Flash Flood : देश के वे शहर, जो कि हमारी प्रगति के प्रतिमान हुआ करते हैं, मौसम की बरसात की शुरुआत में ही दरिया बन गये और जो समाज कुछ दिनों पहले तक भी पानी की एक-एक बूंद के लिए त्राहि-त्राहि कर रहा था, वह बरसात शुरू होते ही अपने गली-मोहल्लों में गर्दन तक पानी में डूब गया. यह किसी एक शहर की कहानी नहीं है. दिल्ली हो या खुर्जा, पलवल हो या चंडीगढ़, नागपुर हो या भोपाल, कानपुर हो या पटना, बंगलुरु हो या हैदराबाद या चेन्नई, जो चौड़ी सड़कें या फ्लाइओवर यातायात को फर्राटे से निकालने के लिए बने हैं, बारिश में वहां मीलों तक वाहनों का जाम हो जाता है. यह रोग अब महानगरों में ही नहीं, जिला स्तर के नगरों में भी आम है. चूंकि अब हमारा देश शहरीकरण की ओर अग्रसर है, ऐसे में जल्द ही जलभराव गंभीर समस्या का रूप ले लेगा.
पिछले साल बजट सत्र के आखिरी दिनों में यह बात संसद में स्वीकार की गयी थी कि केंद्र सरकार बारिश के पानी की निकासी के लिए शहरों पर बीते 10 वर्षों में 25 हजार करोड़ रुपये खर्च कर चुकी है. इसके बावजूद हर बारिश में शहरों में बाढ़ जैसे हालात पैदा हो जाते हैं. देश के वे सौ शहर, जिन्हें स्मार्ट सिटी घोषित कर दिया गया, पहले से अधिक डूब रहे हैं. शहरीकरण आधुनिकता की हकीकत है और पलायन इसका मूल, लेकिन नियोजित शहरीकरण ही विकास का पैमाना है. गांवों का कस्बा बनने, कस्बों का शहर बनने और शहर का महानगर बनने की प्रक्रिया तेज हुई है. हर स्तर पर शहरीकरण की एक ही गति-मति रही, पहले आबादी बढ़ी, फिर खेत में अनधिकृत कॉलोनी काट कर या किसी सार्वजनिक पार्क या पहाड़ पर कब्जा कर अधकच्चे, उजड़े से मकान खड़े हुए. कई दशकों तक न तो नालियां बनीं, न सड़क और धीरे-धीरे इलाका ‘अर्बन-स्लम’ में बदल गया.
गौर करने लायक बात यह भी है कि साल में ज्यादा से ज्यादा 25 दिन बरसात के कारण बेहाल हो जाने वाले ये शहरी क्षेत्र पूरे साल में आठ से दस महीने पानी के लिए तरसते हैं. राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान, पटना का एक शोध बताता कि नदियों के किनारे बसे लगभग सभी शहर अब थोड़ी-सी बरसात में ही दम तोड़ देते हैं. दिक्कत बाढ़ की ही नहीं है, शहरों की मिट्टी में पानी सोखने की क्षमता अच्छी नहीं होती. शहरों की गलियों में भी अब सीमेंट पोत कर आरसीसी सड़कें बनाने का चलन बढ़ा है और औसतन बीस फीसदी जगह ही कच्ची बची है. सो पानी सोखने की प्रक्रिया नदी-तट के करीब की जमीन में तेजी से होती है.
शहरों में बाढ़ का सबसे बड़ा कारण तो प्राकृतिक नदी-नालों, तालाब-जोहड़ों और उन तक पानी लाने वाले मार्ग पर अवैध कब्जे, भूमिगत सीवरों की ठीक से सफाई न होना है, लेकिन इससे बड़ा कारण है हर शहर में हर दिन बढ़ते कूड़े का ढेर व उसके निबटान की माकूल व्यवस्था न होना. बरसात में यही कूड़ा पानी को नाली तक जाने से रोकता है या सीवर का मुंह बंद करता है. महानगरों में भूमिगत सीवर जलभराव का सबसे बड़ा कारण हैं. जब हम भूमिगत सीवर के संस्कार नहीं सीख पा रहे, तो खुले नालों से अपना काम क्यों नहीं चला पा रहे हैं? एक बात और, बंगलुरु या हैदराबाद या दिल्ली में जिन इलाकों में पानी भरता है, यदि वहां की कुछ दशक पुरानी जमीनी संरचना का रिकॉर्ड उठा कर देखें, तो पायेंगे कि वहां पर कभी कोई तालाब, जोहड़ या प्राकृतिक नाला था.
अब पानी के प्राकृतिक बहाव के स्थान पर सड़क या कॉलोनी बनी है, तो पानी भी तो धरती पर अपने हक की जमीन चाहता है? मुंबई में मीठी नदी के उथले होने और पचास साल पुरानी सीवर व्यवस्था के जर्जर होने के कारण बाढ़ के हालात बनना सरकारें स्वीकार करती रही हैं. बंगलुरु में पारंपरिक तालाबों के मूल स्वरूप में अवांछित छेड़छाड़ को बाढ़ का कारक माना जाता है. शहरों में बाढ़ रोकने के लिए वहां के पारंपरिक जलस्त्रोतों में पानी की आवक और निकासी के पुराने रास्तों में बन गये स्थायी निर्माणों को हटाना होगा. यदि किसी पहाड़ी से पानी नीचे बह कर आ रहा है, तो उसका संग्रहण किसी तालाब में ही होगा. लेकिन ऐसे जोहड़-तालाब कंकरीट की नदियों में खो गये हैं. परिणामतः थोड़ी-सी बारिश में पानी बहने को बहकने लगता है.
महानगरों में बाढ़ का मतलब है परिवहन और लोगों का आवागमन ठप होना. जाम से ईंधन की बर्बादी, प्रदूषण स्तर में वृद्धि और मानवीय स्वभाव में उग्रता जैसे कई दीर्घगामी दुष्परिणाम होते हैं. जलभराव और बाढ़ मानवजन्य समस्याएं हैं और इनका निदान दूरगामी योजनाओं से संभव है. इसी सिद्धांत पर भविष्य की योजनाएं बननी चाहिए. शहरों को डूबने से बचाना है, तो कूड़ा कम करने, पॉलीथिन पर पाबंदी लगाने और सीवरों की ईमानदारी से नियमित सफाई जरूरी है.शहरों में अधिक से अधिक खाली जगह यानी कच्ची जमीन हो, ढेर सारे पेड़ हों, जलभराव वाली जगहों पर भूजल रिचार्ज के प्रयास हों, प्राकृतिक जलाशयों, नदियों को उनके मूल स्वरूप में रखा जाये तथा उनके जलग्रहण क्षेत्र में किसी किस्म का निर्माण न हो. तभी शहर बचेंगे.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)