Doctor’s day : भारत में डॉक्टरों की कमी की खबर कोई नई बात नहीं है, आमतौर पर ऐसा सोचा जाता है कि भारत की आबादी ही इतनी ज्यादा है कि डॉक्टर कम ही पड़ जाते हैं, लेकिन अगर पहली पीढ़ी के बच्चे डॉक्टर बनने के ख्याल से इसलिए डरने लगे कि न जाने भविष्य में डॉक्टरी की मुश्किल पढ़ाई करने पर भी सफलता हासिल होगी या नहीं, तो डॉक्टरों की कमी की समस्या और ज्यादा भी हो सकती है. परिवार में पहले से कोई डॉक्टर मौजूद न हो, तो डॉक्टरी को करियर के तौर पर चुनने में क्या अनिश्चितताएं एक युवा के मन में आती हैं. इस बारे में विस्तार से जानने से पहले यह जान लेना जरूरी है कि फिलहाल भारत में डॉक्टरों की स्थिति क्या है.
एक अनार 100 बीमार, यह कहावत भारत में पूरी तरह से सटीक बैठती है. आंकड़ों के हिसाब से भारत में 834 लोगों के लिए औसतन 1 डॉक्टर है. ये आधिकारिक आंकड़े फरवरी 2024 में तब के केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ मनसुख मंडाविया ने लोकसभा में पेश किए थे. तब स्वास्थ्य मंत्री ने लोकसभा को ये जानकारी भी दी थी कि विश्व स्वास्थय संगठन के मुताबिक 1 हजार लोगों पर कम से कम 1 डॉक्टर का औसत होना चाहिए. जबकि भारत का औसत इससे बेहतर है. हालांकि इसके बावजूद देश के सरकारी अस्पतालों में मरीजों को महीनों की वेटिंग लिस्ट मिल रही है और कई सरकारी अस्पतालों में डॉक्टरों की कमी एक बहुत बड़ी समस्या है. ऐसे में 834 मरीजों पर 1 डॉक्टर का औसत प्राइवेट सेक्टर के डॉक्टरों की बदौलत ठीक हुआ होगा, इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता.
क्यों नहीं बनना चाहते युवा डॉक्टर
भारत में पहली पीढ़ी अब डॉक्टर बनने की तमन्ना नहीं रखती. मतलब ये कि अगर किसी परिवार में पहले से डॉक्टर मौजूद हैं तो नई पीढ़ी के बच्चे डॉ बनने के बारे में सोच सकते हैं लेकिन अगर परिवार में पहले से कोई भी डॉक्टरी के पेशे में नहीं है तो पहली जेनरेशन डॉ बनने के बारे में कम ही सोचती है.
आप कह सकते हैं कि आमतौर पर परिवार में जो लोग जिस पेशे में होते हैं, बच्चे उसी प्रोफेशन को अपनाते हैं, मसलन आईएएस माता पिता के बच्चे यूपीएससी की परीक्षा देते हैं, इसी तरह इंजीनियर माता- पिता की संतान की इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने की संभावना बाकियों के मुकाबले ज्यादा होती है, लेकिन डॉक्टर बनने का मामला थोड़ा अलग है.
डॉक्टर बनने की राह में कई चुनौतियां
दरअसल 12वीं के बाद नीट की परीक्षा देना, जिसमें तगड़ी प्रतियोगिता पार करनी होती है,उसके बाद 5 साल की मेहनत के बाद एमबीबीएस पूरी करना अपने आप में चुनौती है. साधारण एमबीबीएस करके फिजीशियन बनने का जमाना अब रहा नहीं. इस वर्ष यानी 2025 में कुल 22,09,318 छात्रों ने एमबीबीएस करने के लिए यानी डॉक्टर बनने की चाहत में नीट (NEET-UG) की परीक्षा दी. जिसमें से 12,36,531 छात्रों ने इस पेपर को पास किया. यानी डॉ बनने की चाहत रखने वाले डॉक्टरों के मुकाबले आधे से थोड़े ज्यादा छात्रों की तमन्ना ही पूरी हो सकी. फिर नीट पीजी की परीक्षा देना और डॉक्टरी में पोस्ट ग्रेजुएट बनना, उसमें अगले 3 साल लग सकते हैं.12वीं के बाद 8 साल की पढ़ाई के बाद कोई एमडी या एमएस डॉक्टर कहला सकता है. उसके बाद अगर सुपर स्पेशलिस्ट बनना है तो दो से तीन साल और जोड़ लीजिए. यानी 14 साल के बाद डॉक्टरी की शीर्ष पढ़ाई पूरी होती है. उसके बाद शुरू होता है डॉक्टरी के पेशे में सही नौकरी पाने का संघर्ष, किस्मत, जुगाड़ या परिवारवाद से अच्छे अस्पताल या घर में पहले से चल रहे अस्पताल से जुड़ गए तो ठीक, वर्ना छोटे अस्पतालों में काम के घंटे ज्यादा और कम तनख्वाह में गुजारा करना पड़ता है. अपना खुद का क्लीनिक खोलने पर प्रैक्टिस नहीं चली तो ये खतरा लोग कम ही मोल लेते हैं. यानी सालों की मशक्कत के बाद करियर में कामयाबी कितनी मिलेगी, इसका पता नहीं रहता.
