वित्तीय सुगमता जरूरी

बैंकों को नवाचार और नये उद्यमों के लिए धन देने में संकोच नहीं होना चाहिए. पूंजी जुटाने में परेशानियों से ऐसे कारोबारों को शुरू में ही झटका लग सकता है और उनकी संभावनाएं कुंद हो सकती हैं.

By संपादकीय | March 1, 2021 11:00 AM
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महामारी से पैदा हुई मंदी और मुद्रास्फीति से जूझती अर्थव्यवस्था धीरे-धीरे बेहतरी की ओर अग्रसर है. इस प्रक्रिया में स्टार्टअप और वित्तीय तकनीक पर आधारित उद्यमों की अहम भूमिका है. भारत को आत्मनिर्भर बनाने के संकल्प को साकार करने के लिए भी ऐसी कारोबारी पहलों को बढ़ावा देना जरूरी है. इस संदर्भ में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का यह आह्वान बहुत महत्वपूर्ण है कि ऐसे उद्यमों को आसानी से वित्त उपलब्ध कराने के लिए बैंक विशेष प्रयास करें. बैंकिंग तंत्र अर्थव्यवस्था की रीढ़ है.

इसमें गैर-बैंकिंग वित्तीय क्षेत्र भी शामिल है. तकनीक के विस्तार, संसाधनों की उपलब्धता तथा उद्यमशीलता बढ़ने से गांवों व कस्बों में नवाचार और कारोबार में बढ़ोतरी की गुंजाइश बढ़ी है. लेकिन बैंकों के कामकाज की सीमाओं की वजह से ऐसी कोशिशों के लिए धन जुटाना मुश्किल काम है. प्रधानमंत्री मोदी ने बैंकों से कहा है कि वे छोटे शहरों और गांवों की आकांक्षाओं समझें तथा उन्हें आत्मनिर्भर भारत की ताकत बनायें. हमारे देश की आबादी का बड़ा हिस्सा युवा है, जिसका अधिकांश गांवों व कस्बों में बसता है.

यदि युवाओं को अपने कारोबारी सपनों को अमली जामा पहनाने के लिए समुचित वित्त की व्यवस्था होगी, तो रोजगार के नये अवसर भी बनेंगे तथा स्थानीय विकास को गति भी मिलेगी. कोरोना महामारी से त्रस्त अर्थव्यवस्था को संभालने के लिए पिछले साल केंद्र सरकार ने राहत पैकेज के साथ सूक्ष्म, छोटे और मझोले उद्यमों से संबंधित नीतियों में भी बदलाव किया था. इन उद्यमों को 2.4 ट्रिलियन रुपये का ऋण भी मुहैया कराया गया है.

स्थानीय उत्पादन और उपभोग को बढ़ावा देना आत्मनिर्भर भारत के संकल्प का प्रमुख तत्व है. सरकार ने आर्थिक सुधारों को गति देकर अर्थव्यवस्था के विस्तार का रास्ता खोल दिया है. लेकिन इस विस्तार के लिए आवश्यक है कि बैंक उद्यमों और कारोबारों को कर्ज दें. बीते वर्षों में सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को बड़ी मात्रा में पूंजी दी है ताकि उन्हें कर्ज देने में दिक्कत न आये. अगले वित्त वर्ष के लिए प्रस्तावित बजट में भी पूंजी मुहैया कराने के लिए आवंटन किया गया है.

इसे आगे बढ़ाने के लिए निजी क्षेत्र की वित्तीय संस्थाओं को भी आगे आना होगा. एक-डेढ़ दशक पहले बैंकों द्वारा आक्रामक ढंग से कर्ज बांटने की वजह से गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (एनपीए) का संकट भी बैंकों के सामने बड़ी चुनौती है, लेकिन, जैसा प्रधानमंत्री ने रेखांकित किया है, सरकार ने इस समस्या के समाधान के लिए अनेक कदम उठाये हैं.

रिजर्व बैंक ने भी बैंकों के प्रबंधन और कामकाज को दुरुस्त करने के लिए नियम बनाये हैं. ऐसे में बैंकों को नवाचार और नये उद्यमों के लिए धन देने में संकोच नहीं होना चाहिए. पूंजी जुटाने में होनेवाली परेशानियों से ऐसे कारोबारों को शुरू में ही झटका लग सकता है और उनकी संभावनाएं कुंद हो सकती हैं. उम्मीद है कि प्रधानमंत्री मोदी की सलाह के अनुरूप बैंकिंग क्षेत्र की ओर से सकारात्मक पहल होगी.

Posted By : Sameer Oraon

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