स्वार्थ से प्रेरित है भारत विरोधी प्रचार

हमें एक संचार रणनीति बनानी चाहिए. हमें भी विभिन्न पश्चिमी देशों की आंतरिक स्थिति के बारे में एक जगह जानकारी एकत्र करनी चाहिए.

By अनिल त्रिगुणायत | May 10, 2024 8:08 AM
an image

पश्चिमी सरकारों, संस्थानों और मीडिया द्वारा भारत विरोधी नैरेटिव बनाने की कोशिश के बारे में विदेश मंत्री एस जयशंकर का जो बयान आया है, वह पूरी तरह सही है. भारत के विकास तथा उसके वैश्विक प्रभाव को बाधित करने की मंशा से कुछ देश हमारे विरुद्ध तरह-तरह का दुष्प्रचार कर रहे हैं. ऐसा केवल सरकारों की ओर से नहीं किया जा रहा है, बल्कि इसमें मीडिया और संगठनों की भूमिका भी है. उदाहरण के तौर पर, जॉर्ज सोरोस और उनके फाउंडेशन की ओर से खुले रूप से देश में सरकार बदलने की बातें कही गयी हैं. इस तरह के अनावश्यक हस्तक्षेप और दबाव बनाने की कोशिशें पहले भी होती रही हैं, पर देश में चुनावी सरगर्मी शुरू होने के साथ इसमें तेजी आयी है. पश्चिमी सरकारों और मीडिया ने निज्जर और पन्नू के मामलों में भारतीय एजेंसियों के शामिल होने की निराधार बातें की, मानवाधिकार को लेकर सवाल उठाने के प्रयास हुए, आंतरिक राजनीति, प्रशासन और कानून व्यवस्था के बारे में टिप्पणियां की गयीं. भारत सरकार की ओर से कड़ा एतराज दर्ज कराया गया है. हमें यह समझने की आवश्यकता है कि यह सब एक सोची-समझी रणनीति के तहत किया जा रहा है. एक प्रकार से यह उनका विशेष टूल-किट है, जिसे वे अपनी मीडिया के जरिये बढ़ाना चाहते हैं.

इसी क्रम में पश्चिम के कई देशों ने अपनी संस्थाएं स्थापित की हुई हैं, जिन्हें वे शोध संस्थान और नागरिक समाज की श्रेणी में रखते हैं. ये समूह तथ्यों को तोड़-मरोड़कर तथा पूर्वाग्रह से ग्रस्त अपने विश्लेषण को बिल्कुल पेशेवर अंदाज में प्रस्तुत करते हैं. उदाहरण के लिए, हमने कई बार देखा है कि लोकतंत्र सूचकांक में पाकिस्तान जैसे देशों को भारत से ऊपर दिखा दिया जाता है, मीडिया की स्वतंत्रता के सूचकांक में भारत की तुलना में अफगानिस्तान को बेहतर बता दिया जाता है. इससे स्पष्ट है कि ऐसे सूचकांकों या रिपोर्टों की विश्वसनीयता नहीं है. उनका एजेंडा एक खास तरह का नैरेटिव बनाना है, सो वे उसी दिशा में काम करते रहते हैं. 

