Panchayati Raj: पंचायती राज में महिलाओं की भूमिका सुनिश्चित करने के लिए विशेषज्ञ समिति ने सुझाए उपाय

पंचायती राज संस्थाओं के सभी तीन स्तरों में लगभग 2.63 लाख पंचायतों में, 32.29 लाख निर्वाचित प्रतिनिधियों (ईआर) में से लगभग 15.03 लाख यानी लगभग 46.6 फीसदी निर्वाचित महिला प्रतिनिधि हैं. लेकिन अभी भी पितृसत्तात्मक मानदंडों का प्रचलन, कानूनी सुरक्षा उपायों का सही से पालन नहीं करना और सामाजिक-सांस्कृतिक बाधाएं पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं की प्रभावी भागीदारी और नेतृत्व में बाधा बन रही हैं.

By Vinay Tiwari | February 26, 2025 5:29 PM
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Panchayati Raj: जमीनी स्तर पर लोकतंत्र में महिलाओं की राजनीतिक निर्णय लेने की शक्ति को सशक्त बनाने और समावेशी ग्रामीण विकास सुनिश्चित करने के लिए पंचायती राज संस्थाओं (पीआरआई) में महिलाओं के लिए एक तिहाई सीटों के आरक्षण को संविधान के 73वें संशोधन अधिनियम 1992 के तहत अनिवार्य कर दिया गया. देश के 21 राज्यों और 2 केंद्र शासित प्रदेश ने इस संवैधानिक प्रावधान का विस्तार देते हुए पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं के लिए 50 फीसदी तक आरक्षण देने का काम किया है. पंचायती राज संस्थाओं के सभी तीन स्तरों में लगभग 2.63 लाख पंचायतों में, 32.29 लाख निर्वाचित प्रतिनिधियों (ईआर) में से लगभग 15.03 लाख यानी लगभग 46.6 फीसदी निर्वाचित महिला प्रतिनिधि हैं. लेकिन अभी भी पितृसत्तात्मक मानदंडों का प्रचलन, कानूनी सुरक्षा उपायों का सही से पालन नहीं करना और सामाजिक-सांस्कृतिक बाधाएं पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं की प्रभावी भागीदारी और नेतृत्व में बाधा बन रही हैं.


महिलाओं को सशक्त बनाने पर मंथन

भारत में स्थानीय स्वशासन संस्थाओं (पंचायतों) के स्वतंत्र नेताओं के रूप में महिलाओं की राजनीतिक और निर्णय लेने की शक्ति को और अधिक मजबूत और सशक्त बनाने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम उठाया गया है. भारत सरकार के पंचायती राज मंत्रालय ने पूर्व खान सचिव सुशील कुमार की अध्यक्षता में वर्ष 2023 में को एक सलाहकार समिति का गठन किया, जो महिला प्रधानों के अपने परिवार के पुरुष सदस्यों द्वारा प्रतिनिधित्व किए जाने संबंधी मामलों की जांच करेगी. सुप्रीम कोर्ट के फैसले को देखते हुए केंद्र सरकार ने यह कदम उठाया है. समिति ने अपनी बैठकों के जरिये से महिला निर्वाचित प्रतिनिधियों, राज्य पंचायती राज विभागों, राज्य ग्रामीण विकास संस्थानों, राज्य महिला आयोगों, शैक्षणिक संस्थाओं और गैर सरकारी संगठनों सहित विभिन्न हितधारकों से परामर्श किया. समिति ने 14 राज्यों में गहन शोध और क्षेत्रों का दौरा कर रिपोर्ट तैयार की है.

‘पंचायती राज प्रणालियों और संस्थाओं में महिलाओं के प्रतिनिधित्व और उनकी भूमिकाओं में परिवर्तन: प्रॉक्सी भागीदारी के प्रयासों को समाप्त करना’ वाली रिपोर्ट में समिति ने प्राचीन काल से लेकर 73वें संविधान (संशोधन) अधिनियम, 1992 तक पंचायती राज संस्थाओं (पीआरआई) के विकास का मानचित्रण किया है. इसमें ग्राम पंचायतों के कामकाज में महिला निर्वाचित प्रतिनिधियों का प्रतिनिधित्व करने वाले पुरुष सदस्यों की प्रचलित प्रथा, लैंगिक भूमिकाएं, जातिगत मानदंड, शैक्षणिक योग्यता, सामाजिक प्रतिरोध, सहयोग की कमी आदि जैसे सामाजिक-सांस्कृतिक आयामों पर प्रकाश डाला गया है. स्थानीय स्वशासन संस्थाओं में महिला निर्वाचित प्रतिनिधियों की सक्रिय भागीदारी में बाधा डालते हैं. रिपोर्ट में महिला निर्वाचित प्रतिनिधियों की ओर से पुरुष सदस्यों, विशेष रूप से महिला प्रधानों की प्रॉक्सी भागीदारी को रोकने के लिए राज्यों, केंद्र शासित प्रदेशों में उपलब्ध कानूनी ढांचे पर भी विस्तार से बताया गया है. 


पंचायतों में महिलाओं के नाम पर कैसे कम हो पुरुषों का वर्चस्व

महिला प्रधानों की प्रॉक्सी भागीदारी की प्रक्रिया का पता लगाने और उसे रोकने के लिए सलाहकार समिति द्वारा अपनी रिपोर्ट में क्षमता निर्माण प्रशिक्षण और मार्गदर्शन के माध्यम से सामाजिक व्यवहार पर जाेर दिया गया है. प्रधान पति या सरपंच पति या मुखिया पति का मुद्दा छद्म राजनीति के एक ऐसे तरीके का प्रतीक है जो पूरे देश में प्रचलित है, लेकिन कुछ विशेष इलाकों और क्षेत्रों में यह अधिक प्रभावी है. प्रधान पति का मतलब केवल पति नहीं होता, बल्कि इसमें वास्तविक राजनीतिक शक्ति का प्रयोग करने वाले पुरुष रिश्तेदार भी शामिल होते हैं. आधिकारिक रूप से निर्वाचित महिला नेताओं को केवल नाममात्र के लिए काम करने के लिए छोड़ देते हैं. पुरुषों के लिए अपनी पत्नियों, बहनों या बहुओं के लिए प्रॉक्सी के रूप में कार्य करना सामाजिक-सांस्कृतिक रूप से स्वीकार्य है.

यह प्रचलित प्रथा तीन दशक पहले (1992) में किए गए संवैधानिक अधिनियम (73वां संशोधन) को कमजोर करती रही है, जिसमें पंचायतों के स्तर पर कुल तीन मिलियन निर्वाचित प्रतिनिधियों में महिलाओं के लिए एक तिहाई सीटों का आरक्षण प्रदान किया गया था. इस नीतिगत निर्देश का उद्देश्य महिला नेतृत्व और महिलाओं के सशक्तिकरण को बढ़ावा देना था, जिससे उन्हें विशेष रूप से ग्रामीण स्तर पर और सामान्य रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में सामाजिक परिवर्तन के एजेंट के रूप में कार्य करने में सक्षम बनाया जा सके.

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