवसर मिल सकता है. ऐसे मामलों में अदालत के सामने केवल कानूनी मुद्दे ही नहीं, बल्कि नैतिक, आचारिक और आध्यात्मिक प्रश्न भी खड़े होते हैं. सर गंगाराम अस्पताल (Sir Ganga Ram Hospital) को निर्देश दिया गया कि वह याचिकाकर्ता दंपती को उनके अविवाहित मृत बेटे के संरक्षित वीर्य को सौंप दे, ताकि वे सरोगेसी की प्रक्रिया के माध्यम से अपनी पारिवारिक वंश को आगे बढ़ा सकें.
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