मरीजों का न हो शोषण

Supreme Court : निजी अस्पतालों में इलाज कराने वालों को सरकारी अस्पतालों की तुलना में ज्यादा पैसे चुकाने पड़ते हैं. इन अस्पतालों की ओर से अक्सर जरूरत से ज्यादा पैसे लेने की खबरें आती रहती हैं. ट्रांसप्लांट और मेडिकल उपकरणों के नाम पर भी मरीजों को लूटा जाता है.

By संपादकीय | March 6, 2025 6:10 AM
an image

Supreme Court : सर्वोच्च न्यायालय ने निजी अस्पतालों में मरीजों और उनके परिजनों का शोषण रोकने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों से उचित नीतिगत फैसला लेने के लिए कहकर एक बेहद प्रासंगिक मुद्दा उठाया है. एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा भी कि नागरिकों को चिकित्सा संबंधी बुनियादी ढांचा उपलब्ध कराना राज्यों का कर्तव्य है. लेकिन राज्य सरकारें चूंकि बुनियादी ढांचा सुनिश्चित करने में विफल रही हैं. उन्होंने निजी अस्पतालों को सुविधा प्रदान की है और उन्हें बढ़ावा दिया है.

यह सच भी है कि सार्वजनिक क्षेत्र में चिकित्सा का बेहतर ढांचा उपलब्ध न होने के कारण लोग निजी अस्पतालों का रुख करते हैं, और प्रभावी कानून न होने की वजह से लाखों मरीजों और उनके परिजनों को निजी अस्पतालों के शोषण का शिकार होना पड़ता है. निजी अस्पतालों में इलाज कराने वालों को सरकारी अस्पतालों की तुलना में ज्यादा पैसे चुकाने पड़ते हैं. इन अस्पतालों की ओर से अक्सर जरूरत से ज्यादा पैसे लेने की खबरें आती रहती हैं. ट्रांसप्लांट और मेडिकल उपकरणों के नाम पर भी मरीजों को लूटा जाता है.

एक रिपोर्ट बताती है कि सरकारी अस्पतालों की तुलना में निजी अस्पतालों का खर्च सात गुना ज्यादा है. कोरोना के बाद चिकित्सा खर्च में भारी वृद्धि हुई है. वर्ष 2023 में मुद्रास्फीति एक अंक पर थी, लेकिन चिकित्सा खर्च में 14 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई. दरअसल शीर्ष अदालत में एक जनहित याचिका दायर कर कहा गया था कि निजी अस्पतालों और उनकी फार्मेसी में एमआरपी से ज्यादा कीमत वसूली जा रही है. याचिका में यह गुजारिश की गयी थी कि मरीजों और उनके परिजनों को यह आजादी मिले कि वे अपनी पसंद की फार्मेसी से दवाएं और मेडिकल उपकरण खरीद सकें.

सुप्रीम कोर्ट ने निजी अस्पतालों पर खुद से प्रतिबंध लगाने से इनकार किया और कहा कि चूंकि यह संविधान में राज्य सूची का विषय है, इसलिए राज्य सरकारें ही इस पर व्यापक दृष्टिकोण से विचार कर उचित गाइडलाइंस बना सकती हैं. हालांकि उसने सरकारों को निजी अस्पतालों के खिलाफ सख्त रुख न अपनाने के लिए भी आगाह किया है, क्योंकि अगर सरकारें सख्त रुख अपनाती हैं, तो वे निजी निवेशक स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र से दूर हो जायेंगे, जो इसमें अहम भूमिका निभाते हैं. अदालत का कहना है कि संतुलित दृष्टिकोण अपनाना होगा, जिससे न तो मरीजों और उनके परिजनों का शोषण हो और न ही निजी अस्पतालों के कामकाज पर बेवजह प्रतिबंध लगे.

संबंधित खबर और खबरें
होम E-Paper News Snaps News reels
Exit mobile version