चरम पर पहुंचा इजराइल और फिलीस्तीन विवाद, जानें संघर्ष की असली वजह और क्या है दोनों देशों की मांग

इजराइल-फिलीस्तीन संघर्ष का इतिहास फिलीस्तीन में यहूदियों के आप्रवासन और उनके यहां बसने से जुड़ा है. यह तनाव तब चरम पर पहुंच गया, जब बहुसंख्यक अरब मुस्लिमों की इस भूमि को बांटकर अरबों और यहूदियों के लिए अलग-अलग स्वतंत्र देश बनाने की घोषणा हुई.

By Prabhat Khabar News Desk | October 17, 2023 12:29 PM
an image

इस महीने की सात तारीख को इस्राइल के साथ पूरा विश्व तब सन्न रह गया जब गाजा पट्टी से हमास द्वारा इस्राइल पर महज कुछ मिनटों में हजारों रॉकेट दाग दिये गये. साथ ही हमास के सैकड़ों आतंकी विभिन्न स्थानों पर सुरक्षा घेरा तोड़ते हुए गाजा सीमा के पार इजराइली शहरों और कस्बों में घुस आये और अंधाधुंध गोलियां बरसानी शुरू कर दी. इस आतंकी कृत्य में सैकड़ों इजराइल सैनिक और नागरिक मारे गये. जबकि अनेक घायल हुए. हमास के आतंकियों ने 100 से अधिक इजराइल नागरिकों को बंधक भी बना लिया. हालांकि, हमले के तुरंत बाद इजराइल ने जवाबी कार्रवाई शुरू कर दी और औपचारिक रूप से हमास के विरुद्ध युद्ध की घोषणा की.

ऐसा पहली बार नहीं हुआ है जब हमास और इजराइल के बीच युद्ध छिड़ा है, हमास अक्सर गाजा पट्टी से इजराइल पर हमले और इजराइल जवाबी कार्रवाई करता रहता है. पर सात अक्तूबर को हुआ हमला अब तक का सबसे भीषण हमला बताया जा रहा है. इस्राइल-हमास के बीच वर्तमान में जारी संघर्ष भूमि, संप्रभुता और सुरक्षा को लेकर दोनों पक्षों के बीच लंबे समय से जारी संघर्ष का ही एक चरण है.

Also Read: इस्राइल में फंसी झारखंड की बेटी बिनिता घोष, बंकर में कैद होने को हुई मजबूर, जानें क्या है ताजा हालात
आप्रवासन बना संघर्ष की वजह

इजराइल-फिलीस्तीन के बीच संघर्ष की उत्पत्ति 19वीं सदी के अंत और 20वीं सदी के आरंभ से शुरू हुई जब फिलीस्तीन में यहूदियों के आप्रवासन में वृद्धि हुई. इससे यहूदी आप्रवासियों और अरब लोगों के बीच तनाव उत्पन्न होने लगा.

इजराइल का उदय

वर्ष 1917 में प्रथम विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटिश सरकार ने बाल्फोर घोषणा जारी की थी जिसमें फिलीस्तीन में ‘यहूदी लोगों के लिये राष्ट्रीय गृह’, यानी यहूदियों के अपने देश की स्थापना का वादा किया गया था. तब फिलीस्तीन ओट्टोमन साम्राज्य का हिस्सा था. द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद 1947 में संयुक्त राष्ट्र ने प्रस्ताव 181 को अपनाते हुए फिलीस्तीन को दो स्वतंत्र देशों- यहूदी देश और अरब देश- में विभाजित करने का प्रस्ताव रखा. इस प्रस्ताव में येरुशलम को संयुक्त राष्ट्र के संरक्षण में एक अंतरराष्ट्रीय शहर का दर्जा दिया गया. इस योजना को यहूदी नेताओं ने तो स्वीकार कर लिया, लेकिन अरब नेताओं ने अस्वीकार कर दिया, जिससे दोनों समूहों के बीच हिंसा भड़क उठी.

