इमरजेंसी में अधिकारों की रक्षा के लिए महिलाएं सड़कों पर उतरीं, स्नेहलता रेड्डी की जेल में हुई मौत

50 Years of Emergency : इमरजेंसी लागू कर जब देश में लोगों के मौलिक अधिकारों का हनन किया गया और लोकतंत्र की आत्मा का गला घोंटा गया, तो पुरुषों के साथ-साथ महिलाएं भी घर से बाहर निकलीं और सरकार का विरोध किया. उस दौर में महिलाओं ने लोगों को जागरूक करने के लिए विभिन्न तरीकों से आवाज बुलंद की. इस काम में पढ़ी-लिखी महिलाओं के साथ ही वैसी महिलाएं भी शामिल थीं, जो अपेक्षाकृत कम पढ़ी-लिखीं थीं, लेकिन उनके अंदर समझदारी बहुत थी. कन्नड़ अभिनेत्री स्नेहलता रेड्डी की तो इमरजेंसी के दौरान जेल में यातना सहते हुए मौत हो गई थी.

By Rajneesh Anand | June 24, 2025 6:43 PM
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50 Years of Emergency : देश में इमरजेंसी लागू होने के 50 वर्ष पूरे होने के बाद जब उस दौर की चर्चा होती है, तो बात होती है कि किस तरह देश में सरकार ने नागरिकों के मौलिक अधिकारों को सीज कर दिया था और सरकार के विरुद्ध बात करने की आजादी नहीं थी. अगर गली-मुहल्लों में कोई सरकार के खिलाफ बात करता दिखता था, तो उन्हें जेल में डाल दिया जाता था. उनपर अत्याचार होता था, सच लिखने वाले अखबारों पर सेंसरशिप लागू की गई थी. बावजूद इसके जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में लोगों ने सच के लिए आवाज बुलंद की और आंदोलन जारी रखा. गौर करने वाली बात यह है कि उस दौर में महिलाओं ने भी जेपी के आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया और घरों से बाहर निकलीं.

इमरजेंसी के दौरान क्या थी महिलाओं की भूमिका?

जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में देश में 1974 में संपूर्ण क्रांति का बिगुल बजा था. देश की जनता एक बड़ा बदलाव चाहती थी. वे यह चाहते थे एक बड़ा बदलाव समाज में हो, जो इंसान को इंसान की तरह देखे, उसे जाति और धर्म के खांचों में ना बांटा जाए. गरीबों को भोजन मिले और बेरोजगारों को रोजगार. सबको विकास के समान अवसर मिलें. इस संपूर्ण क्रांति में महिलाओं ने भी बढ़-चढ़कर भागीदारी निभाई और सबसे गौर करने वाली बात यह है कि इस आंदोलन में पढ़ी-लिखी महिलाएं तो शामिल थीं ही, जो गृहिणियां थीं या वैसी महिलाएं, जिनका राजनीति से बहुत लेना -देना नहीं होता था, वे भी इस आंदोलन का हिस्सा बनीं थीं. इन महिलाओं ने आम लोगों को जागरूक करने, धरना-प्रदर्शन में शामिल होने वालों के लिए भोजन का प्रबंध करने, पत्र-पत्रिकाओं की प्रिटिंग और उनके वितरण तक की व्यवस्था में शामिल थीं.