ऐसा वे इसलिए कर पाते हैं कि उनके पास एक मजबूत मीडिया है. अनेक देशों, जिनमें भारत भी शामिल है, का मीडिया कई मामलों में पश्चिम की अंग्रेजी मीडिया पर निर्भर और उससे प्रभावित रहता है. जानकारी के अभाव में या उनके प्रभाव में भारत में भी मीडिया कई बार पश्चिम मीडिया की बातों को दोहराता रहता है. इसका लोगों पर असर होता है, जो खतरनाक है क्योंकि वे ऐसी खबरों पर भरोसा कर लेते हैं. आजकल सोशल मीडिया का प्रभाव बहुत बढ़ गया है. विभिन्न सोशल मीडिया मंचों पर लोग बिना सोचे-विचारे खबरों को साझा कर आगे बढ़ाते रहते हैं. जब तक कोई प्रतिक्रिया आये या उसका खंडन हो, बात बहुत दूर तक फैल चुकी होती है. जबकि होना यह चाहिए कि लोग साझा करने से पहले खबरों की पड़ताल करें और उसके निहितार्थों को समझें. 
ऐसी स्थिति में हमें ठोस तैयारी की आवश्यकता है. भारत के विरुद्ध पश्चिम या कुछ अन्य देशों की सरकारों और मीडिया द्वारा जो नैरेटिव रचने का उपक्रम चल रहा है, उसे 'ग्रे-जोन वॉरफेयर' कहा जाता है. अभी हाल में अमेरिकी राष्ट्रपति ने कह दिया कि जिन देशों में अप्रवासी नहीं आते, वहां आर्थिक विकास नहीं होता. यह कहते हुए उन्होंने भारत को चीन, जापान और रूस के साथ रख दिया. जबकि सच यह है कि हजारों वर्षों से लोग भारत आते रहे हैं और यहां बसते रहे हैं. आज भी अच्छी तादाद में दूसरे देशों के लोग भारत में हैं. इस तरह के बयानों को भारतीय मीडिया भी प्रमुखता से छापता-दिखाता है. यह जरूरी हो गया है कि हमारे देश में मीडिया अपनी भूमिका और महत्व को ठीक से समझने की कोशिश करे. भारत न केवल आर्थिक मोर्चे पर अच्छा प्रदर्शन कर रहा है, बल्कि वह स्वायत्त एवं स्वतंत्र विदेश नीति पर भी चल रहा है, जिसके केंद्र में राष्ट्रीय हित हैं. जो पहले के समृद्ध एवं शक्तिशाली देश हैं, उन्हें यह स्थिति हजम नहीं हो रही है. वे समझते हैं कि भारत एक लोकतांत्रिक देश है. जहां डिजिटल और नैरेटिव दुष्प्रचार के माध्यम से सत्ता परिवर्तन किया जा सकता है या विकास प्रक्रिया को अवरुद्ध किया जा सकता है. इसी सोच के अनुसार वे यह सब कर रहे हैं. ऐसे प्रयास चुनाव के दौर पर अधिक सक्रियता से किये जा रहे हैं. ऐसी स्थिति में हमें एक संचार रणनीति बनानी चाहिए, ताकि इस तरह के प्रयासों के प्रभावों को रोका जा सके. 

अब रूस ने भी कह दिया है कि अमेरिका भारत के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप कर लोकसभा चुनाव को प्रभावित करना चाहता है. हम जानते हैं कि पश्चिम और रूस के बीच में तनातनी चरम पर पहुंच चुकी है. यूक्रेन में तो दोनों पक्षों का छद्म युद्ध चल ही रहा है. अमेरिका और पश्चिम के कई चुनावों में रूस पर आरोप लगता रहा है कि वह चुनावों में असर डालने की कोशिश कर रहा है. ऐसे आरोपों को पश्चिम ठोस सबूतों से साबित नहीं कर पाया है. रूस चूंकि अपने अनुभव से यह सब समझता है, तो वह यह भी समझ रहा है कि पश्चिमी देश भारत के साथ क्या कर रहे हैं. रूस और भारत के बीच गहरे रणनीतिक संबंध हैं और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन कई बार भारत की स्वायत्त एवं स्वतंत्र विदेश नीति की प्रशंसा कर चुके हैं. मेरा मानना है कि रूस का बयान एक तो पश्चिम को जताने के लिए दिया गया है और दूसरी बात यह हो सकती है कि रूस भारत के प्रति अपने समर्थन को अभिव्यक्त कर रहा है.

संबंधित खबर और खबरें
होम E-Paper News Snaps News reels
Exit mobile version