Table of Contents
- श्रीनगर के जामा मस्जिद में बकरीद की नमाज क्यों नहीं?
- जामा मस्जिद का कई बार हो चुका है राजनीतिक इस्तेमाल
- क्या है जामा मस्जिद का इतिहास
Bakra Eid In kashmir : बकरीद के मौके पर कश्मीर में नमाज अदा की गई और नमाज के बाद मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने श्रीनगर के जामा मस्जिद में नमाज अदा करने की अनुमति ना मिलने को दुर्भाग्यपूर्ण बताया और कहा कि इस तरह के फैसले किस आधार पर लिए जाते हैं, मुझे पता नहीं है, लेकिन सरकार को अपने लोगों पर भरोसा करना चाहिए. विपक्ष की नेता महबूबा मुफ्ती और इल्तिजा मुफ्ती ने भी बकरीद की बधाई दी और जामा मस्जिद में नमाज अदा करने की अनुमति ना मिलने पर अफसोस जताया. साथ ही इन दोनों नेताओं ने हुर्रियत के नेता उमर फारुक को नजरबंद करने की बात भी कही और यह कहा कि अगर सबकुछ ठीक है, तो फिर उन्हें नजरबंद क्यों किया गया है.
श्रीनगर के जामा मस्जिद में बकरीद की नमाज क्यों नहीं?
श्रीनगर के जामा मस्जिद में बकरीद की नमाज अदा करने की अनुमति सरकार की ओर से नहीं दी गई है. इसकी बड़ी वजह यह होगी कि वहां का इतिहास इस तरह का रहा है कि पुलिस प्रशासन किसी भी तरह का रिस्क लेने के मूड में नहीं है. उनके लिए आम लोगों की सुरक्षा सबसे बड़ा मुद्दा है. पहलगाम हमले की घटना के बाद से सरकार और मुस्तैद है और किसी भी तरह की अनहोनी को टालना चाहती है. सुरक्षा कारणों से कई बार जामा मस्जिद को बंद किया है, सरकार की मंशा इसके पीछे और कुछ नहीं दिखती है.
जामा मस्जिद का कई बार हो चुका है राजनीतिक इस्तेमाल
श्रीनगर के जामा मस्जिद का कई बार राजनीतिक इस्तेमाल हो चुका है. खासकर 1990 के दशक में इस मस्जिद के जरिए अलगाववादियों ने राजनीतिक भाषण दिए और कई सभाओं का आयोजन भी किया गया. सैयद अली शाह गिलानी और मीरवाइज उमर फारुक जैसे हुर्रियत नेताओं ने जामा मस्जिद को कई बार मंच की तरह इस्तेमाल किया और यहां से अलगाववादी भाषण दिए गए. कई बार यहां शुक्रवार की नमाज के बाद भारत विरोधी नारे लगाए गए और पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाए गए हैं. पत्थरबाजी की घटनाएं भी आम रही हैं, हालांकि आर्टिकल 370 के हटाए जाने के बाद इस तरह की घटनाओं पर लगाम कस गई है. अनुच्छेद 370 के हटने के बाद लगभग 16 महीनों तक मस्जिद बंद रही थी.
क्या है जामा मस्जिद का इतिहास
जामा मस्जिद का निर्माण 1394 ई. में शाह मिरी वंश के सुल्तान सिकंदर बुतशिकन ने करवाया था. यह मस्जिद कश्मीर में इस्लाम के प्रसार का बड़ा प्रतीक है. इस मस्जिद का स्थापत्य भी बहुत अनोखा है. यहां इंडो-इस्लामिक और बौद्ध-पहाड़ी वास्तुकला का अनोखा संगम है. मस्जिद में देवदार की लकड़ी से कई खंभे भी बनाए गए हैं. यहां एक साथ 30 हजार से अधिक लोग नमाज अदा कर सकते हैं.
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