स्नेहलता रेड्डी ने अपनी जान गंवाई

इमरजेंसी के वक्त जब आम नागरिकों के अधिकार निलंबित थे, महिलाओं ने लोगों को जागरूक किया और बताया कि उनके अधिकारों पर हमला हुआ. इस बारे में बात करते हुए डाॅ करुणा झा बताती हैं कि मैं उस वक्त पटना में रहती थी और स्टूडेंट थी. उन्होंने बताया कि इमरजेंसी के दौरान महिलाओं ने काफी काम किया. उस दौर में एक अभिनेत्री हुआ करती स्नेहलता रेड्डी. वो कन्नड़ अभिनेत्री थीं, उन्होंने इमरजेंसी के दौरान काफी बड़ी भूमिका निभाई और इमरजेंसी के खिलाफ सड़कों पर उतरीं थीं. उनकी जॉर्ज फर्नांडिस के साथ मित्रता थी. जब वे फरार चल रहे थे, तो उन्हें स्नेहलता रेड्डी ने ही अपने घर में शरण दी थी, जिसके बाद स्नेहलता की गिरफ्तारी हो गई और उन्हें जेल में रखा गया. उस दौर के नेता मधु दंडवते ने लिखा है कि स्नेहलता रेड्डी को जेल में यातनाएं भी जाती थीं, क्योंकि जेल में उनकी चीखें गूंजती थीं. स्नेहलता रेड्डी दमा की मरीज थी और जरूरी इलाज नहीं मिलने की वजह से उनकी मौत हो गई, लेकिन उन्होंने आंदोलन की आवाज को दबने नहीं दिया.

बिहार में महिलाएं घर से बाहर निकलीं और सरकार के खिलाफ आवाज बुलंद की

इमरजेंसी के दौरान आम महिलाओं को भी इस बात की समझ थी कि देश में कुछ गलत हो रहा है, इसलिए वे सड़कों पर उतरीं. डाॅ करुणा झा बताती हैं कि मैं खुद एक पत्रिका को निकालने में जुटी थी. उस पत्रिका का नाम था ‘चौरंगी वार्ता’. हम सब उस वक्त जो कुछ लिखते थे या देश में जो कुछ हो रहा था उसकी जानकारी इस पत्रिका में छपती थी. उस पत्रिका का प्रिंटिंग मशीन मेरे घर में लगा था. उसके बाद उस पत्रिका का वितरण होता था, जिसमें पुरुषों के साथ महिलाएं भी सहयोग करती थीं. इसके अलावा जुलूस और धरना में भागीदारी, जागरूकता अभियान में भागीदारी इस तरह के काम भी महिलाएं करती थीं और आंदोलन में अपनी भागीदारी निभा रही थीं. डाॅ करुणा झा बताती हैं कि उस दौर में रांची में पत्रकार सुधा श्रीवास्तव, ऊषा सक्सेना, कनक, कुमुद, मालंच घोष जैसी महिलाएं सक्रिय थीं. इमरजेंसी को करीब से देखने वाली किरण बताती हैं कि इमरजेंसी के दौरान मैं आंदोलन में बहुत सक्रिय नहीं थी क्योंकि मैं तभी स्कूल में पढ़ती थी. लेकिन मैंने अपनी मां को आंदोलन में सक्रिय देखा था. वे धरना-प्रदर्शन में शामिल होती थीं और यह समझती थीं कि देश में कुछ अच्छा नहीं हो रहा है. वे हम सब को आंदोलन के बारे में विस्तार से बताती थीं, यही वजह था कि उस दौर में जो कुछ देश में चल रहा था मैं उनसे भलीभांति परिचित थी.

जाति तोड़ो आंदोलन में भी सक्रिय रहीं महिलाएं

जेपी के संपूर्ण क्रांति में जाति आधारित समाज का विरोध किया गया था और यह कहा गया था कि अगर इंसान को इंसान समझना है, तो सबसे पहले जाति के बंधन को खत्म करना होगा. जाति का अंत अंतरजातीय विवाह से ही संभव था, उस दौर में कई महिलाएं सामने आईं जिन्होंने जाति तोड़ो आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई और अंतरजातीय विवाह को प्रोत्साहित किया और खुद भी इसकी उदाहरण बनीं. इन महिलाओं ने अपने बच्चों की शादी भी अंतरजातीय ही किया. डाॅ करुणा झा बताती हैं कि उस दौर में जाति को मिटाने के लिए जो पहल गई थी, वो उस दौर में तो सफल रही, लेकिन उसे 100 प्रतिशत कारगर नहीं बनाया जा सका, जिसकी वजह से समाज में जाति व्यवस्था कायम है. आज भी अंतरजातीय विवाह हो रहे हैं, लेकिन वे समाज से जाति प्रथा का अंत नहीं कर पाएं हैं.

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