नयी दिल्ली: प्रकृति क्या थी और हमने क्या कर दिया. एक ट्वीटर यूजर का ये ट्वीट हिमाचल में मौजूद धौलाधर पर्वत श्रेणी को लेकर किया गया है. लेकिन, ये लाइन लिखी क्यों गयी होगी. क्योंकि धौलाधर पर्वत श्रृंखला बीते 30 सालों में पहली बार जालंधर से देखी जा सकती है, नंगी आंखों से.
लॉकडाउन से आई प्रदूषण में गिरावट
लेकिन सवाल ये है कि आखिर ऐसा क्या हुआ कि 30 सालों से जो धौलाधर की पर्वत श्रेणी आंखों से ओझल थी वो अचानक दिखने लग पड़ी. बता दूं कि इसका कारण कोरोना वायरस के फैलते संक्रमण की वजह से देश भर में लगाया गया लॉकडाउन है. लॉकडाउन मतलब कि सबकुछ बंद. गाड़ियां बंद. रेलगाड़ियां बंद. फ्लाइट्स बंद, मॉल, सिनेमाहाल सबकुछ बंद. फैक्ट्रियां भी बंद. और लोग…वे भी अपने-अपने घरों में बंद.
दो सप्ताह हो गये. लॉकडाउन जारी है. अब जब सबकुछ बंद है अचानक से प्रदूषण में गिरावट आई है. बहुत ज्यादा गिरावट. हवा साफ है…फैक्ट्रियों का गंदा पानी नदियों में नहीं गिर रहा. नदियां भी साफ हैं. आसमान नितांत नीला दिखाई पड़ रहा है. ऐसा लगता है कि जैसे प्रकृति खुद सुकून का सांस ले रही है. गहरी और लंबी. और पहाड़-पर्वत, नदियां आकाश सब मुस्कुरा रहे हैं. स्वच्छ होकर. ना तो सड़कों पर गाड़ियों का शोर है और ना ही लोगों की भीड़. ना तो दम घोंटु धूल है और ना जानलेवा धुआं. बस शांति है चारों ओर.
हरभजन सिंह ने भी किया ट्वीट
इसी का परिणाम है कि पंजाब में जालंधर से 200 किलोमीटर दूर हिमाचल में बसा धौलाधर दिखाई पड़ा. नंगी आंखों से. ये इस बात का सबूत है कि हमने प्रकृति के साथ कितना गलत किया हुआ था. सालों से. जरूर मानव जाति संकट में है, लेकिन प्रकृति को मुस्कुराने का मौका मिला है. शायद हम सीख लें. आगे जीवनदायी प्रकृति की इज्जत करें. उसके निर्देशों को समझें. धौलाधर वाली बात को तो खुद पूर्व क्रिकेटर हरभजन सिंह ने भी ट्वीट किया है. आप समझ सकते हैं कि ये कितना महत्वपूर्ण है.
केवल धौलाधर पर्वत श्रृंखला का दिखना ही सुखद नहीं है. बल्कि कई और बातें भी आश्चर्यचकित करने वाली है. विलुप्त होने की कगार पर खड़ी गौरेया दोबारा घरों के मुंडेर पर दिखने लगी है. बहुत सालों बाद लोगों को आर्टिफिशियल अलार्म की जरूरत नहीं पड़ रही.
सुधरा शहरों का एयर क्वालिटी इंडेक्स
दिल्ली सहित कई शहरों की हवा भी गजब साफ हुई है. एयर क्वालिटी इंडेक्स 24 से 40 के बीच ही घूम रहा है. याद कीजिये. बीते कुछ महीने पहले ये 400 के पार था. आंखों में जलन थी. दम घुटता था. अगर हमारे पास विवेक है तो समझ सकते हैं कि, हमने कितना गलत किया है अतीत में. अभी बीते कुछ महीने पहले तक. सड़क पर बेतरतीब गाड़ियां. फैक्ट्रियों से निकलता काला धुआं और नदियों में गिरता जहरीला पानी.
क्या इससे कुछ सबक लेगा इंसान
हर विपदा कुछ सिखा के जाती है. मानव जाति जरूर संकट में है. लेकिन हालात हमें बहुत बड़ी सीख दे रहे हैं. हमें प्रकृति को समझना होगा. हमारे लिये जरुरी है कि इज्जत करें जीवन में प्रकृति के योगदान की. सम्मान करें उसने जो दिया है उन संसाधनों की. जीयें प्रकृति के निर्देशों पर. ताकि धौलाधर दिखाई देता रहे. चिड़ियों का चहकना जारी रहे. नदियों की निर्झरता बनी रहे. हवा जहरीला ना हो बल्कि चले तो लगे कि कोई गुनगुनाया है. आसमान इतना नीला लगे कि, जैसे आदि है ना अंत. हो सकता है कि हम समझेंगे.
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