मुसलमानों में कैसे तय की जाती हैं जातियां, जातिगत जनगणना से अरजाल और अजलाफ को क्या हो सकता है फायदा?

Caste Census Of Muslims : देश में जाति आधारित जनगणना का बिगुल फूंका जा चुका है. जल्दी ही इसकी प्रक्रिया भी शुरू हो जाएगी. जो राजनीतिक दल जिसकी जितनी भागेदारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी की वकालत करते हैं, वे बहुत खुश हैं. सरकार ने यह घोषणा भी की है कि मुसलमानों से भी उनकी जाति पूछी जाएगी. इस्लाम मुसलमानों को एक करता है, लेकिन भारतीय उपमहाद्वीप में मुसलमानों के बीच जातियां हैं और वे फारवर्ड और बैकवर्ड में भी बंटी है. ऐसे में यह सवाल लाजिमी है कि जातिगत जनगणना से मुसलमानों को क्या मिलेगा?

By Rajneesh Anand | May 3, 2025 6:43 PM
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Caste Census Of Muslims : देश में जल्दी ही जाति आधारित जनगणना शुरू होने वाली है. इस जनगणना की खासियत यह होगी कि इसमें हिंदुओं के साथ ही मुसलमानों की भी जाति पूछी जाएगी और उनके आधार पर सरकार आगे की रणनीति बनाएगी. भारत एक जाति आधारित समाज है, इसमें कोई दो राय नहीं है, लेकिन मुसलमानों के बीच जाति का निर्धारण किस आधार पर होता है, यह सवाल लोगों के मन में है, क्योंकि इस्लाम के अनुसार जाति जैसी कोई चीज होती नहीं है और पैगंबर मोहम्मद ने सभी मुसलमानों को एक माना था.

जाति को लेकर क्या कहता है इस्लाम?

इस्लाम में जाति आधारित कोई भेदभाव नहीं है. हजरत पैगंबर मुहम्मद ने अपने अंतिम भाषण में कहा था -‘किसी अरब को अजरब (अरब से बाहर के लोग) पर, और किसी अजरब को अरब पर कोई श्रेष्ठता नहीं है; न किसी गोरे को काले पर, और न किसी काले को गोरे पर — सिवाय परहेजगारी के.” इस बात से यह स्पष्ट है कि इस्लाम में इंसानों के बीच किसी तरह का भेदभाव नहीं किया गया है. इंसान के अच्छे कर्म ही उसे श्रेष्ठ बनाते हैं ना कि वह जन्म के आधार पर श्रेष्ठ हो सकता है. 

भारतीय उपमहाद्वीप में मुसलमानों के बीच मौजूद हैं जातियां

इस्लाम में जन्म के आधार पर श्रेष्ठता को नकारा गया है, लेकिन पूरे भारतीय उपमहाद्वीप यानी भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश में मुसलमानों के बीच जातियां मौजूद हैं और यह उन्हें जन्म के आधार पर श्रेष्ठ और पिछड़ा बनाती हैं. रांची के प्रसिद्ध शिक्षाविद डाॅ शाहनवाज कुरैशी बताते हैं कि इस्लाम में जाति आधारित भेदभाव की मनाही है. पैगंबर साहब ने अपने अंतिम भाषण में मक्का के मकाम-ए-अराफात में सभी मुसलमानों को एक बराबर माना था, लेकिन यह एक सच्चाई है कि भारतीय मुस्लिम समाज में जातियां मौजूद हैं, जिनका निर्धारण जन्म के आधार पर होता है. 

डाॅ शाहनवाज कुरैशी कहते हैं कि इसकी मुख्य वजह यह है कि भारत में जब इस्लाम आया और लोगों का धर्मांतरण इस्लाम में हुआ, तो उन्होंने अपना मजहब तो बदल लिया, लेकिन जाति नहीं. इसकी वजह से मुसलमानों के बीच जातियां मौजूद हैं. यह तो एक तथ्यात्मक सच्चाई है कि भारत में जितने मुसलमान हैं, उनमें से 99% यहीं के लोग थे, जिनका धर्मांतरण हुआ है. चूंकि भारत में वैदिक काल में कर्म आधारित जाति व्यवस्था थी, जो कालांतर में जन्म आधारित हो गई, तो बिलकुल उसी पैटर्न पर मुसलमानों में भी जाति व्यवस्था मौजूद है.

मौलाना तहजीब भी यह बताते हैं कि देश में मुसलमानों के बीच जाति व्यवस्था है और उसका पैटर्न उसी तरह का है, जैसे हिंदुओं में सवर्ण, पिछड़ा और दलित. धर्म के आधार पर इनके बीच कोई भेदभाव नहीं होता है, लेकिन सामाजिक दृष्टिकोण से इनके बीच अंतर है. जैसे सैय्यद को सबसे श्रेष्ठ माना जाता है और जब एक सैय्यद की शादी होगी तो वह अपने समुदाय में ही करेगा, किसी और से नहीं करेगा. 

