केंद्र सरकार ने रखा अपना पक्ष
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट में शारीरिक संबंध बनाने की उम्र को कम करने के लिए एक याचिका दाखिल की थी. सुनवाई के दौरान अपना पक्ष रखते हुए केंद्र सरकार ने दलील देते हुए कहा कि भारतीय न्याय संहिता और यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम (POCSO) जैसे कानून नाबालिग बच्चों की सुरक्षा के लिए बनाए गए हैं.
कानून का असल मकसद
केंद्र सरकार के अनुसार, जो उम्र निर्धारित की है कि उसका मकसद 18 साल से कम उम्र के बच्चों की शारीरिक दुरुपयोग और यौन शोषण से बचाने के लिए है. यह कानून अक्सर परिचितों द्वारा की जाने वाली यौन शोषण से बचाने का काम करता है. हालांकि, केंद्र सरकार ने स्पष्ट कहा है कि किशोरावस्था में प्रेम और आपसी सहमति से बने शारीरिक संबंधों में निर्णय न्यायिक विवेकाधिकार पर किया जा सकता है.
ये है कानूनी पृष्ठभूमि
केंद्र सरकार के मुताबिक, भारतीय दंड संहिता 1860 में सहमति की उम्र 10 साल थी, जिसे सहमति अधिनियम 1891 में बढ़ाकर 12 साल कर दिया गया था. साल 1925 में IPC में संशोधन और 1929 के शारदा अधिनियम (बाल विवाह रोकथाम कानून) के तहत सहमति की उम्र को बढ़ाकर 14 साल, 1940 में हुए संशोधन में इसे 16 साल कर दिया था. हालांकि, साल 1978 में बाल विवाह रोकथाम अधिनियम में संशोधन कर सहमति से यौन संबंध बनाने की उम्र 18 साल कर दी गई थी, जिसे आज तक कानूनी मान्यता प्राप्त है.