ईमानदारी बरतें पड़ोसी देश

पाकिस्तान से बातचीत तभी कामयाब हो सकती है, जब खुले मन और ईमानदारी से आतंकवाद को लेकर गंभीरता से चर्चा हो.

By संपादकीय | March 13, 2024 11:20 PM
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लगभग चार वर्ष से गलवान में भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच हुई झड़प के बाद से पूर्वी लद्दाख में तनातनी की स्थिति है. चीन ने अपनी आक्रामकता दिखाते हुए जब बड़ी संख्या में सैनिकों की तैनाती की, तो भारत को भी उसके जवाब में समुचित बंदोबस्त करना पड़ा. हालांकि सैनिक अधिकारियों के बीच कई चरणों की बात हो चुकी है और दोनों पक्षों ने अब तक की प्रगति पर संतोष व्यक्त किया है, पर कोई ठोस समाधान नहीं निकल सका है. भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने उचित ही रेखांकित किया है कि सीमा पर इस तनाव से दोनों में से किसी भी देश को कुछ हासिल नहीं हुआ है. उन्होंने कहा है कि भारत निष्पक्ष और उचित समाधान खोजने के लिए प्रतिबद्ध है, पर ऐसा कोई भी समाधान समझौतों एवं वास्तविक नियंत्रण रेखा के अनुरूप होना चाहिए.

उल्लेखनीय है कि भारत लगातार कहता रहा है कि वास्तविक नियंत्रण रेखा पर अप्रैल 2020 से पहले की यथास्थिति को बहाल किया जाना चाहिए. चीन आधिकारिक रूप से तो तनाव समाप्त करने और सहयोग बढ़ाने की बात करता रहता है, पर वास्तव में इस दिशा में कोई सार्थक पहल उसकी ओर से नहीं हुई है. यदि चीन की मंशा विस्तारवाद की नहीं है, तो उसे वास्तविक नियंत्रण रेखा पर पहले की स्थिति बहाल कर अपने सैनिकों एवं हथियारों को पीछे करने में क्यों हिचक हो रही है? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अन्य भारतीय नेताओं के अरुणाचल प्रदेश जाने तथा वहां की विकास परियोजनाओं पर चीन को आपत्ति क्यों होनी चाहिए? इतना ही नहीं, चीन अक्सर पाकिस्तान के साथ मिलकर भारत के आंतरिक मामलों पर भी अनावश्यक टिप्पणी करता रहता है. आतंकवाद के मुद्दे पर आलोचना करना तो दूर, वह अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान में सक्रिय आतंकी गिरोहों और उनके सरगनाओं की पैरोकारी भी करता है.

इसमें कोई संदेह नहीं है कि चीन के ऐसे समर्थन से पाकिस्तान के भारत-विरोधी तत्वों का मनोबल बढ़ता है. इसके बावजूद, जैसा कि जयशंकर ने फिर कहा है, पाकिस्तान के साथ बातचीत के लिए भारत ने अपने दरवाजे कभी बंद नहीं किये. भारत का स्पष्ट कहना है कि ऐसी बातचीत तभी कामयाब हो सकती है, जब खुले मन और ईमानदारी से आतंकवाद को लेकर गंभीरता से चर्चा हो. पाकिस्तान को यह समझना चाहिए कि पड़ोसी देशों के विरुद्ध आतंकवाद को अपनी रक्षा और विदेश नीति का हिस्सा बनाने से उसे फायदा तो दूर की बात, नुकसान ही हुआ है. आज पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था ध्वस्त हो चुकी है तथा समाज एवं राजनीति में अस्थिरता व्याप्त है. पाकिस्तान की निर्दोष जनता भी आतंकवाद की पीड़ित रही है.

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