Manish Sisodia: दिल्ली विधानसभा चुनाव में हार के बाद आम आदमी पार्टी के वरिष्ठ नेता मनीष सिसोदिया सार्वजनिक कार्यक्रमों से नदारद थे, जिससे उनके बारे में कई तरह के सवाल उठने लगे थे. कुछ दिनों तक उनका फोन भी बंद था, जिससे उनकी अनुपस्थिति को लेकर चर्चा और तेज हो गई. अब मनीष सिसोदिया ने खुद सामने आकर इस बात का खुलासा किया है कि वे पिछले 11 दिनों से राजस्थान के एक गांव में विपश्यना ध्यान शिविर में शामिल थे.
शनिवार को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर उन्होंने लिखा, “पिछले 11 दिन से राजस्थान के एक गांव में विपश्यना ध्यान शिविर में था. मौन, एकांत और अपने ही अंतर्मन का अवलोकन कर रहा था. फोन भी बंद था और बाहरी दुनिया से पूरी तरह कटा हुआ था. आज सुबह ही शिविर पूरा हुआ है.”
पिछले 11 दिन से राजस्थान के एक गाँव में विपश्यना ध्यान शिविर में था। मौन, एकांत, और अपने ही अंतर्मन का अवलोकन। फोन भी बंद था, बाहरी दुनिया से पूरी तरह कटा हुआ। आज सुबह ही शिविर पूरा हुआ।
— Manish Sisodia (@msisodia) March 8, 2025
विपश्यना सिर्फ ध्यान नहीं, एक गहरी आध्यात्मिक यात्रा है। दिन में 12+ घंटे केवल अपनी साँसों…
सिसोदिया ने आगे बताया कि अब वे नए जोश के साथ वापसी कर रहे हैं. उन्होंने कहा, “आज शाम तक दिल्ली लौटूंगा, नई ऊर्जा और नए जोश के साथ. और मेरा संकल्प वही रहेगा — देश के हर बच्चे को शानदार शिक्षा मिले. अच्छी शिक्षा ही हर बच्चे को न सिर्फ सफल बल्कि एक बेहतर इंसान बनाती है. शिक्षा के मानवीकरण का काम भी आगे बढ़ाना है.”
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पूर्व शिक्षा मंत्री ने विपश्यना के अपने अनुभव को भी साझा किया. उन्होंने लिखा, “यह केवल ध्यान नहीं बल्कि एक गहरी आध्यात्मिक यात्रा है. इस दौरान दिन में 12 घंटे से अधिक समय केवल अपनी सांसों को देखने में बीतता है. बिना किसी प्रतिक्रिया के बस अपने मन और शरीर को समझने का प्रयास किया जाता है. गौतम बुद्ध की वही सीख — चीजों को वैसे ही देखना जैसी वे वास्तव में हैं, न कि जैसी हम उन्हें देखना चाहते हैं. इस यात्रा में कोई संवाद नहीं होता — न फोन, न किताबें, न लेखन और न ही किसी से आंख मिलाने का अवसर.”
विपश्यना शिविर में अपने चित्त को समझने और निर्मल बनाने की जो आध्यात्मिक प्रगति मिलती है, वह तो अद्भुत है ही… लेकिन शिविर की सबसे प्रभावशाली और विशेष बात जो मुझे लगती है, वह है दस दिनों का मौन। पूर्ण मौन।
— Manish Sisodia (@msisodia) March 8, 2025
यहाँ मौन केवल चुप रहने का अभ्यास नहीं, यह स्वयं को गहराई से सुनने की… https://t.co/6QMR5v3f53
सिसोदिया ने बताया कि शिविर के शुरुआती कुछ दिन काफी चुनौतीपूर्ण होते हैं. उन्होंने लिखा, “पहले कुछ दिन दिमाग़ भागता है, बेचैन होता है, लेकिन धीरे-धीरे समय ठहरने लगता है. एक अजीब-सी शांति हर हलचल के बीच जन्म लेने लगती है.”
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सिसोदिया ने कहा कि इस शिविर में शामिल 75% लोग 20-35 वर्ष की उम्र के थे. जब आखिरी दिन बातचीत का मौका मिला, तो पता चला कि सफलता की दौड़ में शामिल ये युवा थकान, उलझन और भीतर की बेचैनी से जूझ रहे थे. उनकी शिकायत थी कि जिस शिक्षा ने उन्हें सफलता की इस दौड़ के काबिल बनाया, उसमें इस मानसिक तनाव और उलझनों से निपटने का तरीका भी सिखा दिया जाता, तो उनका जीवन अधिक खुशहाल होता.
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सिसोदिया ने खुशी जताई कि दिल्ली में शिक्षा मंत्री रहते हुए उन्होंने स्कूलों में हैप्पीनेस पाठ्यक्रम के तहत रोज़ाना हर बच्चे के लिए ‘हैप्पीनेस क्लास’ शुरू करवाई थी. उन्होंने कहा कि शिक्षा के मानवीयकरण की दिशा में यह एक बड़ा कदम है. यह वही हैप्पीनेस क्लास है, जिसका ज़िक्र विपश्यना ध्यान के बाद इन युवाओं ने किया.
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