सरकार ने एक राष्ट्र, एक चुनाव की संभावनाएं तलाशने के लिए पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया है. पीटीआई की एक रिपोर्ट के मुताबिक, कृष्णमूर्ति कहा कि संभावना पर विचार करना, उसकी जांच करना अच्छी बात है. कृष्णमूर्ति के अनुसार एक साथ चुनाव कराने के फायदे और नुकसान दोनों हैं. पूर्व निर्वाचन आयुक्त कृष्णमूर्ति ने कहा कि एक साथ चुनाव कराने के कई फायदे हैं, इस अर्थ में कि आप चुनाव प्रचार आदि में इतना समय बर्बाद नहीं करेंगे. संभवत: चुनाव खर्च में भी कमी आयेगी.
कृष्णमूर्ति ने कहा कि एक साथ चुनाव कराकर काफी धन और समय बचाना बेहतर होगा. उन्होंने रेखांकित किया कि अतीत में कुछ राज्यों में संसदीय चुनावों के साथ-साथ राज्य चुनाव भी कराए गए थे और लोगों ने अलग-अलग तरीके से मतदान किया. कृष्णमूर्ति ने कहा कि इस बात के पर्याप्त साक्ष्य हैं कि विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनाव एक साथ कराए जाने पर भी मतदाता अलग-अलग तरीके से मतदान करते हैं. कृष्णमूर्ति ने कहा कि एक साथ चुनाव कराना सैद्धांतिक रूप से बहुत आकर्षक है, लेकिन व्यावहारिक रूप से इसमें कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है. उन्होंने कहा, अगर इसे लाया जा सकता है तो यह वांछनीय है, लेकिन यह आसान नहीं होगा.
वहीं, यह पूछे जाने पर कि क्या एक साथ चुनाव कराने पर राजनीतिक सहमति बनाना चुनौतीपूर्ण होगा, कृष्णमूर्ति ने कहा कि यह चुनौतीपूर्ण होगा इसमें कोई संदेह नहीं है. उन्होंने कहा कि विधि आयोग एक साथ चुनाव कराए जाने के मुद्दे पर विचार कर चुका है और संसद की स्थायी समिति ने भी संभव होने पर एक साथ चुनाव कराने का सुझाव दिया है. कृष्णमूर्ति ने कहा, एक साथ चुनाव कराना निश्चित रूप से संभव है क्योंकि किसी एक साल होने वाले सभी राज्यों के चुनावों को एक साथ कराया जा सकता है. इससे कम से कम एक साल में कई चुनाव कराने का तनाव कम हो जाएगा. यह एक साथ चुनाव कराने के लिए पहला कदम हो सकता है.
कृष्णमूर्ति ने यह भी कहा कि सीमावर्ती राज्यों को छोड़कर अन्य राज्यों में चुनाव तीन या चार चरणों के स्थान पर एक ही दिन कराए जाने चाहिए. कृष्णमूर्ति की राय में विभिन्न चुनाव एक साथ कराने की व्यवस्था की शुरूआत के लिए सबसे महत्वपूर्ण परिवर्तन एक संवैधानिक संशोधन है. उन्होंने कहा, एक साथ चुनाव कराने की राह में प्रशासनिक मुद्दे भी हैं. चुनाव कराने के लिए बहुत अधिक खर्च, पर्याप्त सशस्त्र बल और जनशक्ति की आवश्यकता होती है, लेकिन ये ऐसे मुद्दे हैं जिन्हें दूर किया जा सकता है. लेकिन संवैधानिक मुद्दा सबसे प्रमुख चुनौती है.
वहीं, ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ पर कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने कहा कि मैं यह कहने का तर्क समझता हूं कि हम यहां हर छह महीने में चुनाव क्यों चाहते हैं. वे तर्क दे रहे हैं कि इसमें पैसा खर्च होता है और ऐसा होता है. एक आदर्श आचार संहिता इसलिए कुछ समय के लिए शासन व्यवस्था पंगु हो जाएगी. हम उन सभी तर्कों को समझते हैं लेकिन इसका प्रतिवाद यह है कि आपका निदान सही हो सकता है लेकिन आपका नुस्खा गलत हो सकता है. आपका नुस्खा संसदीय प्रणाली में काम नहीं कर सकता। .ऐसा कोई व्यावहारिक तरीका नहीं है जिससे आप ऐसी प्रणाली लागू कर सकें.
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