अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर महिलाओं की स्थिति की चर्चा आवश्यक है. बेहतरी की बात करें, जो निश्चित रूप से महिलाओं ने अपनी चेतना का स्तर बहुत आगे बढ़ाया है. उन्होंने अपने भीतर संघर्ष करने का माद्दा उत्पन्न किया है. इतना ही नहीं, उन्होंने महिलाओं के आंदोलन के साथ व्यापक एकता कायम की है. इसके साथ ही, उन आंदोलनों के साथ भी जो मानवीय तबकों से, रोजी-रोटी से जुड़े हैं, एक नजदीकी रिश्ता बनाया है.
महिलाओं के विकास का तभी सही आकलन हो पायेगा जब हम सामाजिक-आर्थिक-राजनीतिक-सांस्कृतिक स्तर पर उनके आत्म विकास के लिए उन्हें मिलने वाले अवसरों में कितनी वृद्धि हुई है, उसके बारे में जानेंगे. तो आज महिलाएं जिस भी करियर को अपनाना चाहें, जिस खेल में आगे बढ़ना चाहें, जिस भी क्षेत्र में अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करना चाहें, उसमें उन्हें लड़कों की तरह ही बराबरी का अवसर उपलब्ध हो, उन पर किसी तरह की कोई रोक न लगायी जाए कि तू तो लड़की है, इसका मूल्यांकन करना होगा. इन क्षेत्रों में देखें, तो लड़कियों ने अपने संघर्ष के बूते यहां काफी सफलता हासिल की है. परंतु बीते दिनों कुछ ऐसी घटनाएं घटीं, जिसने लड़कियों के मनोबल को तोड़ा है. ये घटनाएं उनके अधिकारों को छीनने वाली रही हैं. इतना ही नहीं, आज महिलाओं के प्रति हिंसा भी बढ़ती जा रही है. आर्थिक क्षेत्र में देखें, तो महिलाओं के लिए रोजगार के जो मौके पहले बढ़े थे- चाहे संगठित क्षेत्र में हों, या असंगठित क्षेत्र में- वे कम हुए हैं. विशेषकर कोरोना के बाद महिलाएं बहुत असुरक्षित जगहों पर काम करने को विवश हुई हैं. आज वे छोटी-छोटी फैक्ट्रियों में, छोटी-छोटी जगहों पर काम करने को मजबूर हैं. श्रम कानून में भी काम के घंटे, न्यूनतम मजदूरी के प्रश्न को निर्मूल कर दिया गया है. तो बड़ी संख्या में महिलाएं शोषण वाली जगहों पर काम करने को बाध्य हैं. राजनीति के स्तर पर देखें, तो 33 प्रतिशत आरक्षण देकर राजनीति में जो उनकी भागीदारी सुनिश्चित की गयी है, भले ही उसे कई राज्यों में 50 प्रतिशत किया गया है, परंतु कई जगह उसमें शर्त भी जोड़ दी गयी है कि वही महिलाएं चुनाव लड़ सकती हैं जो 10वीं या आठवीं पास होंगी. इस कारण लगभग 77 प्रतिशत महिलाएं अयोग्य हो गयीं हैं चुनाव लड़ने के लिए. ऐसा करने का सरकार का उद्देश्य भले ही यह हो कि पढ़ी-लिखी पंचायतें बनें, इससे किसी को आपत्ति नहीं है, परंतु उसके लिए पढ़ाई के प्रबंध भी करने होंगे. पढ़ा-लिखा होना तो सभी को अच्छा लगता है, पर आसपास सुविधाएं न होने की वजह से महिलाएं अनपढ़ रह गयीं. इन बातों को समझना होगा. यह आप मतदाताओं को निर्णय लेने दीजिए कि वे कैसा प्रतिनिधि चुनना चाहते हैं, पढ़ी-लिखी या अनपढ़. दूसरी बात, महिला आरक्षण कानून लागू होने में अभी 10-15 वर्ष की देरी है. क्योंकि अगली जनगणना होने के बाद सीटों का परिसीमन होगा, तब यह लागू होगा.
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