सूत्रों के मुताबिक, सुरक्षा कारणों से उन्हें ऐसा करने की सलाह दी गयी है. हालांकि, उनकी मुश्किलें यहीं खत्म नहीं होती हैं. उनके लिए सबसे बड़ी मुसीबत खेतों में पक्की फसलों को काटने के लिए श्रमिकों की कमी है. चानना के सीमांत गांव के रहने वाले राजकुमार के मुताबिक, लंबे अरसे से बनी हुई शांति के भंग होते ही सबसे पहले वे प्रवासी श्रमिक उन्हें छोड़ कर भाग निकले, जिनके आसरे सही मायने में आजकल सीमांत गांवों में फसलों की पैदावार हो रही है.
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अरनिया गांव के सीमावर्ती किसान बहुतेरी कोशिश कर रहे हैं कि प्रवासी श्रमिकों का सहारा मिल जाए, पर गोलीबारी के डर से प्रवासी श्रमिक मुहंमांगे मेहनताने पर भी उन खेतों में जाने को तैयार नहीं हैं, जो जीरो लाइन से सटे हुए हैं. नतीजतन गांववासियों को अपने सभी कामकाज छोड़ कर फसलों को समेटने में जुट जाना पड़ा है. यह बात दीगर है कि उस पार पाकिस्तानी सेना ने अपने किसानों को पहले ही चेताते हुए उस पार के खेतों से सभी फसलों को कटवा दिया था. इस बीच, प्रशासन ने जम्मू सीमा के पांच किमी के दायरे में दीपावली पर पटाखे बेचने या फोड़ने से मना कर दिया है.
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