हमारे देश में ऊर्जा की मांग में निरंतर वृद्धि हो रही है. अर्थव्यवस्था को गतिशील रखने तथा विकास आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए हम जीवाश्म ईंधनों पर अपनी निर्भरता को न तो जल्दी समाप्त कर सकते हैं और न ही उसके उपयोग में बड़ी कटौती कर सकते हैं. फिर भी स्वच्छ ऊर्जा के उत्पादन और उपभोग को बढ़ाना सरकार की प्रमुख प्राथमिकताओं में है. वर्ष 2030 तक 500 गीगावाट हरित ऊर्जा उत्पादन का महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किया गया है. ग्लासगो जलवायु सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2070 तक कार्बन उत्सर्जन को शून्य के स्तर पर लाने के भारत के संकल्प को रेखांकित किया था. इस संदर्भ में केंद्र सरकार ने अनेक नीतिगत पहल भी की है. स्वच्छ ऊर्जा के क्षेत्र में प्रगति का अंदाजा इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि 2014 से अब तक उत्पादन में 30 गुना वृद्धि हुई है. भारत 180 गीगावाट से अधिक की वर्तमान क्षमता के साथ विश्व में चौथे स्थान पर है. भारत की वजह से स्वच्छ ऊर्जा उत्पादन में एशिया सबसे अधिक योगदान कर रहा है. देश को आत्मनिर्भर बनाने के लिए यह आवश्यक है कि हम आयात पर अपनी निर्भरता को बहुत कम करें. हम अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं का 80 प्रतिशत से अधिक ईंधन आयात करते हैं. इस पर भारी खर्च होता है. यदि हम स्वच्छ ऊर्जा को अधिक से अधिक अपनायेंगे, तो इस खर्च में भी कमी आयेगी और जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निपटने में भी महत्वपूर्ण योगदान कर सकेंगे. धरती के बढ़ते तापमान के कारण प्राकृतिक आपदाओं की आवृत्ति भी बढ़ रही है.
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