14 मई, 1948 को इस्राइल ने अपने आपको स्वतंत्र राष्ट्र घोषित कर दिया. स्वतंत्रता की घोषणा के दूसरे ही दिन पांच अरब देशों की सेनाओं ने नये बने इस्राइल पर हमला कर दिया, जिससे पहले अरब-इजराइल युद्ध की शुरुआत हुई. वर्ष 1949 में इस्राइल की जीत के साथ युद्ध समाप्त हो गया, पर सात लाख से अधिक फिलीस्तीनी विस्थापित हो गये और यह क्षेत्र तीन भागों में विभाजित हो गया- इस्राइल, वेस्ट बैंक और गाजा पट्टी. इसके बाद से दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ता गया. यहीं से फिलीस्तीनी शरणार्थी समस्या की भी शुरुआत हुई, जो आज तक जारी है. उधर इस्राइल की स्थापना के बाद देशभर से यहूदी वहां जाने लगे, जिससे फिलीस्तीनियों के मन में असुरक्षा बढ़ने लगी.

1967 का छह दिवसीय युद्ध

इस्राइल और मिस्र के बीच लंबे समय तक चले तनाव के बाद पांच जून, 1967 को इस्राइल और उसके पड़ोसी अरब देशों के बीच युद्ध छिड़ गया. यह युद्ध छह दिनों तक चला जिसमें एक बार फिर इस्राइल विजयी हुआ और उसने फिलीस्तीन के वेस्ट बैंक, पूर्वी येरुशलम, गाजा पट्टी और सिनाई प्रायद्वीप जैसे अरब क्षेत्रों के साथ-साथ सीरियाई क्षेत्र के गोलन हाइट्स पर भी कब्जा कर लिया. इस युद्ध ने एक बार फिर से बहुसंख्यक फिलीस्तीनियों को शरणार्थी बनने पर मजबूर कर दिया.

1987 का पहला फिलीस्तीनी इंतिफादा

वर्ष 1987 में वेस्ट बैंक और गाजा पट्टी में रहने वाले हजारों फिलीस्तीनियों ने इस्राइली सरकार के विरुद्ध विद्रोह कर दिया, जिसे पहला इंतिफादा कहा गया. इसी अवधि में चरमपंथी इस्लामी संगठन हमास का उदय हुआ. यह विद्रोह 1993 में तब समाप्त हुआ जब इस्राइल के तत्कालीन प्रधानमंत्री यित्जाक राबिन और फिलीस्तीन लिबरेशन ऑर्गनाइजेशन (पीएलओ) के नेता यासिर अराफात ने पहले ओस्लो समझौते पर हस्ताक्षर किया. समझौते के तहत वेस्ट बैंक और गाजा में पीएलओ को फिलीस्तीनी लोगों के प्रतिनिधि के रूप में घोषित किया गया और इस्राइल को इस क्षेत्र में शांति से रहने की मान्यता दी गयी. वर्ष 1995 में, दोनों देशों के बीच दूसरा ओस्लो समझौता हुआ जो पहले समझौते का ही विस्तार था. इसमें वेस्ट बैंक और गाजा पट्टी के कुछ क्षेत्रों से इस्राइल की वापसी तय हुई. हालांकि बाद में यह शांति प्रक्रिया रुक गयी, जिससे निराशा और हिंसा का प्रसार हुआ. इसकी परिणति दूसरे इंतिफादा, यानी विद्रोह के रूप में हुई और इसी अवधि के दौरान हमास ने इस्राइली नागरिकों के विरुद्ध बमबारी और रॉकेट हमले तेज कर दिये.

दूसरा इंतिफादा

वेस्ट बैंक और गाजा पर इस्राइल के नियंत्रण, शांति प्रक्रिया के रुकने और इस्राइली नेता एरियल शेरॉन के येरुशलम स्थित अल-अक्सा मजिस्द के दौरे के खिलाफ 2000 में एक बार फिर फिलीस्तीनी लोगों का विद्रोह भड़क उठा जो 2005 तक चला. इस विद्रोह के प्रत्युत्तर में इस्राइली सरकार ने अंतरराष्ट्रीय न्यायालय और अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय के विरोध के बावजूद 2002 में वेस्ट बैंक के चारों ओर एक दीवार बनाने को स्वीकृति दे दी. हालांकि, 2005 में इस्राइल ने गाजा पट्टी से अपनी सभी बस्तियां हटा लीं. गौरतलब है कि तब शेरॉन विपक्ष के नेता थे. लेकिन इसके कुछ महीनों के भीतर ही वह प्रधानमंत्री चुन लिये गये.

