Justice Yashwant Varma: जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग लाने की तैयारी, लोकसभा अध्यक्ष को सांसदों ने सौंपा ज्ञापन

Justice Yashwant Varma: जस्टिस यशवंत वर्मा को पद से हटाने की प्रक्रिया शुरू हो गई है. सत्र शुरू होते ही सांसदों ने सोमवार को लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला को एक ज्ञापन सौंपा. संविधान के अनुच्छेद 124, 217 और 218 के तहत न्यायमूर्ति वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव पर 145 लोकसभा सदस्यों ने हस्ताक्षर किए.

By ArbindKumar Mishra | July 21, 2025 4:00 PM
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Justice Yashwant Varma: जस्टिस वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव नोटिस पर भाजपा सांसद आरएस प्रसाद ने कहा, “यह एक संवैधानिक प्रक्रिया है. न्यायपालिका की स्वतंत्रता के लिए एक न्यायाधीश का आचरण भी उतना ही महत्वपूर्ण है. हमने इस संबंध में अपना नोटिस दायर कर दिया है.” ‘‘न्यायपालिका की ईमानदारी, पारदर्शिता और स्वतंत्रता तभी सुनिश्चित होगी, जब न्यायाधीशों का आचरण अच्छा होगा. आरोप संगीन थे और ऐसे में महाभियोग के लिए नोटिस दिया गया है. हमने आग्रह किया है कि कार्यवाही जल्द शुरू होनी चाहिए.’’

कांग्रेस सहित इन पार्टियों और नेताओं ने ज्ञापन पर किए हस्ताक्षर

जस्टिस वर्मा को पद से हटाने के लिए लोकसभा अध्यक्ष को जो ज्ञापन सौंपा गया, उसमें कांग्रेस, टीडीपी, जेडीयू, जेडीएस, जन सेना पार्टी, अगप, एसएस (शिंदे), एलजेएसपी, एसकेपी, सीपीएम आदि सहित विभिन्न दलों के सांसदों ने हस्ताक्षर किए. जबकि हस्ताक्षरकर्ताओं में सांसद अनुराग सिंह ठाकुर, रविशंकर प्रसाद, विपक्ष के नेता राहुल गांधी, राजीव प्रताप रूडी, पीपी चौधरी, सुप्रिया सुले, केसी वेणुगोपाल और अन्य शामिल हैं.

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राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ को भी सौंपा गया ज्ञापन

राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ को सौंपे गए नोटिस पर 63 सांसदों ने हस्ताक्षर किए हैं. कांग्रेस सांसद सैयद नासिर हुसैन ने कहा कि कुल 63 सांसदों ने हस्ताक्षर किए हैं और अब इस मामले की जांच होगी और दोषी पाए जाने पर संबंधित न्यायाधीश को हटाया जाएगा. उन्होंने कहा कि इस मामले पर विपक्षी ‘इंडिया’ गठबंधन के घटक एकजुट हैं.

किसी जस्टिस को हटाने की क्या है प्रक्रिया

किसी जस्टिस को हटाने के प्रस्ताव पर लोकसभा में कम से कम 100 और राज्यसभा में 50 सांसदों के हस्ताक्षर होने चाहिए. प्रस्ताव को सदन के अध्यक्ष/सभापति द्वारा स्वीकार या अस्वीकार किया जा सकता है. यदि प्रस्ताव स्वीकार कर लिया जाता है, तो अध्यक्ष या सदन के सभापति न्यायाधीश जांच अधिनियम के अनुसार एक समिति का गठन करते हैं.

क्या है आरोप

इस साल मार्च में जस्टिस वर्मा के लुटियंस दिल्ली स्थित आवास में आग लगने की घटना हुई थी और घर के बाहरी हिस्से में एक स्टोररूम से जली हुई नकदी से भरी बोरियां बरामद हुई थीं. उस समय जस्टिस वर्मा दिल्ली उच्च न्यायालय में पदस्थ थे. जस्टिस वर्मा को बाद में इलाहाबाद हाईकोर्ट स्थानांतरित कर दिया गया. लेकिन उन्हें कोई न्यायिक कार्य नहीं सौंपा गया. तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना के आदेश पर हुई आंतरिक जांच में उन्हें दोषी ठहराया गया है.

जस्टिस वर्मा ने आरोपों से किया इनकार

जस्टिस वर्मा ने हालांकि किसी भी गलत कार्य में संलिप्त होने से इनकार किया है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित आंतरिक जांच समिति ने निष्कर्ष निकाला है कि जस्टिस और उनके परिवार के सदस्यों का उस भंडारकक्ष पर गुप्त या सक्रिय नियंत्रण था, जहां नकदी पाई गई थी. इससे यह साबित होता है कि उनका कदाचार इतना गंभीर है कि उन्हें हटाया जाना चाहिए.

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