भारतीय डॉक्टर चले जाते हैं विदेश
भारत में हर साल नेशनल मेडिकल काउंसिल में रजिस्टर होने वाले कुल डॉक्टरों में से लगभग 7 प्रतिशत डॉक्टर OCED देशों में चले जाते हैं – ओसीईडी यानी ऑर्गेनाइजेशन फॉर इकोनॉमिक्स कॉपरेशन एंड डेवलेपमेंट में वैसे तो 32 देश आते हैं लेकिन ओसीईडी की खुद की रिपोर्ट के मुताबिक सबसे ज्यादा भारतीय डॉक्टर अमेरिका, यूरोप, कनाडा और आस्ट्रेलिया जाकर प्रैक्टिस करते हैं. ओसीईडी के आंकड़ों के मुताबिक इस समय 70 हजार से ज्यादा भारतीय डॉक्टर विदेशों में प्रैक्टिस कर रहे हैं. जाहिर है बाहर काम करने की एक बड़ी वजह ज्यादा वेतन तो है इसके अलावा काम करने के हालात भारत से बेहतर है.
देश के सबसे जाने माने अस्पताल दिल्ली के एम्स में एमडी की पढ़ाई करते वक्त सीनियर रेजिडेंट डॉक्टर की ड्यूटी के घंटे 36 घंटे से लेकर 76 घंटे तक लगातार भी हो सकते हैं. 24 घंटे की लगातार ड्यूटी तो जूनियर रेजिडेंट और सीनियर रेजिडेंट दोनों को ही करनी पड़ती है. यह हालत देश के कई अस्पतालों में एक समान से ही है.
छोटे शहरों में डॉक्टरी सीखने के लिए अगर किसी छोटे मेडिकल कॉलेज में एडमिशन हो जाए या फिर किसी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में नौकरी लग जाए तो वहां काम करने के लिए जरूरी उपकरण और हाइजीन वाला माहौल मिलना भी एक चुनौती हो सकता है.
छोटे शहरों और गांव में डॉक्टर अपनी सुरक्षा को लेकर भी चिंतित रहते हैं. प्राइवेट सेक्टर में शुरुआती एंट्री आसानी से नहीं मिलती. इसके अलावा पैसा भी शुरुआती सालों में काम मिलता है. डॉक्टरी का पोस्ट ग्रेजुएट यानी की एमडी या एमएस करने के बाद जब डॉक्टर सीनियर रेजिडेंसी कर रहा होता है,तब सरकारी व्यवस्था में उसे 80000 से सवा लाख रुपए तक महीने का वेतन मिल जाता है. लेकिन प्राइवेट सेक्टर में पहले नौकरी में इससे कम तनख्वाह भी मिल सकती है. ऐसे में अगर घर परिवार में किसी का अपना अस्पताल ना हो या फिर कोई चला चलाया मेडिकल सेटअप यानी की क्लीनिक ना हो तो 30 साल की उम्र में डाक्टरी की पढ़ाई करने के बाद सेट होने में काफी पापड़ बेलने पड़ सकते हैं.
जबकि एमबीए,आईटी और दूसरे नए प्रोफेशन में शुरुआती नौकरी 25 साल की उम्र में ही मिल जाती है.
क्या कहते हैं विशेषज्ञ
नेशनल मेडिकल काउंसिल से जुड़े रहे डॉक्टर अशोक सेठ का मानना है कि अब डॉक्टरी के पैसे में मिशन वाली भावना नहीं रही. और जब किसी काम को पूरी तरह प्रोफेशन के तौर पर देखा जाए तो मुनाफे के हिसाब से डॉक्टरी का पेशा शुरुआत के कुछ सालों में घाटे का सौदा हो सकता है.
दिल्ली के फोर्टिस एस्कॉर्ट्स अस्पताल के अध्यक्ष डॉक्टर अशोक सेठ के मुताबिक आज भी डॉक्टरी के अलावा दूसरा कोई ऐसा पेशा नहीं है जिसमें रोज बहुत से लोगों की दुआएं मिलती हो.
एनालिटिक्स इंडिया मैगजीन 2024 के डाटा के मुताबिक भारत में सफल करियर ऑप्शंस में पहले नंबर पर बैंकिंग और वित्तीय सेवाएं, दूसरे नंबर पर मैनेजमेंट, तीसरे नंबर पर इंजीनियरिंग, चौथे नंबर पर डाटा साइंस और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और पांचवें नंबर पर हेल्थ केयर आता है. इन आंकड़ों के मुताबिक इन में भी डाटा साइंस और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से जुड़े कैरियर आने वाले समय में पहले पायदान पर हो सकते हैं यह आंकड़े भी इस बात की तस्वीर करते हैं कि अब डॉक्टर और इंजीनियरिंग के पारंपरिक प्रोफेशन से बाहर आज के युवा कामयाबी का रास्ता देख रहे हैं.
तो क्या आने वाले समय में डॉक्टर और मरीज का अनुपात खराब हो सकता है क्या सरकारी अस्पतालों में वेटिंग लिस्ट और बढ़ सकती है या फिर भारत में हेल्थ केयर की व्यवस्था का जमा प्राइवेट सेक्टर में जुड़े डॉक्टर ही संभाल रहे होंगे – आशा की एक किरण यह जरूर है कि भारत में हर साल डॉक्टरी की पढ़ाई के लिए जरूरी नीट की परीक्षा देने वाले छात्रों की संख्या बढ़ती है. भारत में कुल 706 मेडिकल कॉलेज है जिनमें 1 लाख से ज्यादा सीटें मौजूद हैं. बीते 2 सालों में मेडिकल कॉलेज को खोलने और सिम बढ़ाने की रफ्तार तेज हुई है, जिससे ज्यादा छात्र डॉक्टर बनने के बारे में उम्मीद से सोच सके. अगर डॉक्टर के लिए काम करने के हालात और प्राइवेट सेक्टर में सैलरी थोड़ी बेहतर हो जाए तो बाहर जाने वाले डॉक्टर को भी शायद रोका जा सके और भारत में डॉक्टरों की संख्या बढ़ सके.