नक्शे का भ्रम

पाकिस्तान को हास्यास्पद हरकतें न कर अपने भीतर झांकना चाहिए और भारत के साथ हेठी करने से पहले इतिहास का पाठ करना चाहिए.

By संपादकीय | August 6, 2020 1:22 AM
feature

भारतीय क्षेत्रों को अपने नक्शे में दिखाने के पाकिस्तान के नये पैंतरे से फिर साबित हुआ है कि उसे न तो इतिहास की समझ है और न ही वर्तमान का अहसास. जम्मू-कश्मीर के एक हिस्से और गिलगित-बल्टिस्तान पर अपने अवैध कब्जे तथा इन इलाकों के शोषण व दमन पर परदा डालने की कोशिश में इस हास्यास्पद नये नक्शे में जम्मू-कश्मीर को विवादित क्षेत्र बताने की कवायद की गयी है.

जूनागढ़ पर भी पाकिस्तान ने दावेदारी जताने की कोशिश की है. कश्मीर के अवैध कब्जेवाले क्षेत्र को भले ही पाकिस्तान कथित रूप से आजाद कहता हो, पर असलियत में वहां इस्लामाबाद में तय की गयीं कठपुतलियां ही शासन चलाती हैं. गिलगित-बल्टिस्तान को तो वह अपना आधिकारिक राज्य बनाने की ही जुगत में है, जबकि उसके संविधान में इसका उल्लेख नहीं है.

इन इलाकों की प्राकृतिक संपदा को लूटने के साथ पाकिस्तानी सेना व प्रशासन के बड़े अधिकारी और राजनेता यहां पर जमीन हथियाने में भी लगे हुए हैं. सालभर पहले भारतीय संसद की मंजूरी से केंद्र सरकार द्वारा जम्मू-कश्मीर की प्रशासनिक संरचना में बदलाव के बाद पाकिस्तान की बदहवासी बहुत ज्यादा बढ़ गयी है. इसकी एक वजह यह है कि सुरक्षा व्यवस्था की मुस्तैदी से आतंकवाद पर काफी हद तक काबू कर लिया गया है तथा भारतीय सेना ने पाकिस्तान से आतंकियों को घुसपैठ पर भी लगाम कस दिया है.

पाकिस्तान के शह और समर्थन से कश्मीर में दशकों से चल रहे आतंकवाद एवं अलगाववाद की कमर तोड़ दी गयी है. ऐसे में नक्शे में भारतीय संप्रभुता के अधीन आनेवाले क्षेत्रों को दर्शाना हास्यास्पद भी है और इससे पाकिस्तानी नेतृत्व की बेचैनी का पता भी चलता है. भारत को आतंक, अलगाव और हिंसा से अस्थिर करने का प्रयास पाकिस्तान की विदेश व रक्षा नीति का अभिन्न हिस्सा है.

साल 1971 में भारत की सक्रिय मदद से मिली बांग्लादेश की स्वतंत्रता की ऐतिहासिक परिघटना को पाकिस्तान भूल नहीं पाया है. उसे हमेशा यह डर सताता है कि बलूचिस्तान और खैबर पख्तूनख्वा में उस घटना की पुनरावृत्ति हो सकती है. उसे अधीनस्थ कश्मीर और गिलगित-बल्टिस्तान में लगातार सघन होते असंतोष से भी भय है. वहां की आबादी का बड़ा हिस्सा पाकिस्तानी नियंत्रण से मुक्त होने के लिए अपनी आवाज बुलंद कर रहा है.

पाकिस्तान के नये नक्शे को भारत ने उचित ही राजनीतिक रूप से अनर्गल और बेतुका करार दिया है. कश्मीर में जनमत संग्रह की रट लगानेवाले पाकिस्तान को यह नहीं भूलना चाहिए कि जूनागढ़ के भारत में विलय पर मुहर जनमत संग्रह से ही लगी थी. साल 1948 की 20 फरवरी को हुए जनमत संग्रह में दो लाख से अधिक मतदाताओं में से महज 91 ने पाकिस्तान के पक्ष में मत डाला था. पाकिस्तान दुनिया में आतंक की शरणस्थली के रूप में जाना जाता है. उसे अपने भीतर झांकना चाहिए और भारत के साथ हेठी करने से पहले इतिहास का पाठ करना चाहिए.

संबंधित खबर और खबरें
होम E-Paper News Snaps News reels
Exit mobile version