जब से ‘नमो’ प्रधानमंत्री बने हैं, तब से पार्टी की भूमिका खत्म होती जा रही है. जिस तरकीब से पुराने लोगों को दरकिनार किया जा रहा है, वह शायद भाजपा की संस्कृति नहीं थी. अटल-आडवाणी-जोशी युग देख चुके लोग तो यही कहेंगे. यह सही हो सकता है कि आडवाणी ने सिर्फ इसलिए चुनाव लड़ा हो कि यदि भाजपा को अपने दम पर सरकार बनाने का मौका नहीं मिलता, तो गंठबंधन के अन्य दल उनके नाम पर सहमत हो जायेंगे.
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