चुनावी माहौल में स्थानीय वोटरों के दिल को छूने और उनकी जिंदगी को बदलने वाले मुद्दों को उछालने में राजनीतिक दल कोई कसर नहीं छोड़ते हैं. नक्सल प्रभावित छत्तीसगढ़ के कांकेर जिले में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने सिर्फ नक्सलियों को चुनौती ही नहीं दी, बल्कि इसे चुनावी मुद्दा बनाने की कोशिश भी की. अमित शाह ने कहा है कि नक्सली या तो समर्पण कर दें या फिर गोली खाने के लिए तैयार रहें. उनका यह बयान सिर्फ नक्सलियों काे चुनौती नहीं है, बल्कि नक्सल प्रभावित इलाके के मतदाताओं को भारतीय जनता पार्टी के पक्ष में गोलबंद करने की कोशिश भी है. आम तौर पर सत्ताधारी दल के बयानों की काट विपक्षी दल खोज लेते हैं, लेकिन नक्सलवाद ऐसा मुद्दा है, जिस पर विपक्ष ऐसा आसानी से नहीं कर पाता. केंद्रीय गृह मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार सात राज्यों के पैंतीस जिले ऐसे हैं, जहां नक्सलियों का असर है. इन जिलों की करीब पचास लोकसभा सीटें ऐसी हैं, जिन्हें नक्सल प्रभावित माना जाता है. इनमें से बिहार की चार सीटों के साथ-साथ मध्य प्रदेश के बालाघाट, छत्तीसगढ़ के बस्तर और महाराष्ट्र के गढ़चिरौली में पहले दौर में ही, यानी 19 अप्रैल को मतदान हो चुका है. लेकिन अब भी झारखंड, छत्तीसगढ़, ओडिशा, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में कई ऐसी लोकसभा सीटें हैं, जहां वोटिंग होनी है.
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