Supreme Court: चुनाव आयोग के बिहार मतदाता सूची के पुर्नरीक्षण का मामला पहुंचा शीर्ष अदालत

एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफार्म(एडीआर) ने बिहार में विधानसभा चुनाव से पहले विशेष गहन पुनरीक्षण अभियान कराने के फैसले को चुनौती दी है. संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत दायर जनहित याचिका में चुनाव आयोग के एसआईआर के फैसले पर तत्काल रोक लगाने की मांग की गयी है. याचिका में कहा गया है कि चुनाव आयोग ने नागरिकता साबित करने के लिए ऐसे दस्तावेजों की मांग की है, जिसके कारण कई लोग मतदान करने के वंचित हो सकते हैं.

By Vinay Tiwari | July 5, 2025 3:54 PM
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Supreme Court: बिहार में विधानसभा चुनाव से पहले चुनाव आयोग के मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) कराने के फैसले को लेकर विपक्षी दल लगातार सवाल उठा रहे हैं. चुनाव आयोग के इस फैसले के खिलाफ विपक्षी दलों का प्रतिनिधिमंडल मुख्य चुनाव आयुक्त के समक्ष अपनी चिंता जाहिर कर चुका है. लेकिन चुनाव आयोग साफ कर चुका है कि यह मामला पूरी तरह पारदर्शी है. चुनाव आयोग के बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण का मामला अब सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है. एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफार्म(एडीआर) ने बिहार में विधानसभा चुनाव से पहले विशेष गहन पुनरीक्षण अभियान कराने के फैसले को चुनौती दी है.

संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत दायर जनहित याचिका में चुनाव आयोग के एसआईआर के फैसले पर तत्काल रोक लगाने की मांग की गयी है. याचिका में कहा गया है कि चुनाव आयोग ने नागरिकता साबित करने के लिए ऐसे दस्तावेजों की मांग की है, जिसके कारण कई लोग मतदान करने के वंचित हो सकते हैं. साथ ही आयोग के फैसला संविधान के अनुच्छेद 14, 19, 21, 325 और 326 को उल्लंघन करता है. यही नहीं आयोग के फैसला जनप्रतिनिधित्व कानून 1950 की धारा 21(ए) और मतदाता पंजीकरण कानून 1960 के खिलाफ है. पहले से मौजूद मतदाताओं काे अब नागरिकता का सबूत देना होगा. सबसे अधिक चिंता की बात है कि आयोग ने आधार कार्ड, राशन कार्ड और अन्य दस्तावेजों को सबूत के तौर पर मानने से इंकार कर दिया है. इस फैसले के कारण राज्य के करोड़ों गरीब लाेग मतदान से वंचित हो जायेंगे. 

चुनाव से पहले आयोग का फैसला समझ से परे

एडीआर की ओर से दायर याचिका में कहा गया है कि मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण कराने के फैसले का ठोस कारण नहीं बताया. जनप्रतिनिधित्व कानून 1950 की धारा 21(3) के तहत चुनाव आयोग को ठोस कारण के आधार पर विशेष पुनरीक्षण करने का अधिकार है. लेकिन बिहार के लिए आयोग ने कोई ठोस कारण नहीं बताया है. याचिका में कहा गया है कि चुनाव आयोग ने अक्टूबर 2024 से जनवरी 2025 तक मतदाता सूची का आंशिक समीक्षा की और इसमें व्यापक पैमाने पर गड़बड़ी की बात सामने नहीं आयी.

ऐसे में बिहार में विधानसभा चुनाव के कुछ महीने पहले विशेष अभियान चलाने का फैसला गंभीर सवाल खड़े करता है. याचिका में कहा गया है कि बिहार जैसे राज्य में इतने कम समय में मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण करना संभव नहीं है. इस फैसले के कारण कई मतदाता मतदान से वंचित हो जायेंगे. याचिका में चुनाव आयोग के फैसले पर तत्काल रोक लगाने की मांग की गयी है. बिहार में गरीबी और पलायन एक बड़ा मुद्दा है. बड़ी आबादी के पास जन्म प्रमाण पत्र या अपने माता-पिता के रिकॉर्ड जैसे आवश्यक दस्तावेज नहीं हैं. ऐसे में शीर्ष अदालत को तत्काल इस मामले में दखल देने की आवश्यकता है. 

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