कश्मीरः अलगाववादी नेता सैयद अली शाह गिलानी ने हुर्रियत कॉन्फ्रेंस से दिया इस्तीफा

jammu kashmir, Hurriyat Conference: कश्मीर के अलगाववादी नेता सैयद अली शाह गिलानी ने हुर्रियत कॉन्फ्रेंस से इस्तीफा देने का ऐलान किया है. एक ओडियो मैसेज जारी करते हुए गिलानी ने कहा कि उन्होंने अपने फैसले के बारे में सभी को बता दिया है. पांच अगस्त 2019 के बाद जम्मू कश्मीर में लगातार बदल रहे सियासी हालात के बीच यह अलगाववादी खेमे की सियासत का सबसे बड़ा घटनाक्रम है.

By Prabhat Khabar Digital Desk | June 29, 2020 12:44 PM
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jammu kashmir, Hurriyat Conference: कश्मीर के अलगाववादी नेता सैयद अली शाह गिलानी ने हुर्रियत कॉन्फ्रेंस से इस्तीफा देने का ऐलान किया है. एक ओडियो मैसेज जारी करते हुए गिलानी ने कहा कि उन्होंने अपने फैसले के बारे में सभी को बता दिया है. पांच अगस्त 2019 के बाद जम्मू कश्मीर में लगातार बदल रहे सियासी हालात के बीच यह अलगाववादी खेमे की सियासत का सबसे बड़ा घटनाक्रम है. उन्होंने कहा कि मौजूदा हालात को देखते हुए उन्होंने इस्तीफा देने का फैसला किया है.

न्यूज एजेंसी एएनआई ने ये जानकारी दी है. हालांकि कई लोगों का ये मानना है कि हुर्रियत नेता गिलानी ने तबीयत के कारण ये फैसला लिया है. कश्मीर बनेगा पाकिस्तान और कश्मीर में आतंकी हिंसा को हमेशा जायज ठहराने वाले कट्टरपंथी नेता सईद अली शाह गिलानी ने आज एक आडियो संदेश जारी किया है. इसके अलावा उन्होंने दो गुटों में बंटी हुर्रियत कांफ्रेंस के कट्टरपंथी गुट के सभी घटक दलों के नाम एक पत्र भी जारी किया है.

अपने आडियो संदेश में उन्होंने कहा है कि मौजूदा हालात में मैं आल पार्टी हुर्रियत कांफ्रेंस से इस्तीफा देता हूं. मैंने हुर्रियत के सभी घटक दलों और मजलिस ए शूरा को भी अपने फैसले से अवगत करा दिया है. बता दें कि कई मीडिया रिपोर्ट्स में ये बताया गया है कि गिलानी इस समय सांस, हृदयोग, किडनी रोग समेत विभिन्न बिमारियों से पीड़ित हैं.


क्या है हुर्रियत कांफ्रेंस

हुर्रियत कांफ्रेंस कश्मीर में सक्रिय सभी छाेटे बड़े अलगाववादी संगठनों का एक मंच है. इसका गठन 1990 के दशक में कश्मीर में जारी आतंकी हिंसा और अलगाववादी सियासत को संयुक्त रुप से एक राजनीतिक मंच प्रदान करने के इरादे से किया गया था. साल 1987 में नेशनल कांफ्रेंस और कांग्रेस ने गठबंधन कर चुनाव लड़ने का ऐलान किया. घाटी में इसके खिलाफ जमकर विरोध हुआ. इस चुनाव में भारी बहुमत से जीतकर फारुख अब्दुल्ला ने जम्मू कश्मीर में अपनी सरकार बनाई.

इसके विरोध में खड़ी हुई विरोधी पार्टियों की मुस्लिम यूनाइटेड फ्रंट को महज 4 सीटों पर संतोष करना पड़ा जबकि जम्मू और कश्मीर नेशनल कांफ्रेंस को 40 और कांग्रेस को 26 सीटें मिलीं. इसके ही विरोध में घाटी में 13 जुलाई 1993 को ऑल पार्टीज हुर्रियत कांफ्रेंस की नींव रखी गई. हुर्रियत कांफ्रेंस का काम पूरी घाटी में अलगाववादी आंदोलन को गति प्रदान करना था. यह एक तरह से घाटी में नेशनल कांफ्रेंस और कांग्रेस के विरोध स्वरूप एकत्रित हुई छोटी पार्टियों का महागठबंधन था. हुर्रियत कॉन्फ्रेंस में 23 अलग-अलग धड़े हैं। इसके बड़े नेताओं में मीरवाइज उमर फारूक, सैयद अली शाह गिलानी, मुहम्मद यासीन मलिक प्रमुख चेहरे हैं.

Posted By: Utpal kant

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