मुसलमानों के बीच भी मौजूद हैं सवर्ण, पिछड़ा और दलित

भारतीय मुसलमानों के बीच जाति व्यवस्था मौजूद है, यह एक सच्चाई है, लेकिन यह भी एक सच्चाई है कि मुसलमानों में जाति व्यवस्था उस तरह से कट्टर रूप में नहीं है, जिस तरह हिंदुओं में है. मसलन यह जरूरी नहीं है कि मौलाना या काजी का बेटा ही धार्मिक कार्य संपन्न कराएगा. इस्लाम में धार्मिक कार्य संपन्न कराने के लिए पढ़ाई कराई जाती है, जिसकी शिक्षा किसी भी जाति का व्यक्ति ले सकता है और और वह धार्मिक कार्यों में शिरकत कर सकता है. बावजूद इसके मुसलमानों के बीच जातियां हैं जिनके बारे में डाॅ शाहनवाज कुरैशी बताते हैं कि मुस्लिम समाज में इन तीन प्रमुख वर्गों में बंटा है- 

1. अशराफ (Ashraf) – ऊंची जातियां

– सैय्यद (Sayyid): पैगंबर मुहम्मद के वंशज 

– शेख (Sheikh): अरब मूल का दावा करने वाले 

– पठान (Pathan): अफगान या पश्तून मूल 

– मुगल (Mughal): मध्य एशियाई तुर्किक मूल के मुगलों से संबंधित

– खान (Khan): सामान्यतः पठान या अन्य उच्च समूहों से संबंधित

– मिर्जा (Mirza): मुगल या मंगोल मूल का दावा करने वाले

– रिजवी (Rizvi): शिया समुदाय से संबंधित, अक्सर सैय्यद परिवारों से.

– सिद्दीकी (Siddiqui): प्रथम खलीफा अबू बकर के वंशज माने जाते हैं.

– कायस्थ (Muslim Kayastha): उच्च शिक्षित प्रशासनिक समूह

– भरसैया/भरसो (Bharsaiya/Bharso): कुछ क्षेत्रों में सामाजिक रूप से उच्च माने जाते हैं.

2. अजलाफ (Ajlaf) – मध्यम और पिछड़ी जातियां

– अंसारी (Ansari): जुलाहा या बुनकर समुदाय

– कुरैशी (Qureshi): पशु व्यापार से जुड़े, पैगंबर के कुरैश कबीले से संबंध का दावा.

– नाई (Nai): नाई या हज्जाम समुदाय.

– तेली (Teli): तेल निकालने का कार्य करने वाले.

– धोबी (Dhobi): कपड़े धोने का कार्य करने वाले.

– बढ़ई (Badhai): बढ़ईगीरी से जुड़े लोग

– मनिहार (Manihar): चूड़ियां बनाने या बेचने वाले.

– दरजी/दंजी (Darzi/Danzi): दर्जी या सिलाई का काम करने वाले.

– मंसूरी (Mansuri): कुछ क्षेत्रों में बागवानी या अन्य व्यवसाय से जुड़े.

– इदरीसी (Idrisi): कुछ क्षेत्रों में रंगाई या अन्य हस्तशिल्प से जुड़े.

– धुनिया (Dhunia): कपास धुनने वाले.

– चिकवा (Chikwa): मांस प्रसंस्करण से जुड़े.

– गुनिया (Gunia): कुछ क्षेत्रों में स्थानीय व्यवसाय से जुड़े.

– बेहंग (Behng): कुछ क्षेत्रों में स्थानीय समूह.

– दरवेश (Darvesh): सूफी परंपराओं से जुड़े या अन्य व्यवसाय.

3. अरजाल (Arzal) – निम्न सामाजिक स्थिति वाली जातियां

– हलालखोर (Halalkhor): सफाई कार्य से जुड़े लोग

– लालबेगी (Lalbegi): सफाई या अन्य निम्न कार्य करने वाले.

– मेहतर (Mehtar): सफाई कर्मी.

– बखो (Bakho): कुछ क्षेत्रों में सफाई कार्य से जुड़े लोग.

जैसा कि हिंदू समाज में सवर्ण, पिछड़ा वर्ग और दलित समाज है, लगभग उसी पैटर्न पर मुसलमानों में भी जातियां विभाजित हैं. समानता की बातें तो जरूर होती हैं, लेकिन यह भी एक सच्चाई है कि शादी-विवाह और अन्य सामाजिक कार्यक्रमों में जातियां मैटर करती हैं.

जाति जनगणना का मुसलमानों पर क्या होगा प्रभाव?

जनगणना का महत्व इसलिए है क्योंकि सरकारें इसके आधार पर अपनी नीतियां निर्धारित करती हैं. सरकार विकास योजनाओं की रूपरेखा तय करती है. देश में 1931 के बाद जाति आधारित जनगणना नहीं हुई है. अब जबकि जनगणना हो रही है, तो मुस्लिम समाज में भी उम्मीद की किरण नजर आ रही है. डाॅ शाहनवाज कुरैशी बताते हैं कि निश्चत तौर पर जाति आधारित जनगणना का लाभ मिलेगा. जब सारे आंकड़े सामने होंगे, तो सरकार जिसकी जितनी भागेदारी उसकी उतनी हिस्सेदारी के दर्ज पर आरक्षण और अन्य विकास योजनाओं का लाभ देगी. देश में अभी भी कुछ पिछड़े मुसलमानों को सरकार आरक्षण का लाभ देती है, जिनमें गद्दी मुसलमान, धुनिया, कसाई, हलालखोर, भाट, मोमिन और भाट प्रमुख हैं. 

मौलाना तहजीब कहते हैं कि सरकारें कहती तो बहुत कुछ हैं, लेकिन वह जमीन पर कितना उतरता है, यह बात गौर करने वाली है. अगर जातिगत जनगणना के बाद सामाजिक रूप से पिछड़े मुसलमानों को कुछ लाभ मिलता है, तो अच्छी बात है. अन्यथा इसका कोई फायदा नहीं होगा.

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