World Health Organisation : विश्व स्वास्थ्य संगठन के कमीशन ऑन सोशल कनेक्शन की नयी रिपोर्ट, ‘फ्रॉम लोनलीनेस टू सोशल कनेक्शन’ में यह खुलासा बेहद चौंकाने वाला है कि अकेलेपन से हर छठा इंसान जूझ रहा है. इससे दुनिया में हर घंटे सौ लोगों की जान जा रही है. सालाना 8.7 लाख लोगों की मौत का कारण अकेलापन है. अकेलेपन से दिल की बीमारी, दिल का दौरा, मधुमेह, अवसाद और असमय मौत का खतरा तेजी से बढ़ रहा है. डब्ल्यूएचओ के प्रमुख डॉक्टर ने मौजूदा दौर की विडंबना पर ठीक ही टिप्पणी की है कि जब तकनीकों की मदद से एक-दूसरे से जुड़ाव के अनगिनत साधन हैं, तब लोग पहले से ज्यादा अकेले और अलग-थलग महसूस कर रहे हैं. अकेलेपन के सबसे ज्यादा शिकार युवा और निम्न व मध्यम आय वाले देशों में रहने वाले लोग हैं.
अफ्रीका में सर्वाधिक 24.3 फीसदी, तो भारत समेत दक्षिण एशिया में 22 फीसदी लोग अकेलेपन के शिकार हैं. यूरोप में सबसे कम 10.1 प्रतिशत लोग अकेलेपन से जूझ रहे हैं. रिपोर्ट में रेखांकित किया गया है कि जिन देशों में आपसी विश्वास तेजी से कम हो रहा है, उनमें भारत भी है. अकेलेपन के कई कारण बताये गये हैं, जैसे खराब स्वास्थ्य, कम आय व शिक्षा, अकेले रहना, कमजोर सामुदायिक सुविधाएं, कमजोर नीतियां और डिजिटल तकनीकों का असर. साथ में यह चेतावनी भी है कि ज्यादा स्क्रीन टाइम और नकारात्मक ऑनलाइन व्यवहार युवाओं के मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा असर डाल सकते हैं. जो लोग और समूह भेदभाव के कारण अकेलेपन के सबसे ज्यादा शिकार होते हैं, वे हैं- दिव्यांग, शरणार्थी या प्रवासी, समलैंगिक, ट्रांसजेंडर, आदिवासी और जातीय अल्पसंख्यक. अकेलापन सिर्फ व्यक्ति को ही नहीं, परिवारों और समाजों को भी प्रभावित कर रहा है.
इस पर ध्यान नहीं दिया गया, तो स्वास्थ्य, शिक्षा और रोजगार के क्षेत्र में हो रहा भारी नुकसान आगे भी जारी रहेगा. इस समस्या से उबरने के लिए रोडमैप भी पेश किया गया है, जिनमें जागरूकता बढ़ाना, सरकारी नीतियों में बदलाव लाना, सामाजिक ढांचे को मजबूत करना और मानसिक स्वास्थ्य सेवाएं देना आदि शामिल हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने सभी लोगों, समुदायों और देशों से अपील की है कि वे सामाजिक जुड़ाव को सार्वजनिक स्वास्थ्य की प्राथमिकता बनायें. मजबूत सामाजिक रिश्ते मानसिक संतुलन तो बनाये ही रखते हैं, जीवन को लंबा और स्वस्थ भी बनाते हैं.