आतंकी खतरा और भारत-आसियान

ASEAN Meeting 2025: दक्षिण पूर्वी एशियाई राष्ट्रों का संगठन आसियान 10 दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों का समूह है, जो आपस में आर्थिक विकास और समृद्धि को बढ़ावा देने और क्षेत्र में शांति और स्थिरता कायम करने के लिए कार्य करता है.

By डॉ मनन द्विवेदी | March 24, 2025 7:52 AM
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ASEAN Meeting 2025: नयी दिल्ली में आसियान देशों के रक्षा मंत्रियों तथा दूसरे संवाद सहयोगी देशों के बीच संपन्न हुई दो दिवसीय बैठक के महत्व को इसी से आंका जा सकता है कि इसमें आतंकवाद के खिलाफ साझा रणनीति पर बल दिया गया. इस बैठक का उद्देश्य आसियान देशों के रक्षा बलों और उसके संवाद भागीदारों के जमीनी अनुभव को साझा करना था. इस बैठक में आसियान के 10 सदस्य देशों के साथ-साथ आठ संवाद-सहयोगी देशों-ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, दक्षिण कोरिया, जापान, चीन, अमेरिका और रूस ने भाग लिया. दक्षिण पूर्वी एशियाई राष्ट्रों का संगठन आसियान 10 दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों का समूह है, जो आपस में आर्थिक विकास और समृद्धि को बढ़ावा देने और क्षेत्र में शांति और स्थिरता कायम करने के लिए कार्य करता है. इसके अलावा तिमोर-लेस्ते और आसियान सचिवालय के प्रतिनिधियों ने भी बैठक में शिरकत की. इन सबको मिलाकर एडीएमएम-प्लस कहते हैं. एडीएमएम-प्लस एक ऐसा मंच है, जो भाग लेने वाले देशों की रक्षा सेनाओं के बीच व्यावहारिक सहयोग को बढ़ावा देता है. यह सात प्रमुख क्षेत्रों-आतंकवाद-विरोधी अभियान, समुद्री सुरक्षा, मानवीय सहायता और आपदा प्रबंधन, शांति स्थापना अभियान, सैन्य चिकित्सा, मानवीय बारूदी सुरंग कार्रवाई और साइबर सुरक्षा पर ध्यान केंद्रित करता है. इन सभी क्षेत्रों में सहयोग को बेहतर बनाने के लिए इडब्ल्यूजी (विशेषज्ञ कार्य समूह) बनाये गये हैं. हर इडब्ल्यूजी की सह-अध्यक्षता तीन साल के लिए होती है.

इससे पहले 2021-24 के पिछले चक्र के दौरान आतंकवाद से मुकाबले के लिए विशेषज्ञ कार्य समूह (इडब्ल्यूजी) के सह-अध्यक्ष रहे म्यांमार और रूस ने वर्तमान चक्र के लिए सह-अध्यक्षता भारत और मलयेशिया को सौंप दी थी. भारत वर्तमान चक्र के लिए पहले कार्य समूह बैठक की मेजबानी कर रहा है. पहली बार भारत ने आतंकवाद-विरोधी विशेषज्ञ कार्य समूह की सह-अध्यक्षता की. भाग लेने वाले देशों और आसियान सचिवालय के प्रतिनिधिमंडलों के प्रमुखों ने क्षेत्र में आतंकवाद का मुकाबला करने के लिए सर्वोत्तम प्रथाओं को अपनाने पर अपने विचार पेश किये. जब पूरी दुनिया विवाद और युद्ध में उलझी हुई है, तब आसियान और भारत के अटूट रिश्तों का महत्व समझ में आता है. आतंकवाद के खिलाफ रणनीति बनाने वाली इस बैठक के महत्व को इस लिहाज से भी समझा जाना चाहिए कि आसियान के देश, खासकर फिलीपींस, इंडोनेशिया और म्यांमार जेहादी आतंक से त्रस्त हैं. शीतयुद्ध के दौरान इस पूरे क्षेत्र में निर्गुट आंदोलन महत्वपूर्ण समूह के रूप में उभरा था, जब नेहरू और सुहार्तो ने अहिंसक और शांत तरीके से क्षेत्रीय राजनीति में प्रभावी भूमिका निभायी थी.

