दरअसल, मामला मध्यस्थता से जुड़ी एक याचिका का था, जिसकी सुनवाई सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच कर रही थी. कोर्ट ने अपना आदेश डिक्टेट कर दिया था, पर जजों ने उस पर दस्तखत नहीं किए थे. तभी वकील बेंच के सामने आकर आदेश में बदलाव की मांग करने लगे. इसे देखकर सीजेआई ने पूछा, “आपको कैसे पता चला कि क्या आदेश दिया गया है? अभी तो इस पर जजों ने हस्ताक्षर भी नहीं किए. यह तो अभी केवल कोर्ट मास्टर ने नोट किया है.”
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वकील ने जवाब में कहा कि उन्हें यह जानकारी कोर्ट मास्टर से मिली है. यह सुनते ही सीजेआई का गुस्सा भड़क गया और उन्होंने कहा, “आपकी हिम्मत कैसे हुई कोर्ट मास्टर से बात करने की और यह जानने की कि क्या डिक्टेट किया गया है?” उन्होंने स्पष्ट किया कि अंतिम आदेश वही होता है जिस पर जजों के हस्ताक्षर होते हैं, और कहा, “मेरे साथ ऐसा मजाक नहीं चलेगा.”
सीजेआई ने अपनी नाराज़गी को आगे बढ़ाते हुए कहा कि यह अनुचित है. उन्होंने गुस्से में कहा, “कल को आप मेरे घर आएंगे और मेरे निजी सचिव से पूछेंगे कि मैं क्या कर रहा हूं? वकीलों को आखिर क्या हो गया है?” उन्होंने यह भी कहा, “अब मेरा कार्यकाल ज्यादा नहीं बचा है, लेकिन अपने आखिरी दिन तक मैं ही यहां का बॉस रहूंगा.” ध्यान देने योग्य है कि सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ 10 नवंबर को सेवानिवृत्त होने वाले हैं.
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