लड़ाकू विमान आपूर्ति की कछुआ चाल

Hindustan Aeronautics : वर्ष 1971 में भारतीय सेना ने पाकिस्तान के अट्ठानबे हजार सैनिकों का आत्मसमर्पण कराकर एक नया इतिहास रच दिया. तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी पाकिस्तान के विरुद्ध फरवरी-मार्च, 1971 में ही युद्ध छेड़ना चाहती थीं, लेकिन तत्कालीन थलसेनाध्यक्ष जनरल मानेकशॉ ने अनोखी ईमानदारी और साहस के साथ प्रधानमंत्री को बताया कि वह इस युद्ध के लिए तैयार नहीं हैं, और युद्ध लड़ेंगे, तो जीत सुनिश्चित करने के बाद.

By अरुणेंद्र नाथ वर्मा | February 19, 2025 1:30 PM
an image

Hindustan Aeronautics : द्वितीय विश्वयुद्ध में ब्रिटेन की नैया पार लगाने वाले प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल ने स्वतंत्रता और संप्रभुता के प्रति जागरूक अपने देश को एक अनमोल संदेश दिया था, ‘जो इतिहास से कुछ नहीं सीखते उनकी नियति होती है इतिहास को दोहराना.’ भारत भी अपने सैन्य इतिहास के दो पाठ कभी नहीं भुला सकता. पहला 1962 के चीनी हमले में मिली करारी हार और दूसरा 1971 के भारत पाक युद्ध में अभूतपूर्व विजय का. इन दोनों अवसरों पर देश के शीर्ष नेतृत्व को सशस्त्र सेनाओं से कुछ अप्रिय संदेश मिले थे. चीनी हमले से ढाई वर्ष पहले मार्च 1960 में लेफ्टिनेंट जनरल थोरट ने मैकमोहन लाइन पर संभावित चीनी आक्रमण की चेतावनी देकर कहा था कि भारत में ऐसे आक्रमण का सामना करने की क्षमता नहीं है. वर्ष 1961 में सेना ने ऐसी चेतावनी फिर दी, लेकिन तत्कालीन रक्षा मंत्री कृष्ण मेनन और प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने उसे खारिज कर दिया. नतीजा सर्विविदित है.


वर्ष 1971 में भारतीय सेना ने पाकिस्तान के अट्ठानबे हजार सैनिकों का आत्मसमर्पण कराकर एक नया इतिहास रच दिया. तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी पाकिस्तान के विरुद्ध फरवरी-मार्च, 1971 में ही युद्ध छेड़ना चाहती थीं, लेकिन तत्कालीन थलसेनाध्यक्ष जनरल मानेकशॉ ने अनोखी ईमानदारी और साहस के साथ प्रधानमंत्री को बताया कि वह इस युद्ध के लिए तैयार नहीं हैं, और युद्ध लड़ेंगे, तो जीत सुनिश्चित करने के बाद. प्रधानमंत्री ने थलसेनाध्यक्ष की वह सलाह मानी. दिसंबर, 1971 में उस सलाह से मिले सुखद परिणाम को भी दोहराने की आवश्यकता नहीं है. इन दोनों सीखों के संदर्भ में वर्तमान वायुसेनाध्यक्ष एयर चीफ मार्शल अमृतप्रीत सिंह ने दोटूक शब्दों में सरकार का ध्यान भारतीय वायुसेना की कमजोर कड़ियों की तरफ आकृष्ट किया है. ये कमजोर कड़ियां हैं लड़ाकू विमानों की चिंतनीय कमी और उसके लिए उत्तरदायी सरकारी क्षेत्र की कंपनी हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) की कछुआ छाप चाल. यह भारत सरकार का एक सार्वजनिक प्रतिष्ठान है, जिसकी स्थापना 1940 में हुई, और 1964 में कंपनी को यह नाम दिया गया.


दरअसल, पिछले दिनों बेंगलुरु में हुए एयरो-इंडिया प्रदर्शनी में एक विमान की टेस्टिंग करते हुए वायुसेनाध्यक्ष को एचएएल के अधिकारियों से यह कहते हुए सुना गया कि उन्हें सरकारी स्वामित्व वाली इस कंपनी पर कोई भरोसा नहीं है. समय पर विमानों की डिलीवरी न दे पाने के अपने खराब ट्रैक रिकॉर्ड के कारण उन्होंने हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स की खिंचाई की और इसके मिशन मोड में न होने का आरोप लगाया. वायुसेनाध्यक्ष वस्तुत: तेजस एमके 1 ए फाइटर जेट की समय पर डिलीवरी सुनिश्चित कर पाने में एचएएल की विफलता से नाराज थे. वायुसेनाध्यक्ष की सख्त टिप्पणी के बाद एचएएल प्रबंधन ने तुरंत प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि जो तकनीकी समस्याएं थीं, वे दूर कर ली गयी हैं और अब जल्दी ही तेजस विमान की डिलीवरी शुरू हो जाएगी.

