Alimony: तलाक के बाद क्या चहल को देने होंगे 60 करोड़? आइए जानते हैं, क्या कहता है कानून

Alimony: गुजारा भत्ता (मेंटेनेंस) तलाक के बाद पति या पत्नी को आर्थिक सहायता के रूप में दिया जाता है. इसका उद्देश्य तलाकशुदा व्यक्ति के जीवन-यापन को सुगम बनाना है, खासकर अगर वह व्यक्ति आर्थिक रूप से निर्भर हो. यह भत्ता पति या पत्नी, दोनों को मिल सकता है, लेकिन अधिकतर मामलों में यह पति को ही देना पड़ता है.

By Abhishek Pandey | February 22, 2025 9:36 AM
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Dhanashree-Yuzvendra Divorce Alimony: क्रिकेटर युजवेंद्र चहल और धनश्री वर्मा के तलाक को लेकर चल रही चर्चाएं आखिरकार सच साबित हुईं. रिपोर्ट्स के अनुसार, गुरुवार को दोनों बांद्रा स्थित फैमिली कोर्ट पहुंचे, जहां उनकी तलाक की कानूनी प्रक्रिया पूरी की गई. इसके साथ ही शादी के चार साल बाद दोनों अलग हो गए. इस बीच, खबरें आ रही हैं कि तलाक के बाद चहल को 60 करोड़ रुपए एल‍िमनी देना पड़ सकता है. ऐसे मामलों में कानून क्या कहता है, आइए जानते हैं.

क्या होता है एल‍िमनी ?

एल‍िमनी तलाक के बाद पति या पत्नी को आर्थिक सहायता के रूप में दिया जाता है. इसका उद्देश्य तलाकशुदा व्यक्ति के जीवन-यापन को सुगम बनाना है, खासकर अगर वह व्यक्ति आर्थिक रूप से निर्भर हो. यह भत्ता पति या पत्नी, दोनों को मिल सकता है, लेकिन अधिकतर मामलों में यह पति को ही देना पड़ता है.

क्या तलाक के वक्त पत्नी कितना भी गुजारा भत्ता मांग सकती है?

कानूनी रूप से पत्नी को अपनी आर्थिक स्थिति और आवश्यकताओं के आधार पर गुजारा भत्ता मांगने का अधिकार है. लेकिन अदालत इसे मंजूरी देने से पहले दोनों पक्षों की आर्थिक स्थिति, जीवनशैली और तलाक के कारणों को ध्यान में रखती है. पत्नी कितना भत्ता मांगेगी, यह उसकी आर्थिक स्थिति और पति की आय पर निर्भर करता है.

पत्नी अगर कामकाजी हो, तब क्या होगा?

यदि पत्नी आर्थिक रूप से स्वतंत्र और कामकाजी है, तो उसे गुजारा भत्ता दिए जाने की संभावना कम हो जाती है. सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों के अनुसार, आत्मनिर्भर पत्नी को मेंटेनेंस देने की आवश्यकता नहीं है. हालांकि, अगर पत्नी की आय उसके जीवन-यापन के लिए पर्याप्त नहीं है, तो अदालत उसे कुछ सहायता देने का आदेश दे सकती है.

क्या पति भी मांग सकता है गुजारा भत्ता?

कानूनी रूप से, अगर पति आर्थिक रूप से कमजोर है और पत्नी के पास अधिक आय है, तो पति भी गुजारा भत्ता मांग सकता है. यह नियम हिंदू मैरिज एक्ट, 1955 के तहत लागू होता है. हालांकि, ऐसे मामले बहुत ही दुर्लभ होते हैं.

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