Chhattisgarh Special Force: छत्तीसगढ़ की स्पेशल फोर्स ‘डीआरजी’ जिसने लिया नक्सलियों से सीधा मोर्चा

Chhattisgarh Special Force: छत्तीसगढ़ में नक्सलियों से सीधा मोर्चा एक स्पेशल फोर्स ले रही है. इस फोर्स में नक्सलवाद छोड़ चुके माओवादी और स्थानीय युवा शामिल हैं. वो जंगल-जंगल भटकते हैं. नक्सलियों का पता लगाते हैं, उनसे दो-दो हाथ करते हैं. यही नहीं जब सुरक्षा बल घने जंगलों में जाते हैं तो यही स्पेशल फोर्स उनकी मूवमेंट में मदद करती है.

By Amit Yadav | May 30, 2025 4:24 PM
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Chhattisgarh Special Force: छत्तीसगढ़ से नक्सलवाद के सफाये का अभियान जारी है. इसमें सीआरपीएफ, एसटीएफ, बीएसएफ, बस्तर बटालियन और बस्तर फाइटर्स के जवान जुटे हुए हैं. लेकिन एक फोर्स ऐसी है कि जो नक्सवादियों से सीधे लड़ाई लड़ती है. जैसे बीएसएफ सीमा पर देश की सुरक्षा के लिए फ्रंटलाइन में रहती है. वैसे ही ये छत्तीसगढ़ के इस स्पेशल फोर्स के जवान ही सबसे पहले नक्सलियों से मोर्चा लेते हैं. छत्तीसगढ़ की इस स्पेशल फोर्स को नाम दिया गया है डिस्ट्रिक्ट रिजर्व गार्ड (DRG) कहलाती है.

ऐसे हुआ गठन

छत्तीसगढ़ में नक्सलियों का नेटवर्क काफी मजबूत है. उनके मुखबिर हर जगह हैं. नक्सलियों के खिलाफ कोई भी एक्टिविटी होती है तो उन्हें पता चल जाती है. यहां तक कि सुरक्षा बलों के मूवमेंट भी उनको पता चल जाता है. इसके चलते नक्सली अपना काम करते और सुरक्षा बलों की पकड़ से भी दूरे रहते हैं. ऐसे में छत्तीसगढ़ सरकार ने माओवादियों से भिड़ने के लिए ऐसे युवाओं की फौज तैयार करने का फैसला लिया, जो नक्सलियों के बीच से निकले हों. उनके बारे में जानकारी रखते हों, तभी उनका नेटवर्क में घुसा जा सकता है. इसी के साथ नक्सली गतिविधियों पर रोक लगाने के लिए छत्तीसगढ़ ने डिस्ट्रिक्ट रिजर्व गार्ड (DRG) नाम की स्पेशल फोर्स बनायी.

2008 में हुआ गठन

डिस्ट्रिक्ट रिजर्व गार्ड (DRG) की शुरुआत 2008 में कांकेर और नारायणपुर जिले से हुई. यहां सफलता मिली तो दूसरों जिलों में भी डीआरजी की तैनाती करने का फैसला लिया गया. बीजापुर और बस्तर में डीआरजी के लिए 2013 में भर्तियां की गईं. सुकमा और कोंडागांव में 2014 में डीआरजी का गठन किया गया. 2015 में दंतेवाड़ा और राजनांदगांव डीआरजी जवानों की की तैनाती की गई. ये डिस्ट्रिक्ट रिजर्व गार्ड नक्सलियों की गतिविधियों पर नजर रखने लगे.

ऐसे होती है भर्ती?

डिस्ट्रिक्ट रिजर्व गार्ड (DRG) में आदिवासी क्षेत्रों के स्थानीय लोगों की भर्ती की जाती है. क्योंकि यह स्थानीय जंगल, भाषा और भौगोलिक स्थिति को अच्छी तहर से जानते हैं. डीआरजी में सरेंडर कर चुके नक्सलियों को भी रखा जाता है. जिससे उनके मूवमेंट, रणनीति को आसानी से समझा जा सके और उसी के अनुसार जंगल में सर्च ऑपरेशन चला सकें. डीआरजी 3 से 4 दिन तक जंगल में लगातार नक्सलियों की तलाश में मूवमेंट करते रहते हैं. वर्तमान में इस स्पेशल फोर्स में लगभग दो हजार जवान हैं. जब कोई मूवमेंट होता और मुठभेड़ होती है, तो डीआरजी के जवाब सबसे पहले मोर्चा संभालते हैं. इन जवानों के पीछे ही कोई भी केंद्रीय बल या कोई दूसरी फोर्स के जवान जंगलों में जाकर सुरक्षित वापस लौट पाते हैं.

दंतेवाड़ा में शहीद हुए थे डीआरजी जवान

अप्रैल 2023 में दंतेवाड़ा में डीआरजी की टीम सर्च ऑपरेशन पर थी. इसी दौरान नक्सलियों ने आईईडी ब्लॉस्ट किया था. जिसमें डीआरजी के 10 जवान शहीद हो गए थे. बताया जाता है कि 2021 के बाद डीआरजी पर ये सबसे बड़ा हमला था. इसके अलावा बीजापरु में बीजापुर और सुकमा जिले के बॉर्डर पर बैरल ग्रेनेड लॉन्चर से भी हमला किया था

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