28,000 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से दौड़ता हुआ यह स्टेशन हर डेढ़ घंटे में एक बार सूर्योदय और सूर्यास्त का दृश्य प्रस्तुत करता है. यह दृश्य न केवल वैज्ञानिक दृष्टि से, बल्कि भावनात्मक और आध्यात्मिक रूप से भी बेहद गहन होता है.
हर 45 मिनट में उगते हैं सूरज
शुभांशु शुक्ला के लिए यह यात्रा एक वैज्ञानिक मिशन से कहीं अधिक रही. उन्होंने कहा, “जब आप हर 45 मिनट में सूरज को उगते और फिर डूबते देखते हैं, तो समय का अनुभव पूरी तरह बदल जाता है. आप समझ पाते हैं कि हम पृथ्वी पर समय, दिन-रात और जीवन को कितनी सीमाओं में बांधते हैं.”
ISS में दिन-रात का कोई स्थायी चक्र नहीं होता. वहां समय Coordinated Universal Time (UTC) के अनुसार चलता है. सभी अंतरिक्ष यात्रियों को सटीक शेड्यूल और कृत्रिम रोशनी के ज़रिए जैविक घड़ी को संतुलित रखा जाता है.
ऊपर छाया नीचे अंधेरा
शुभांशु ने बताया कि जब ISS पृथ्वी की छाया में होता है, तो नीचे शहरों की रोशनी तारों की तरह चमकती है और जब सूरज की किरणें पृथ्वी के ऊपरी वायुमंडल से टकराती हैं, तो ‘थर्मोस्फीयर ग्लो’ नामक नारंगी चमक दिखाई देती है. जो दृश्य को और भी रोमांचकारी बना देती है. उन्होंने कहा, “अंतरिक्ष से जब आप धरती को देखते हैं एक नीली-हरी चमकदार गेंद के रूप में तो देश, सीमाएं और संघर्ष सब गौण हो जाते हैं. उस क्षण आप केवल इंसान होते हैं. इस सुंदर ग्रह के रक्षक.”