उथल-पुथल के बीच भारतीय अर्थव्यवस्था की मजबूती

अगर हम वैश्विक अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर से भारतीय अर्थव्यवस्था की तुलना करें, तो हमारी अर्थव्यवस्था वैश्विक स्तर से बेहतर है. आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (ओईसीडी) के अनुसार, 2024 में वैश्विक जीडीपी वृद्धि दर 3.2 प्रतिशत रही और 2025 में यह 3.3 प्रतिशत रह सकती है. दुनिया के सबसे शक्तिशाली देश अमेरिका से भी भारतीय अर्थव्यवस्था अच्छी स्थिति में है

By सतीश सिंह | May 5, 2025 8:01 AM
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अर्थव्यवस्था के विभिन्न मोर्चे पर भारत का प्रदर्शन दुनिया के अन्य देशों की तुलना में लगातार बेहतर बना हुआ है, चाहे वह आर्थिक विकास दर हो, मजबूत शेयर बाजार हो, बढ़ता विदेशी मुद्रा भंडार हो या फिर महंगाई तुलनात्मक रूप से कम हो. विदेशी मुद्रा भंडार की बात करें, तो विगत 25 अप्रैल तक यह 688.13 अरब डॉलर था. तब लगातार आठवें सप्ताह तक इसमें वृद्धि हुई थी, जो भारतीय अर्थव्यवस्था की मजबूती के बारे में ही बताती थी. मार्च महीने में मांग बढ़ने से मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र की गतिविधियों में भी तेजी आयी और अप्रैल में यह दस महीने के उच्चतम स्तर पर पहुंच गयी. अप्रैल में जीएसटी संग्रह रिकॉर्ड 2.37 लाख करोड़ हो गया. ऐसे ही, विगत मार्च में खुदरा महंगाई सालाना आधार पर 3.34 फीसदी की दर से बढ़ी. विगत 67 महीनों में खुदरा महंगाई सबसे निचले स्तर पर आ गयी है. थोक महंगाई भी मार्च महीने में घटकर 2.05 के स्तर पर आ गयी थी. खुदरा महंगाई अभी रिजर्व बैंक द्वारा निर्धारित महंगाई की सहनशीलता सीमा दो से छह प्रतिशत के अंदर है, जिससे जून में प्रस्तावित मौद्रिक समीक्षा में केंद्रीय बैंक के लिए नीतिगत दरों में कटौती करने में आसानी होगी. चूंकि आईएमडी ने इस साल सामान्य से बेहतर बारिश होने का अनुमान जताया है, जिससे फसल बेहतर होगी, किसानों की सिंचाई पर निर्भरता कम होगी, साथ ही, खेती-किसानी की लागत भी कम होगी. भारतीय अर्थव्यवस्था की मजबूती में कृषि क्षेत्र का चूंकि बड़ा योगदान है, ऐसे में सामान्य से बेहतर मानसून की संभावना से कृषि क्षेत्र से उम्मीद स्वाभाविक ही अधिक बढ़ गयी है.

राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) ने सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के वित्त वर्ष 2024-25 के लिए अपने पहले अग्रिम अनुमान में जीडीपी वृद्धि दर के 6.4 प्रतिशत रहने का अनुमान जताया है, जो पिछले तीन वित्त वर्षों से कम है. विगत दो तिमाहियों में जीडीपी की धीमी गति को देखते हुए, सरकार के लिए विकास को बढ़ावा देना जरूरी है. इसलिए, बजट में निवेश, बचत और खपत को बढ़ाने पर जोर दिया गया है, क्योंकि इनमें तेजी लाकर ही आर्थिक गतिविधियों में तेजी लायी जा सकती है और विकास को गति दी जा सकती है. पिछले दो साल में 14 से 16 फीसदी के बीच की ऋण वृद्धि रहने के बाद समग्र क्रेडिट ग्रोथ बीते कुछ महीनों से धीमी हो रही थी. दिसंबर, 2024 में क्रेडिट ग्रोथ घटकर 11.2 फीसदी के स्तर पर आ गयी, जिसका सबसे बड़ा कारण उधारी दर का महंगा होना था. दरअसल, बैंकों के पास सस्ती पूंजी उपलब्ध नहीं है. पहले निवेशक अपनी जमा पूंजी बैंक में रखते थे, लेकिन आज अधिक प्रतिफल मिलने की आशा में वे शेयर बाजार, म्यूचुअल फंड, सोना, बांड्स आदि में निवेश कर रहे हैं, ऐसी स्थिति में बैंकों के समक्ष सस्ती पूंजी का स्रोत केंद्रीय बैंक है. जब नीतिगत दरों में कटौती की जाएगी, तो बैंकों को रिजर्व बैंक सस्ती दर पर ऋण देगा, जिसे वे पुनः जरुरतमंदों को सस्ती दर पर ऋण दे सकेंगे और उधारी के उठाव में तेजी आएगी. फिलहाल, बैंक महंगी दर पर ऋण देने के लिए मजबूर हैं, जिस कारण आमजन और कारोबारी ऋण लेने से बच रहे हैं. इस वजह से, कंपनियों के पास पूंजी की कमी है और वे पूरी क्षमता के साथ उत्पादन नहीं कर पा रहे. उत्पादों की मांग में भी कमी आयी है, जिससे आर्थिक गतिविधियां बाधित हुईं और विकास की गति में तेजी नहीं आ रही. हालांकि विगत फरवरी में रेपो दर में कटौती के बाद क्रेडिट ग्रोथ में थोड़ी तेजी आयी. मार्च, 2025 में पिछले वर्ष के इसी महीने की तुलना में 11.10 फीसदी की दर से ऋण बढ़ा है. इस दौरान उद्योग को दिये गये ऋण में 7.3 फीसदी, तो व्यक्तिगत ऋण में 14 फीसदी की वृद्धि दर्ज हुई थी. गौरतलब है कि देश में ऋण वृद्धि 2012 से 2025 तक औसतन 11.83 फीसदी रही, जो 2023 के दिसंबर में 20.80 फीसदी के उच्चतम स्तर पर पहुंची थी.

अगर हम वैश्विक अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर से भारतीय अर्थव्यवस्था की तुलना करें, तो हमारी अर्थव्यवस्था वैश्विक स्तर से बेहतर है. आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (ओईसीडी) के अनुसार, 2024 में वैश्विक जीडीपी वृद्धि दर 3.2 प्रतिशत रही और 2025 में यह 3.3 प्रतिशत रह सकती है. दुनिया के सबसे शक्तिशाली देश अमेरिका से भी भारतीय अर्थव्यवस्था अच्छी स्थिति में है और आगामी वर्षों में भी इसके मजबूत बने रहने के आसार है. मार्च तिमाही में अमेरिकी अर्थव्यवस्था में 0.3 फीसदी की गिरावट दर्ज की गयी. लगभग तीन साल बाद अमेरिकी अर्थव्यवस्था में गिरावट आयी है, जिससे वहां मंदी आने की आशंका तक व्यक्त की जा रही है. अपने यहां पिछले महीने की मौद्रिक समीक्षा में भी रिजर्व बैंक ने रेपो दर में 0.25 फीसदी की कटौती की, जिससे ऋण वृद्धि दर में तेजी आने का अनुमान है. बैंकों को जब सस्ती दर पर पूंजी मिलेगी, तो वे सस्ती दर पर ऋण दे सकेंगे और जब लोगों को सस्ती दर पर उधार मिलेगा, तो उससे निवेश और बचत में तेजी आएगी, खपत में इजाफा होगा एवं आर्थिक गतिविधियों में वृद्धि होगी. (ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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