Vinod Kumar Shukla : हिंदी साहित्य में अद्वितीय योगदान, सृजनात्मकता और विशिष्ट लेखन शैली के लिए प्रख्यात कवि, लेखक और कहानीकार विनोद कुमार शुक्ल को वर्ष 2024 के लिए प्रतिष्ठित 59 वां ज्ञानपीठ सम्मान देने की घोषणा हुई है. यह भारत का सर्वोच्च साहित्यिक सम्मान है, जिसे भारतीय भाषाओं में उत्कृष्ट साहित्य के लिए प्रतिवर्ष दिया जाता है. इसके अंतर्गत 11 लाख रुपये की राशि, वाग्देवी की कांस्य प्रतिमा और प्रशस्ति पत्र प्रदान किया जाता है. विनोद कुमार शुक्ल हिंदी के 12वें साहित्यकार हैं, जिन्हें यह सम्मान मिला है. उनके उपन्यास ‘नौकर की कमीज’ पर मणि कौल ने फिल्म भी बनायी थी.
छत्तीसगढ़ के रहने वाले 88 वर्षीय शुक्ल जी ने पुरस्कार के बाद अपनी पहली प्रतिक्रिया अपने खास लेखकीय अंदाज में ही दिया, ‘मुझे लिखना बहुत था, बहुत कम लिख पाया. मैंने देखा बहुत, सुना भी मैंने बहुत, महसूस भी किया बहुत, लेकिन लिखने में थोड़ा ही लिखा. कितना कुछ लिखना बाकी है, जब सोचता हूं, तो लगता है बहुत बाकी है. इस बचे हुए को मैं लिख लेना चाहता हूं. अपने बचे होने तक मैं अपने बचे लेखक को शायद लिख नहीं पाऊंगा, तो मैं क्या करूं? मैं बड़ी दुविधा में रहता हूं. मैं अपनी जिंदगी का पीछा अपने लेखन से करना चाहता हूं. लेकिन मेरी जिंदगी कम होने के रास्ते पर तेजी से बढ़ती है और मैं लेखन को उतनी तेजी से बढ़ा नहीं पाता, तो कुछ अफसोस भी है.
ये पुरस्कार बहुत बड़ा पुरस्कार है. मेरी जिंदगी में ये एक जिम्मेदारी का अहसास है, मैं उसको महसूस करता हूं. और अच्छा तो लगता है, खुश होता हूं. बड़ी उथल-पुथल है. यह महसूस करना कि ये पुरस्कार कैसा लगा, बहुत बढ़िया लगा. मेरे पास में शब्द नहीं हैं कहने के लिए, क्योंकि बहुत मीठा लगा कहूंगा, तो मैं शुगर का पेशेंट हूं. मैं इसको कैसे कह दूं कि बहुत मीठा लगा. बस अच्छा लग रहा है.’
हिंदी के वरिष्ठ कथाकार और अपने विशिष्ट संस्मरणों के लिए पहचाने जानेवाले अशोक अग्रवाल की प्रतिक्रिया थी कि इस सम्मान की सबसे बड़ी उपलब्धि हमारे लिए यह है कि उनका सबसे पहला उपन्यास ‘नौकर की कमीज’ और सबसे पहला कविता संग्रह ‘वह आदमी नया गरम कोट पहनकर चला गया विचार की तरह’ छापने का सौभाग्य हमको मिला. आज हिंदी के लिए और मेरे लिए भी सौभाग्य का दिन है कि यह सम्मान विनोद जी को मिला है. हिंदी के वरिष्ठ कवि-चिंतक और पब्लिक इंटेलेक्चुअल अशोक वाजपेयी का कहना है कि विनोद कुमार शुक्ल को ज्ञानपीठ मिलने के समाचार का स्वागत करता हूं. समकालीन राजनीतिक परिदृश्य की अतिनाटकीयता के विपरीत यह पुरस्कार एक ऐसे व्यक्ति को दिया गया है, जिसने अपनी रचनाधर्मिता को निपट साधारण और नायकत्व से निरपेक्ष व्यक्ति को समर्पित किया है.
शुक्ल की रचनाधर्मिता में अ-नायक के संघर्ष, मानवतावाद और उसके आत्मसम्मान की आहट है. यही उसका आकर्षण भी है. एक जाने-माने कवि और उपन्यासकार के रूप में यह पुरस्कार उन्हें अधिकारस्वरूप मिला है. विनोद कुमार शुक्ल गहरी संवेदनशीलता और गहन प्रतीकात्मकता के कवि हैं. कविता को नारे की तरह पढ़ने, रचने और गढ़ने से उन्हें परहेज रहा है, बल्कि कविता में मंत्र-सी पवित्रता भर देने की विशेष योग्यता उनकी पहचान मानी जा सकती है. उनकी रचना में जितनी गहरी जिज्ञासा है, जितना गहन अन्वेषण है उससे भी कहीं ज्यादा संकोच और एक अप्रस्तुत विधान भरा हुआ है.
वह कवि होने के साथ-साथ शीर्षस्थ कथाकार भी हैं. उनके उपन्यासों ने हिंदी में पहली बार एक मौलिक भारतीय उपन्यास की संभावना को राह दी है. उन्होंने एक साथ लोकआख्यान और आधुनिक मनुष्य की अस्तित्वमूलक जटिल आकांक्षाओं की अभिव्यक्ति को समाविष्ट कर एक नये कथा-ढांचे का आविष्कार किया है. ‘नौकर की कमीज’, ‘खिलेगा तो देखेंगे’ और ‘दीवार में एक खिड़की रहती थी’ जैसे उपन्यासों के माध्यम से उन्होंने हमारे दैनंदिन जीवन की कथा-समृद्धि को अद्भुत कौशल के साथ उभारा है. मध्यवर्गीय जीवन की बहुविध बारीकियों को समाये उनके विलक्षण चरित्रों का भारतीय कथा-सृष्टि में समृद्धिकारी योगदान है. वह अपनी पीढ़ी के ऐसे अकेले लेखक हैं, जिनके लेखन ने एक नयी तरह की आलोचना दृष्टि को आविष्कृत करने की प्रेरणा दी है. आज वह सर्वाधिक चर्चित और सम्मानित लेखक हैं. उन्होंने बच्चों के लिए भी पर्याप्त लेखन किया है. अपनी विशिष्ट भाषिक बनावट, संवेदनात्मक गहराई, उत्कृष्ट सृजनशीलता से विनोद कुमार शुक्ल ने सिर्फ़ भारतीय भाषाओं को ही नहीं, वैश्विक साहित्य को भी अद्वितीय रूप से समृद्ध किया है. ‘फिर कोई चिड़िया/ मेरी बांहों की हरियाली में / घोंसले बनाये / अंडे दे.’ वह अपनी इस आकांक्षा को मूर्तन की ओर ले जायें, उन्हें बधाई.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)