Rabindranath Tagore Birth Anniversary : गीतांजलि के लिए टैगोर को मिला था नोबेल पुरस्कार, जानिए क्या है इसमें खास

रवींद्रनाथ टैगोर की कृति 'गीतांजलि' नोबेल पुरस्कार से सम्मानित हो चुकी है. इस किताब में लिखी कविताओं का अनुवाद डॉ. डोमन साहु 'समीर' ने किया है. विशेष यह है कि इस किताब में लिखी प्रत्येक कविता एक स्वर लिए हुए है जिसे आप अपनी धुन में गा भी सकते हैं. रवींद्रनाथ टैगोर के नाम से रबीन्द्र संगीत भी प्रसिद्ध है. उन्होंने कई गीत लिखे हैं.

By Shaurya Punj | May 7, 2020 6:00 AM
feature

कविगुरु जिन्होंने मोहन चंद करम चंद गांधी को महात्मा नाम दिया था आज उनका जन्मदिन है. हम बात कर रहें हैं रवींद्रनाथ टैगोर की जिन्होंने साहित्य, संगीत, रंगमंच और चित्रकला सहित विभिन्न कलाओं में महारत रखने वाले गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर मूलतः प्रकृति प्रेमी थे और वह देश विदेश चाहे जहां कहीं रहें, वर्षा के आगमन पर हमेशा शांतिनिकेतन में रहना पसंद करते थे. रवीन्द्रनाथ अपने जीवन के उत्तरार्ध में लंदन और यूरोप की यात्रा पर गए थे. इसी दौरान वर्षाकाल आने पर उनका मन शांतिनिकेतन के माहौल के लिए तरसने लगा. उन्होंने अपने एक नजदीकी से कहा था कि वह शांतिनिकेतन में रहकर ही पहली बारिश का स्वागत करना पसंद करते हैं. गुरुदेव ने गीतांजलि सहित अपनी प्रमुख काव्य रचनाओं में प्रकृति का मोहक और जीवंत चित्रण किया.

रवींद्रनाथ टैगोर की कृति ‘गीतांजलि’ नोबेल पुरस्कार से सम्मानित हो चुकी है. इस किताब में लिखी कविताओं का अनुवाद डॉ. डोमन साहु ‘समीर’ ने किया है. विशेष यह है कि इस किताब में लिखी प्रत्येक कविता एक स्वर लिए हुए है जिसे आप अपनी धुन में गा भी सकते हैं. रवींद्रनाथ टैगोर के नाम से रबीन्द्र संगीत भी प्रसिद्ध है. उन्होंने कई गीत लिखे हैं.

बांग्ला साहित्य के मूर्धन्य हस्ताक्षर रवींद्रनाथ टैगोर बीसवीं शताब्दी के शुरुआती चार दशकों तक भारतीय साहित्याकाश में ध्रुवतारे की तरह चमकते रहे. ‘गीतांजलि’ के लिए उन्हें 1913 में नोबेल पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया.

प्रस्तुत है रवीन्द्रनाथ टैगोर द्वारा रचित गीतांजलि की कुछ पंक्तियां

अनजानों से भी करवाया है परिचय मेरा तुमने

जानें, कितने आवासों में छांव मुझे दिलवाया है

दूरस्थों को भी करवाया है स्वजन समीपस्थ तुमने

भाई बनवाए हैं मेरे अन्यों को, जानें, कितने

छोड़ पुरातन वास कहीं जब जाता हूं मैं

क्या जानें क्या होगा सोचा करता हूं मैं

नूतन बीच पुरातन हो तुम, भूल इसे मैं जाता हूं

दूरस्थों को भी करवाया है स्वजन समीपस्थ तुमने

जीवन और मरण में होगा अखिल भुवन में जब वो भी

जन्म-जन्म का परिचित चिन्होगे उन सबको तुम भी

तुम्हें जानने पर न पराया होगा कोई भी

नहीं वर्जना होगी और न भय ही कोई भी

जगते हो तुम मिला सभी को, ताकि दिखो सबमें ही

दूरस्थों को भी करवाया है स्वजन समीपस्थ तुमने

संबंधित खबर
संबंधित खबर और खबरें
होम E-Paper News Snaps News reels
Exit mobile version