Child Mental Health : बच्चे हो रहे हैं दबंग, रेप और आत्महत्या करने में भी नहीं करते संकोच, जानिए क्या है वजह

Child mental health : जेन जी, जेन अल्फा और जेन बीटा के दौर में जब बच्चों के बारे में ऐसी खबरें आती हैं कि वे डिप्रेशन का शिकार हो रहे हैं, उनका गुस्सा इतना बढ़ गया है कि परिवार परेशान है. छोटे बच्चे रेप के आरोपी हैं, तो चिंता होना स्वाभाविक है. आखिर ऐसा क्यों हो रहा है? वो कौन सी बात या वजह है जो बच्चों को परेशान कर रही है?

By Rajneesh Anand | February 21, 2025 5:00 PM
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Child Mental Health : ये चंद उदाहरण हैं, जो यह बताते हैं कि बच्चों के साथ कुछ अच्छा नहीं हो रहा है. आधुनिक जीवन में बच्चों का मानसिक स्वास्थ्य बुरी तरह प्रभावित नजर आ रहा है जिसकी वजह से वे ना सिर्फ अपराध की ओर अग्रसर हो रहे हैं, बल्कि अपने करियर और जीवन को भी दांव पर लगा रहे हैं. भारत एक ऐसा देश है, जहां मानसिक स्वास्थ्य को आज भी इग्नोर किया जाता है. अगर कोई बच्चा या व्यक्ति चुपचाप रहता है, अकेलापन महसूस करता है, किसी से बात नहीं करता, तो उसपर ध्यान देने की बजाय लोग उसका मजाक बनाते हैं, जिससे परेशानी और बढ़ जाती है. 

क्या है मानसिक स्वास्थ्य और इसकी देखभाल क्यों है जरूरी ?

एक व्यक्ति के जीवन में नौ रस मौजूद होते हैं, जो समय–समय पर उसके व्यक्तित्व को प्रभावित करते हैं. श्रृंगार रस, हास्य रस, करुण रस, रौद्र रस, वीर रस, भयानक रस, बीभत्स रस, अद्भुत रस, शांत रस. अगर किसी भी व्यक्ति में किसी एक ही रस की अधिकता नजर आए तो वह सामान्य स्थिति नहीं कही जा सकती है. यह स्थिति चेतावनी देती है और इसे हमें समझना होगा, अन्यथा स्थिति गंभीर हो सकती है.

मानसिक दोष क्या है?

प्रसिद्ध मनोचिकित्सक डाॅ पवन कुमार बर्णवाल बताते हैं कि बच्चों में मानसिक दोष कई कारणों से आता है, जिसमें प्रमुख हैं– 

  • हार्मोनल इफेक्ट
  • एनवायरनमेंट इफेक्ट
  • ब्रेन डिसआर्डर

हार्मोनल इफेक्ट : बच्चे जब टीनएज में होते हैं तो उन्हें अपने अंदर होने वाले हार्मोनल चेंज की समझ नहीं होती है, कई बार वे इन चीजों को लेकर परेशान हो जाते हैं. चिड़चिड़े रहते हैं और गुस्सा भी ज्यादा करते हैं. 

एनवायरनमेंट इफेक्ट: एनवायरनमेंट इफेक्ट की वजह से जिन बच्चों का मानसिक स्वास्थ्य बिगड़ता है, उनमें स्थिति गंभीर भी हो जाती है. जैसे बच्चा कई बार डिप्रेशन का शिकार हो जाता है. कई बार वह आपराधिक प्रवृत्ति की ओर भी चला जाता है. मारपीट और रेप के मामलों में इस तरह के बच्चों का शामिल होना भी देखा गया है. इस तरह के केसेज में उन्हें संभालना बहुत जरूरी होता है. कई बार माता–पिता की उम्मीदें बच्चे की क्षमता से ज्यादा होती है, इस स्थिति में भी बच्चा डिप्रेशन की ओर चला जाता है. इंटरनेट और मोबाइल की वजह से भी बच्चों में कई तरह की मानसिक समस्या सामने आ रही है. साथ ही सही पैरेंटिंग ना मिलना भी एक बड़ी वजह है, जिसका प्रभाव भी दिखता है.

ब्रेन डिसआर्डर : जिन बच्चों में ब्रेन डिसआर्डर की समस्या होती है, उनमें उनका ब्रेन ही इस तरह का होता है कि वह बच्चा दबंग, ज्यादा गुस्सा करने वाला, चिड़चिड़ा और आक्रामक होता है. इस तरह के बच्चों में कुछ एंटी सोशल एक्टिविटी भी देखी जाती है. इस तरह के बच्चे कम उम्र में ही रेप और हत्या जैसे क्राइम कर देते हैं. इन बच्चों को अविलंब डाॅक्टरी सहायता की जरूरत होती है, ताकि काउंसिलिंग के जरिये केस को समझकर उसका इलाज किया जाए.

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समाज के लिए बड़ी चुनौती है बच्चों का मानसिक स्वास्थ्य

किसी भी समाज में अगर बच्चे ही मानसिक रूप से बीमार होंगे तो उसके विकास और सुंदर होने की परिकल्पना व्यर्थ है. https://www.nimh.nih.gov राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य एवं तंत्रिका विज्ञान संस्थान के वेबसाइट पर भी बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य को लेकर जानकारी दी गई है और बताया गया है कि अगर आपको अपने बच्चे के व्यवहार में परिवर्तन और विशेष लक्षण दिखाई दें अविलंब डाॅक्टर से मिलें. क्या हैं वे लक्षण जब बच्चों को डाॅक्टर पर ले जाने की है जरूरत –

  • अगर बच्चे का व्यवहार परिवार के लिए परेशानी का सबब बने
  • अगर बच्चा स्कूल और दोस्तों के साथ सामान्य न हो
  • बच्चा एक सप्ताह से अधिक गुमसुम हो
  • बच्चे के व्यवहार में अचानक परिवर्तन हो
  • बच्चे का व्यवहार अगर असुरक्षित हो
  • बच्चा खुद को चोट पहुंचाने की कोशिश करता हो
  • पेटदर्द या सिरदर्द की शिकायत हमेशा करता हो

काउंसिलिंग और दवा की जरूरत क्यों?

बच्चे जब सामान्य से अलग व्यवहार करें, तो उन्हें जरूर किसी साइकेट्रिस्ट के पास लेकर जाना चाहिए. साइकेट्रिस्ट यह जानने की कोशिश करते हैं कि बच्चा अगर सामान्य बिहेव नहीं कर रहा है, तो उसका रूट काउज क्या है? आखिर क्यों एक बच्चा सामान्य बच्चों से अलग व्यवहार दिखा रहा है. उसके बाद बच्चे का इलाज शुरू होता है. इलाज में काउंसिलिंग और दवा दोनों का प्रयोग किया जाता है, जो हर बच्चे में अलग–अलग तरीके से करने की जरूरत होती है. डाॅ पवन बर्णवाल बताते हैं कि कई बार बच्चें सिर्फ काउंसिलिंग से ही ठीक हो जाते हैं, लेकिन कई बार उन्हें दवा की भी जरूरत होती है. बच्चे महज एक से दो महीने की दवा से ठीक हो जाते हैं, लेकिन दवा अगर शुरू की जाती है, तो उसे छह महीने तक देना चाहिए, ताकि बच्चा पूरी तरह ठीक हो जाए.

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