आज के संदर्भ में, खासकर 11 सितंबर, 2001 को आतंकवादियों द्वारा वर्ल्ड ट्रेड टावर के विध्वंस के बाद अमेरिका के नेतृत्व में निर्मित हुआ गठबंधन, जिसमें भारत की भी परोक्ष सहमति थी, आतंकवाद के विरुद्ध एक शक्तिशाली वैश्विक गठबंधन जरूर था, लेकिन वास्तविकता यह है कि भारत और अमेरिका, दोनों देश आतंकवाद से पीड़ित हैं. यह भी सच है कि आतंकवाद पर दोनों देशों का रुख अलग-अलग है. आसियान और भारतीय अधिकारियों के बीच इसी साल फरवरी और मार्च में हुई बैठक के दौरान क्षेत्रीय व्यापार जोन और सीइपीए (समग्र आर्थिक साझेदारी समझौता) पर जोर दिया गया. चूंकि अल कायदा और आइएसआइएस के उभार के बाद स्लीपर सेल्स और छोटे आतंकी समूह किसी भी देश की शांति में सेंध लगा सकते हैं, ऐसे में नयी दिल्ली और आसियान देशों के लिए सुरक्षा के मोर्चे पर जोखिम निश्चित तौर पर बड़ा है. इसी कारण राष्ट्रीय राजधानी में संपन्न हुई इस बैठक के महत्व को समझा जाना चाहिए. इस बैठक के उद्घाटन सत्र में भारत के रक्षा सचिव राजेश कुमार सिंह ने यह कहा कि आतंकवाद एक गतिशील और उभरती चुनौती बना हुआ है, जिसके खतरे लगातार सीमाओं को पार करते रहे हैं. उन्होंने इस क्षेत्र में आतंकवाद का मुकाबला करने की दिशा में भारत के प्रयासों पर प्रकाश डाला, जिसमें 2022 में यूएनएससी की आतंकवाद-रोधी समिति की भारत की अध्यक्षता के दौरान दिल्ली घोषणा को अपनाना भी शामिल है. उल्लेखनीय है कि अक्तूबर, 2022 में मुंबई और दिल्ली में सीटीसी की विशेष बैठक की मेजबानी के दौरान दिल्ली घोषणा पर सहमति बनी थी, जो इस संदर्भ में एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है. इसमें आतंकी प्रयोजनों में इस्तेमाल नयी तकनीकों के मुकाबले का लक्ष्य और तैयारी है. बैठक में यह कहा गया कि आतंकवाद से मुकाबले के लिए दुनिया में जो सर्वोत्तम प्रयास हो रहे हैं, यहां भी उन्हें अपनाया जायेगा.जाहिर है, तभी आतंकी खतरों को प्रभावी तरीके से बेअसर किया जा सकता है.

हालांकि आसियान मुख्य रूप से आर्थिक और सुरक्षा प्रयोजनों का एक मंच है, लेकिन चूंकि आज के दौर में मानव सुरक्षा सबसे बड़ी प्राथमिकता है, ऐसे में आतंकवाद के खिलाफ एशियाई देशों की एकजुटता को मजबूत होना ही पड़ेगा. भारत और मलयेशिया ने 2026-27 में साझा सैन्याभ्यास और सैन्य प्रशिक्षण के लिए समझौते पर दस्तखत भी किये. गौर करने की बात है कि आतंकवाद को परिभाषित करने और उससे निपटने के मामले में भारत ने दूसरे देशों से बढ़त ले ली है. इसके अलावा भारत ने आतंकवाद के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की नीति भी अपना रखी है. इसके बावजूद आज की एक बड़ी चुनौती यह है कि एक देश में स्वतंत्रता सेनानी या मुक्तिदाता का दर्जा पाने वाला दूसरे देश में आतंकवादी के तौर पर परिभाषित होता है. हालांकि एशिया में अमेरिका की उपस्थिति पर भी एक राय नहीं है. जैसे कि दक्षिण कोरिया और जापान का कहना है कि अमेरिका को एशिया से अपना सुरक्षा छाता नहीं हटाना चाहिए, जबकि कुछ दूसरे एशियाई देशों की राय है कि अमेरिका को अपने पांव यहां से हटाकर यूक्रेन पर रखने चाहिए और वहां रूस को मनमानी करने से रोकना चाहिए. भारत और आसियान देशों के खासकर युवाओं के बीच एआइ संचालित दुष्प्रचार, कूट संदेश और ड्रोन तकनीक के जरिये फैलाये जाने वाले आतंकवाद का मुकाबला करने की चुनौती भी बड़ी है. भारत की एक्ट ईस्ट नीति ही, जिसमें आतंक के मुकाबले के लिए सक्रियता, पहले वार करने की नीति और तैयारी ही मूल मंत्र है, उसकी आसियान नीति की आधारशिला है. कुल मिलाकर, आसियान रक्षा मंत्रियों की बैठक में संप्रभु समानता तथा क्षेत्रीय अखंडता बरकरार रखने और दूसरों के घरेलू मामलों में न कूदने की नैतिकता के बारे में साझा प्रण लिया गया.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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