भारत ने सितंबर 1960 की सिंधु जल संधि की समीक्षा और उसमें संशोधन के लिए पाकिस्तान को नोटिस भेजा है. पाकिस्तान को पहली बार यह नोटिस छह दशक पुरानी इस संधि को लागू करने से जुड़े विवाद निपटारा तंत्र के अनुपालन को लेकर अपने रुख पर अड़े रहने के कारण भेजा गया.
भारत ने पाकिस्तान को क्यों भेजा नोटिस, यहां समझें
यह नोटिस भारत के सिंधु जल आयुक्त के माध्यम से संधि के प्रावधानों के तहत उनके पाकिस्तानी समकक्ष को 25 जनवरी को भेजा गया. यह नोटिस इसलिए भेजा गया है ताकि 19 सितंबर 1960 को किये गए इस समझौते में बदलाव को लेकर प्रक्रिया शुरू की जा सके. समझा जाता है कि भारत द्वारा पाकिस्तान को यह नोटिस किशनगंगा और रातले पनबिजली परियोजनाओं से जुड़े मुद्दे पर मतभेद के समाधान को लेकर पड़ोसी देश के अपने रुख पर अड़े रहने के मद्देनजर भेजा गया है. यह नोटिस सिंधु जल संधि के अनुच्छेद 12 (3) के प्रावधानों के तहत भेजा गया है.
भारत ने पाकिस्तान से 90 दिनों में मांगा जवाब
भारत ने इस नोटिस में सिंधु जल संधि के उल्लंघन में सुधार के वास्ते अंतर सरकारी वार्ता शुरू करने के लिये पाकिस्तान से 90 दिन के भीतर जवाब मांगा गया है. संधि की समीक्षा और उसमें संशोधन के लिये भारत का नोटिस विवाद समाधान तंत्र तक ही सीमित नहीं है और पिछले 62 साल के अनुभवों के आधार पर संधि के विभिन्न अन्य प्रावधानों पर भी चर्चा हो सकती है.
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क्या है सिंधु जल संधि
गौरतलब है कि भारत और पाकिस्तान ने नौ वर्षों की वार्ता के बाद 1960 में संधि पर हस्ताक्षर किये थे. विश्व बैंक भी इस संधि के हस्ताक्षरकर्ताओं में शामिल था. सिंधु नदी जल संधि के तहत सिंधु नदी की सहायक नदियों को पूर्वी और पश्चिमी नदियों में विभाजित किया गया. सतलज, ब्यास और रावी नदियों को पूर्वी नदी बताया गया, जबकि झेलम, चेनाब और सिंधु को पश्चिमी नदी बताया गया. रावी, सतलुज और ब्यास जैसी पूर्वी नदियों का औसत 33 मिलियन एकड़ फुट (एमएएफ) जल पूरी तरह इस्तेमाल के लिए भारत को दे दिया गया. इसके साथ ही पश्चिमी नदियों सिंधु, झेलम और चेनाव नदियों का करीब 135 एमएएफ पानी पाकिस्तान को दिया गया.
बिना रोकटोक पूर्वी नदियों का पानी इस्तेमाल कर सकता है भारत
इस संधि के मुताबिक पूर्वी नदियों का पानी, कुछ अपवादों को छोड़ दें, तो भारत बिना रोकटोक के इस्तेमाल कर सकता है. भारत से जुड़े प्रावधानों के तहत रावी, सतलुज और ब्यास नदियों के पानी का इस्तेमाल परिवहन, बिजली और कृषि के लिए करने का अधिकार उसे (भारत को) दिया गया.
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