Holi 2025: यहां से हुई थी होली की शुरुआत, पांच हजार साल पुराना मंदिर आज भी है गवाही

Holi 2025: होली हर साल पूरे भारत में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है, लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि इस रंग-बिरंगे उत्सव की शुरुआत कहां से हुई थी और इसके पीछे का इतिहास क्या है.

By Prashant Tiwari | March 2, 2025 5:38 PM
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Holi 2025: भारत विविधता से भरा देश है. इसे एक सूत्र में पिरोने का काम यहां के त्योहार करते हैं. वैसे तो भारत में सभी धर्म के लोग रहते हैं और उनके अपने-अपने त्यौहार है. लेकिन होली एक ऐसा त्यौहार है जो सभी धर्मों के लोगों से धर्म की बंदिश खत्म कर एक साथ आने का मौका देता है. होली हर साल पूरे भारत में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है, लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि इस रंग-बिरंगे उत्सव की शुरुआत कहां से हुई थी और इसके पीछे का इतिहास क्या है. अगर आप भी उनमें से एक हैं तो आपको परेशान होने की जरूरत नहीं है. आपको इस आर्टिकल में होली से जुड़ी सारी जानकारी मिल जाएगी. तो चलिए चलते हैं रंगो के इस त्यौहार के इतिहास की छोटे सी यात्रा पर… 

यूपी के हरदोई  में हुई थी होली की शुरुआत

होली का इतिहास बहुत पुराना है और इसे लेकर पौराणिक कथाएं भी बहुत दिलचस्प हैं. इस त्यौहार की शुरुआत उत्तर प्रदेश के हरदोई शहर से हुई थी. हरदोई के ककेड़ी गांव का 5000 साल से भी पुराना नृसिंह भगवान मंदिर, प्रहलाद घाट, हिरण्यकश्यप के महल का खंडहर, आज भी इसकी गवाही दे रहे हैं. उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले का पुराना नाम हरिद्रोही था. यह हिरण्यकश्यप की राजधानी थी. हिरण्यकश्यप एक राक्षस था और वह भगवान विष्णु का कट्टर शत्रु था. पौराणिक कथाओं के अनुसार हिरण्यकश्यप ने भगवान विष्णु के खिलाफ कई जुल्म किए थे और भगवान से बदला लेने के लिए उसने कई साज‍िशें रचीं थीं. हिरण्यकश्यप के बेटे प्रहलाद ने भगवान विष्णु की भक्ति में अपना जीवन समर्पित किया, जो उसके पिता को बिल्कुल पसंद नहीं आता था. हिरण्यकश्यप ने कई बार प्रहलाद को मारने की कोशिश की, लेकिन भगवान की कृपा से वह हर बार बच जाता था.

प्रहलाद को मारने की कोशिश में मरी होलिका

एक दिन हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका से प्रहलाद को मारने के लिए कहा. होलिका को भगवान से यह वरदान प्राप्त था कि जब वह आग में बैठती थी, तो वह जलती नहीं थी. इसलिए होलिका ने प्रहलाद को अपनी गोदी में लेकर आग में बैठने का प्रयास किया. लेकिन भगवान विष्णु की माया के अनुसार, होलिका जलकर भस्म हो गई, जबकि प्रहलाद बच गया. यह घटना होली के त्यौहार की उत्पत्ति का कारण बनी. हरदोई के लोग इस घटना के बाद बहुत खुश हुए और उन्होंने एक-दूसरे को रंग और गुलाल लगाकर खुशी मनाई, तभी से होली का त्योहार मनाने की परंपरा शुरू हुई. 

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हरदोई गजेटियर में भी उल्लेखित है होली

होली की शुरुआत हरदोई से होने की बात धार्मिक ग्रंथों और हरदोई गजेटियर में भी उल्लेखित है. हरदोई में भगवान विष्णु ने दो बार अवतार लिया था – पहला अवतार नरसिंह रूप में और दूसरा अवतार वामन रूप में. नरसिंह रूप में भगवान ने हिरण्यकश्यप का वध किया था और उसके बाद इस स्थान पर प्रहलाद की रक्षा की थी. इस घटना को याद करते हुए हर साल होली मनाई जाती है.

नृसिंह भगवान का मंदिर बना होली का प्रतीक

हरदोई के सांडी ब्लाक के ककेड़ी गांव में इस ऐतिहासिकता का प्रतीक नृसिंह भगवान का मंदिर इस बात का प्रतीक बना हजारों साल से आज भी गवाही दे रहा है. स्थानीय लोगों और इतिहासकारों की मानें तो यह मंदिर 5000 साल से भी ज्यादा पुराना है. ककेड़ी गांव के इस मंदिर में भगवान नृसिंह की मूर्ति है. इसकी गवाही इसकी तमाम मूर्तियां और उनके कार्बन की उम्र देती है. हालांकि ककेड़ी गांव के मंदिर का समय-समय पर जीर्णोद्धार होता रहा है. इस गांव के लोग इसी ककेड़ी गांव के नृसिंह भगवान के मंदिर जाकर रंग लगाकर होली की शुरुआत करते हैं.

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