बुलडोजर एक्शन पर सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी, कहा- सरकारी शक्ति का न हो दुरुपयोग 

Supreme Court on Bulldozer Action: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बिना केस के मकान गिरा कर किसी को सजा नहीं दी जा सकती है.

By Aman Kumar Pandey | November 13, 2024 11:17 AM
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Supreme Court on bulldozer action: सुप्रीम कोर्ट ने बुलडोजर एक्शन पर सुनवाई के दौरान सख्त टिप्पणी की. बुधवार 13 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सरकारी शक्ति का दुरुपयोग नहीं होना चा्हिए. जस्टिस गवई ने कवि प्रदीप की एक कविता का उदाहरण देते हुए कहा कि घर सपना है, जो कभी न टूटे. न्यायनमूर्ती गवई ने आगे कहा कि घर तोड़ना अपराध की सजा नहीं हो सकता. 

सुनवाई के दौरान जज ने कहा, “हमने सभी पक्षों की दलीलें सुनीं, लोकतांत्रिक सिद्धांतों और न्याय के सिद्धांतों पर विचार किया। इंदिरा गांधी बनाम राजनारायण और जस्टिस पुत्तास्वामी जैसे फैसलों में तय सिद्धांतों को ध्यान में रखा. सरकार की जिम्मेदारी है कि कानून का शासन बना रहे, लेकिन साथ ही नागरिक अधिकारों की रक्षा भी संवैधानिक लोकतंत्र में जरूरी है.”

संविधान अपराध के आरोपियों को भी कुछ अधिकार देता है

जज ने आगे कहा कि लोगों को यह समझना चाहिए कि उनके अधिकार बिना वजह नहीं छीने जा सकते और सरकारी शक्तियों का दुरुपयोग नहीं हो सकता. उन्होंने यह भी विचार किया कि क्या गाइडलाइंस जारी करना उचित होगा. बिना सुनवाई के मकान गिराकर किसी को दंडित नहीं किया जा सकता. अगर प्रशासन मनमानी तरीके से मकान गिराता है तो अधिकारियों को इसके लिए जवाबदेह ठहराना होगा. संविधान अपराध के आरोपियों को भी अधिकार देता है, और बिना मुकदमे किसी को दोषी करार नहीं दिया जा सकता.

प्रशासन स्वयं न्यायाधीश नहीं बन सकता- सुप्रीम कोर्ट

जज ने कहा कि एक तरीका यह हो सकता है कि ऐसे मामलों में प्रभावित लोगों को मुआवजा मिले और अवैध कार्यवाही करने वाले अधिकारियों को दंडित किया जाए. प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत का पालन होना चाहिए. बिना पक्ष रखने का अवसर दिए किसी का मकान नहीं गिराया जा सकता. प्रशासन स्वयं न्यायाधीश बनकर किसी को दोषी ठहराकर मकान नहीं गिरा सकता. हमारे देश में ताकत का शासन नहीं हो सकता, यह न्याय का काम है कि अपराधियों को दंड दिया जाए. यहां तक कि निचली अदालत से मिली फांसी की सजा भी तभी मान्य होगी, जब उच्च न्यायालय उसकी पुष्टि करेगा. अनुच्छेद 21 के तहत, सिर पर छत का अधिकार भी जीवन के अधिकार में शामिल है.

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