गाजा पर हमास का कब्जा

वर्ष 2006 में फिलीस्तीन अथॉरिटी (पीए) के विधायी चुनाव में इस्लामी चरमपंथी समूह हमास की जीत हुई, जिससे लंबे समय से यहां बहुमत में रही फतह पार्टी व पीए के साथ उसका तनाव बढ़ गया. वर्ष 2007 में हमास ने गाजा पर सशस्त्र कब्जा कर लिया, जिससे इस्राइल को गाजा पर नाकाबंदी लगानी पड़ी. वहीं वेस्ट बैंक पर फतह पार्टी का नियंत्रण बना रहा.

दोनों देशों की प्रमुख मांगें

फिलीस्तीन वेस्ट बैंक, गाजा पट्टी और पूर्वी येरुशलम में एक स्वतंत्र एवं संप्रभु राज्य स्थापित करना चाहता है, जिस पर वर्षों से इस्राइल का कब्जा है. वह येरुशलम को अपनी राजधानी बनाना चाहता है.

इजराइल एक देश के रूप में अपनी यहूदी पहचान और सुरक्षा को बनाये रखने चाहता है. साथ ही जिन क्षेत्रों पर उसका अधिकार है, वह वहां अपने नियंत्रण को और बढ़ाना चाहता है. यह देश भी येरुशलम को अपनी अविभाजित राजधानी बनाना चाहता है.

यहूदियों का आना और बसना

हजारो वर्ष पहले अपने देश से निष्कासित यहूदी यूरोप के अलग-अलग देशों में जाकर बस गये थे. जहां उनके साथ भेदभाव और हिंसा हुई. इस कारण 19वीं शताब्दी में यूरोप के यहूदियों ने वापस फिलीस्तीन लौटना शुरू कर दिया. वर्ष 1930 के दशक में जब जर्मनी में हिटलर और नाजी पार्टी का शासन आया और जर्मनी समेत यूरोप के देशों में यहूदियों का दमन चरम पर पहुंच गया, तब दुनियाभर के यहूदी फिलीस्तीन लौटने लगे और जमीन खरीदकर वहां बसने लगे. इस्राइल बनने के कुछ वर्षों बाद अरब देशों में रह रहे लगभग छह लाख यहूदी शरणार्थी और विश्वयुद्ध के दौरान यूरोप में जीवित बचे ढाई लाख लोग भी इजराइल जाकर बस गये. इससे इस्राइल में यहूदियों की संख्या दोगुनी से अधिक हो गयी.

फिलीस्तीन की स्थिति

इतिहास को देखें, तो फिलीस्तीन पर कई समूहों द्वारा शासन किया गया है. वर्ष 1517 से 1917 तक, इस क्षेत्र के अधिकांश भाग पर ओट्टोमन साम्राज्य ने शासन किया. वर्ष 1918 में प्रथम विश्वयुद्ध की समाप्ति पर इस क्षेत्र पर अंग्रेजों का कब्जा हो गया. तब से भूमध्य सागर और जॉर्डन नदी के बीच स्थित भौगोलिक क्षेत्र को फिलीस्तीन माना जाता है. अरब लोग जो इस क्षेत्र को अपना घर कहते हैं, उन्हें 20वीं सदी के आरंभ से फिलीस्तीनी के रूप में जाना जाता है. हालांकि, वर्तमान में इस भूमि के अधिकांश भाग को अब इजराइल माना जाता है. सैद्धांतिक रूप से देखें, तो आज के फिलीस्तीन में वेस्ट बैंक और गाजा पट्टी का क्षेत्र शामिल है.

यहां है गाजा पट्टी और वेस्ट बैंक

गाजा पट्टी भूमध्य सागर के किनारे 140 वर्ग मील में फैली भूमि की एक पट्टी है जो इजराइल और मिस्र से घिरी हुई है. वर्तमान में यह 20 लाख लोगों का घर है. संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के अनुसार, गाजा की 81 प्रतिशत जनसंख्या गरीबी में रहती है और 63 प्रतिशत नागरिक खाद्य असुरक्षा से जूझ रहे हैं, हमास के इस क्षेत्र पर कब्जे के बाद से ही इस क्षेत्र पर इस्राइल ने नाकेबंदी कर रखी है. वहीं वेस्ट बैंक 2,200 वर्ग मील का जमीन से घिरा क्षेत्र है, जिसकी सीमा इजराइल और जॉर्डन से लगती है. इस क्षेत्र की जनसंख्या लगभग 30 लाख है.

संबंधित खबर
संबंधित खबर और खबरें
होम E-Paper News Snaps News reels
Exit mobile version