Pahalgam Attack : कश्मीरी गाइड ने छत्तीसगढ़ के बच्चों की जान बचाई, पढ़ें आतंकी हमले के वक्त कहां थे ये लोग

Pahalgam Attack: पहलगाम हमले में आतंकवाद पर मानवता भारी पड़ता नजर आया. कश्मीरी गाइड ने छत्तीसगढ़ के पर्यटकों के बच्चों की जान बचाई. जानें लोगों ने क्या बताया? शाह ने कहा कि मेरी पहली चिंता पर्यटक परिवारों की सुरक्षा थी. मैं लकी के बच्चे और दूसरे बच्चे को अपने हाथ में लिया और जमीन पर लेट गया.

By Amitabh Kumar | April 25, 2025 6:34 AM
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Pahalgam Attack: जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में जब मंगलवार को आतंकवादी हमला हुआ तो एक कश्मीरी गाइड ने अपनी जान जोखिम में डालकर छत्तीसगढ़ के पर्यटकों के एक ग्रुप के बच्चों की जान बचाई. 28 साल के नजाकत अहमद शाह छत्तीसगढ़ के मनेन्द्रगढ़-चिरमिरी-भरतपुर जिले के 11 लोगों के ग्रुप के लिए कश्मीर यात्रा के दौरान गाइड थे. इस समूह में चार दंपति और तीन बच्चे थे. सर्दियों में छत्तीसगढ़ के गांवों और शहरों में घूम-घूमकर कश्मीरी शॉल और कपड़े बेचने वाले 28 वर्षीय शाह राज्य के मनेंद्रगढ़-चिरमिरी-भरतपुर जिले के उन 11 लोगों के लिए देवदूत साबित हुए जब पहलगाम के बैसरन घाटी में आतंकवादी बेगुनाह लोगों पर गोलियों की बौछार कर रहे थे.

परिवार छुट्टियां मनाने कश्मीर गया था

छत्तीसगढ़ के चिरमिरी शहर के निवासी अरविंद एस अग्रवाल, कुलदीप स्थापक, शिवांश जैन और हैप्पी वधावन का परिवार छुट्टियां मनाने कश्मीर गया हुआ था. इस समूह में चार दंपति और तीन बच्चों सहित कुल 11 लोग शामिल थे. ग्रुप 17 अप्रैल को जम्मू पहुंचा था और कश्मीर की सैर कर वह पहलगाम होकर वापस छत्तीसगढ़ लौटने वाले थे. जब वह मंगलवार को बैसरन घाटी में थे तब आतंकवादियों ने वहां हमला कर दिया. राज्य के दिनेश मिरानिया समेत 26 लोगों हत्या कर दी. अरविंद अग्रवाल और उनका ग्रुप भी वहां था, जिसे नजाकत शाह ने वहां से निकाला.

शाह की पहचान अग्रवाल और उनके साथियों से कैसे हुई?

कश्मीर में गाइड के रूप में काम करने वाले शाह ने बताया कि वे सर्दियों के मौसम में अक्सर छत्तीसगढ़ आते हैं और चिरमिरी शहर तथा आसपास के गांवों में तीन महीने शॉल बेचते हैं. इस दौरान शाह की पहचान अग्रवाल और उनके साथियों से हो गई और शाह ने उन्हें कश्मीर घूमने के लिए आमंत्रित किया. शाह ने बताया, ”वे 17 अप्रैल को जम्मू पहुंचे और मैं उन्हें जम्मू से दो वाहनों में कश्मीर लाया. मैं उन्हें श्रीनगर, गुलमर्ग, सोनमर्ग ले गया और आखिरी पड़ाव में हमने पहलगाम जाने का फैसला किया.”

उन्होंने बताया, ”पहलगाम को आखिरी जगह के तौर पर तय किया गया था क्योंकि मेरा गांव पहलगाम के करीब है और मैं उनकी मेजबानी करना चाहता था, क्योंकि कश्मीरियों में मेहमान नवाजी का जुनून है.’’

दोपहर करीब 12 बजे बैसरन घाटी पहुंचे लोग

शाह ने कहा, ”हम दोपहर करीब 12 बजे बैसरन घाटी पहुंचे. मेरे पर्यटक टट्टू की सवारी और तस्वीरें खींचने में व्यस्त थे. करीब दो बजे मैंने लकी (कुलदीप) से कहा कि हमें देर हो रही है, इसलिए हमें जाना चाहिए. उसने कहा कि हम कुछ और तस्वीरें खींचने के बाद जाएंगे. जब हम बात कर रहे थे, तभी हमने गोलियों की आवाज सुनीं. पहले तो हमें लगा कि यह पटाखे फोड़ने की आवाज है. अचानक हमें एहसास हुआ कि यह गोलियों की आवाज है. वहां हजारों पर्यटक थे जो घबराकर इधर-उधर भाग रहे थे.”

पहली चिंता पर्यटक परिवारों की सुरक्षा थी : शाह

उन्होंने बताया, ”मेरी पहली चिंता पर्यटक परिवारों की सुरक्षा थी. मैंने लकी के बच्चे और दूसरे बच्चे को अपने हाथ में लिया और ज़मीन पर लेट गया. उस इलाके में बाड़ लगी हुई थी, इसलिए भागना आसान नहीं था. मैंने बाड़ में एक छोटा सा कट देखा और परिवारों से वहां से चले जाने को कहा. परिवार ने मुझसे पहले बच्चों को बचाने को कहा. मैं वहां से दोनों बच्चों के साथ निकल गया और पहलगाम भाग गया.” शाह ने बताया, ”मैं फिर से वापस गया क्योंकि परिवार के कुछ सदस्य पीछे रह गए थे और उन्हें पहलगाम ले आया. शुक्र है कि मैं हमारे सभी 11 मेहमानों को सुरक्षित पहलगाम ले गया.” उन्होंने बताया, ”मेरे भाई (मामा के बेटे) आदिल हुसैन आतंकवादी हमले में मारे गए. मैं उनके जनाजे में शामिल नहीं हो सका क्योंकि मैंने अपने पर्यटकों को पहले सुरक्षित श्रीनगर छोड़ने का फैसला किया.”

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