अर्थशास्त्र का नोबेल पुरस्कार पाने वाले एक मनोवैज्ञानिक

कानमैन ने बड़ी अच्छी बात बतायी कि 100 डॉलर मिलने पर खुशी तो होती है, लेकिन इतने का नुकसान होने पर दुख उसका दुगना होता है, जबकि यह उसके बराबर ही होना चाहिए. यह एक स्वाभाविक और व्यावहारिक सी बात है.

By मधुरेंद्र सिन्हा | April 3, 2024 9:02 AM
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नोबेल पुरस्कारों की दुनिया में एक ऐसा यादगार नाम भी है, जिसे अपने विषय की बजाय दूसरे विषय में पुरस्कार मिला. हम बात कर रहे हैं डैनियल कानमैन की. उनका मूल विषय मनोविज्ञान था, जिसमें वे खूब सम्मानित हुए थे, लेकिन अपने शोध से वे एक अर्थशास्त्री की भी भूमिका निभाने लगे. वे मनुष्य के सामान्य व्यवहार से इतर यह मानते थे कि पैसे और खर्च के मामले में मानवीय व्यवहार हमेशा तर्कसंगत नहीं रहता, यानी मनुष्य हमेशा नपे-तुले ढंग से खर्च नहीं करता और न ही उसकी सोच उस पर आधारित होती है. वह तर्कों से परे भी सोचता है. इसे व्यवहारपरक अर्थशास्त्र कहते हैं. इस विषय को कानमैन ने अपने सहयोगी एमोस टेवेरस्की के साथ खोजा. 1996 में टेवेरस्की के निधन के बाद इस विषय पर कानमैन अकेले ही काम करते रहे. इसी विषय पर 2002 में कानमैन को प्रतिष्ठित नोबेल पुरस्कार मिला. चूंकि यह सम्मान मरणोपरांत नहीं मिलता, इसलिए टेवेरस्की इस ख्याति से वंचित रह गये. इसका दुख कानमैन को जीवन भर रहा. उनका कहना था कि मेरा दोस्त भी नोबेल पुरस्कार का उतना ही अधिकारी था जितना मैं.

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