Free Govt Scheme : क्या सभी मुफ्त की सरकारी योजनाएं बंद हो जाएंगी? एक खबर के सामने आने के बाद ये सवाल उठने लगे हैं. दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने चुनावों के दौरान राजनीतिक दलों द्वारा मुफ्त सौगातों का वादा करने के चलन के खिलाफ एक नयी याचिका पर केंद्र तथा निर्वाचन आयोग से जवाब मांग लिया है.
भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने बेंगलुरु निवासी शशांक जे. श्रीधारा की याचिका पर भारत सरकार तथा निर्वाचन आयोग को नोटिस जारी किया है. याचिका वकील श्रीनिवास द्वारा दायर किया गया है जिसमें निर्वाचन आयोग को राजनीतिक दलों को चुनाव से पहले मुफ्त सौगातें देने के वादे करने से रोकने के लिए प्रभावी कदम उठाने का निर्देश दिए जाने का भी अनुरोध किया गया है.
मुफ्त की रेवड़ियां बांटने से बेहिसाबी वित्तीय बोझ बढ़ता है
याचिका में कहा गया है कि मुफ्त की रेवड़ियां बांटने के बेलगाम वादे सरकारी राजकोष पर बड़ा और बेहिसाबी वित्तीय बोझ डालते हैं. इसके अलावा, यह सुनिश्चित करने के लिए कोई तंत्र नहीं है कि चुनाव पूर्व किए वादे पूरे किए जाएं. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को इसी मुद्दे पर अन्य याचिकाओं से संबद्ध कर दिया.
लोकलुभावन उपायों पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए
इससे पहले, सुप्रीम कोर्ट चुनावों के दौरान राजनीतिक दलों द्वारा मुफ्त की रेवड़ियां बांटने का वादा करने के चलन के खिलाफ याचिकाओं पर सुनवाई करने पर सहमत हो गया था. वकील एवं जनहित याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता विजय हंसारिया ने मामले पर तत्काल सुनवाई का अनुरोध किया था. उपाध्याय की याचिका में कहा गया है कि मतदाताओं से अनुचित राजनीतिक लाभ हासिल करने के लिए लोकलुभावन उपायों पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए क्योंकि वे संविधान का उल्लंघन करते हैं और निर्वाचन आयोग को उचित निवारक उपाय करने चाहिए.
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संविधान की भावना के लिए सबसे बड़ा खतरा
याचिका में कोर्ट से यह घोषित करने का भी आग्रह किया गया है कि चुनाव से पहले सार्वजनिक निधि से अतार्किक मुफ्त की रेवड़ियां बांटने का वादा मतदाताओं को अनुचित रूप से प्रभावित करता है, समान अवसरों में बाधा डालता है और चुनाव प्रक्रिया की शुचिता को दूषित करता है. याचिका में कहा गया है कि याचिकाकर्ता का कहना है कि चुनावों के मद्देनजर मुफ्त की रेवड़ियां बांटने का वादा कर मतदाताओं को प्रभावित करने की राजनीतिक दलों की हाल की प्रवृत्ति न केवल लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए बल्कि संविधान की भावना के लिए सबसे बड़ा खतरा है.
(इनपुट पीटीआई)
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