Railway News : ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेलवे परियोजना में सुरंग नंबर–8 को सफलतापूर्वक पूरा कर लिया गया है. इसके साथ ही रेलवे के बुनियादी ढांचे में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर हासिल हो चुका है. यह भारत के लिए बड़ी बात है. 14.58 किलोमीटर लंबी यह सुरंग जम्मू-कश्मीर और हिमाचल प्रदेश में मौजूदा रेल और सड़क सुरंगों को पीछे छोड़ते हुए देश की सबसे लंबी ट्रांसपोर्टेशन सुरंग बनने जा रही है. इस कार्यक्रम में केंद्रीय रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव, उत्तराखंड के मुख्यमंत्री और गढ़वाल के सांसद अनिल बलूनी भी मौजूद थे. यह सफलता उत्तराखंड के पहाड़ी जिलों में कनेक्टिविटी को बेहतर बनाने और यात्रा के समय को कम करने के उद्देश्य से एक परियोजना में एक बड़ा कदम है.
हिमालय के दुर्गम इलाके में इस सुरंग का निर्माण एक बड़ी इंजीनियरिंग उपलब्धि है1 ऋषिकेश-कर्णप्रयाग परियोजना में 16 मुख्य सुरंगें (104 किमी), 12 एस्केप सुरंगें (97.72 किमी) और 7.05 किमी क्रॉस पैसेज हैं, जो कुल मिलाकर 213.57 किमी सुरंगों की प्रभावशाली लंबाई है. इसमें से 195 किमी का निर्माण पहले ही हो चुका है. यह परियोजना हिमालयी क्षेत्र में भारतीय रेलवे द्वारा टनल बोरिंग मशीन (टीबीएम) के पहले सफल प्रयोग को भी दिखाती है. टीबीएम ने 10.4 किलोमीटर की खुदाई की, जबकि बाकी का काम न्यू ऑस्ट्रियन टनलिंग मेथड (एनएटीएम) का उपयोग करके पूरा किया गया.
उत्तराखंड के लिए एक गेम-चेंजर
यह सुरंग महत्वाकांक्षी ऋषिकेश-कर्णप्रयाग ब्रॉड गेज रेलवे लाइन का हिस्सा है, जो उत्तराखंड में कनेक्टिविटी को बढ़ावा देने के उद्देश्य से एक महत्वपूर्ण परियोजना है. यह लाइन तीर्थ स्थलों को जोड़ेगी, पर्यटन को बढ़ावा देगी, स्थानीय व्यवसायों को मदद पहुंचाएगी. यात्रा के समय को काफी कम करेगी. देवप्रयाग, श्रीनगर, रुद्रप्रयाग, गौचर और कर्णप्रयाग जैसे शहर सीधे जुड़ेंगे, जो पांच जिलों को छूएंगे: देहरादून, टिहरी गढ़वाल, पौड़ी गढ़वाल, रुद्रप्रयाग और चमोली.
ऋषिकेश-कर्णप्रयाग ब्रॉड गेज रेल लिंक परियोजना का हिस्सा है यह परियोजना
बुधवार को एक बोरिंग मशीन ने चट्टान की आखिरी परत को तोड़कर दूसरी तरफ निकलकर सफलता हासिल की. इसके बाद मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के साथ वैष्णव सुरंग में लगभग 3.5 किलोमीटर तक अंदर गए. देवप्रयाग और जनासू के बीच 14.57 किलोमीटर लंबी सुरंग नंबर-8 उत्तराखंड में महत्वाकांक्षी 125 किलोमीटर लंबी ऋषिकेश-कर्णप्रयाग ब्रॉड गेज रेल लिंक परियोजना का हिस्सा है.
सुरंग-8 दोहरी सुरंग
वैष्णव ने इसे ऐतिहासिक क्षण बताया, क्योंकि यह सफलता 16 अप्रैल को मिली, जिस दिन 1853 में भारत में रेल सेवा शुरू हुई थी. पूरी परियोजना की देखरेख कर रहे रेल मंत्रालय के अधीन आने वाले सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम रेल विकास निगम लिमिटेड (आरवीएनएल) ने जर्मनी में निर्मित ‘शक्ति’ नामक टनल बोरिंग मशीन (टीबीएम) का उपयोग करके यह सफलता हासिल की. सुरंग-8 दोहरी सुरंग है और दूसरी समानांतर सुरंग पर दूसरे टीबीएम की मदद से काम चल रहा है. जुलाई तक इसके दूसरे पार पहुंचने की उम्मीद है. इस सुरंग निर्माण का ठेका एलएंडटी कंपनी के पास है.
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आरवीएनएल की ओर से जारी एक बयान में कहा गया, “यह उल्लेखनीय उपलब्धि माननीय रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव की उपस्थिति में हासिल की गई, जिन्होंने हिमालयी रेल संपर्क में इस महत्वपूर्ण उपलब्धि को हासिल करने के अवसर पर स्थल का दौरा किया.”