गौरतलब है कि एचएएल ने 2025 में भारतीय वायुसेना को 16 एलसीए एमके1 ए जेट विमान देने का वादा किया है, जिसमें 2029 तक कुल 83 जेट होंगे. वायुसेनाध्यक्ष की सख्त टिप्पणी के बाद एचएएल की किसी भी सफाई का बहुत मतलब नहीं है. अनेक विशेषज्ञों ने वायुसेनाध्यक्ष के क्षोभ को जायज बताते हुए यह कहा है कि कई बार विमानों की अकुशलता की कीमत पायलटों को चुकानी पड़ती है. एचएएल की कार्यकुशलता पर गंभीर सवाल उठाते हुए वायुसेनाध्यक्ष ने बताया कि पाकिस्तान और चीन के दोहरे मोर्चों पर युद्ध उस भारतीय वायुसेना के लिए संकटपूर्ण होगा, जिसके पास वांछित 42 स्क्वॉड्रन की जगह केवल 31 लड़ाकू जेट स्क्वॉड्रन हैं. उड़न ताबूत के नाम से कुख्यात पुराने मिग 21 और मिग 23 विमानों का स्थान लेने के लिए जिस आधुनिक सुपरसोनिक हल्के लड़ाकू विमान (लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट) की परिकल्पना 1980 में की गयी थी, एचएएल ने उसका पहला व्यावहारिक स्वरूप 2011 में प्रस्तुत किया था. लेकिन इसका अंतिम ऑपरेशनल क्लीयरेंस वह 2016 से पहले नहीं दिला पायी. फिर एचएएल ने 2020 तक 40 तेजस विमान वायुसेना को सौंपने और तेजस का परिमार्जित संस्करण तेजस मार्क 1ए के रूप में देने का वादा किया.

वायुसेनाध्यक्ष अमृतप्रीत सिंह ने एचएएल पर घोर सुस्ती और लापरवाही का आरोप लगाते हुए बताया है कि पिछले 40 वर्षों में वह पहले 40 तेजस विमान वायुसेना को नहीं दे पायी है और सिर्फ कुछ इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के सॉफ्टवेयर बदल देने को तेजस मार्क 1ए अर्थात विमान का परिवर्धित-परिमार्जित स्वरूप नहीं कहा जा सकता. एचएएल ‘मिशन मोड’ में आकर जुझारू ढंग से कर्मचारियों की संख्या और कौशल बढ़ायेगी, तभी तेजस विमान की आपूर्ति कर पायेगी, अन्यथा नहीं.
जहां तक एचएएल की ‘नौ दिन चले अढ़ाई कोस’ वाली चाल से तेजस विमान की आपूर्ति करने का सवाल है, तो इसके लिए वह अमेरिका से जीइएफ, 404 इंजन की ढीली आपूर्ति को दोष देती है, लेकिन वह यह नहीं बता पाती कि अगर इसरो जैसी संस्था अंतरिक्ष में उपग्रह भेजने की क्षमता बना पायी है, तो तेजस विमान के लिए उपयुक्त इंजन बनाने की क्षमता एचएएल क्यों नहीं विकसित कर पायी. हमारी वायुसेना में आधुनिक शक्तिशाली लड़ाकू विमानों के नाम पर दो राफेल लड़ाकू विमान इकाइयों के अतिरिक्त सुखोई मार्क 31 की कुछ स्क्वॉड्रन हैं. शेष सभी पुराने हो चुके सुखोई मार्क 30 और मिराज विमान हैं, और वे भी वांछित संख्या से 25 प्रतिशत की कमी के साथ.

स्पष्टतः अब लड़ाकू विमानों के निर्माण के मामले में एचएएल के एकाधिपत्य को समाप्त करके निजी क्षेत्र को लाने का समय आ गया है. टाटा और एयरबस कंपनियों के सहयोग से अक्तूबर, 2024 में गुजरात में सी-295 फौजी परिवहन विमानों का निर्माण आरंभ हुआ, तो यह घोषणा की गयी कि विदेश में निर्मित 16 विमान आयात करने के बाद सितंबर, 2026 से अगस्त, 2031 के बीच 40 सी 295 विमान गुजरात में बना लिये जायेंगे. उचित यह होगा कि निजी क्षेत्र की दिग्गज कंपनियां विदेशी सहयोग से लड़ाकू जेट विमानों के निर्माण में गुणवत्तापूर्ण उत्पादकता की नयी मिसाल स्थापित करें और डोनाल्ड ट्रंप और नरेंद्र मोदी की खरबों डॉलर के आर्थिक और सैन्य सहयोग की घोषणा का लाभ उठाकर लोहा गर्म रहते हुए ही पांचवीं पीढ़ी के अमेरिकी लड़ाकू जेट एफ 35 के भारत में ही निर्माण करने के बारे में सोचें.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

संबंधित खबर और खबरें
होम E-Paper News Snaps News reels
Exit mobile version